हैदराबाद:निर्वाचन आयोग देश में चुनावों की वोटिंग ईवीएम और बैलट पेपर के जरिये कराता है. ईवीएम और बैलट पेपर पर संबंधित निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे सभी उम्मीदवारों के नाम और चुनाव चिन्ह के साथ सबसे नीचे नोटा (NOTA) का विकल्प भी होता है. ईवीएम पर नोटा का चिन्ह भी होता है. अगर कोई मतदाता क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे सभी उम्मीदवारों को पसंद नहीं करता है तो वह नोटा का बटन दबा सकता है. इसका मतलब यह हुआ कि वह 'उपरोक्त में से कोई नहीं' यानी 'सभी के विरुद्ध' अपना वोट कर रहा है.
NOTA (None of the Above) का अर्थ 'इनमें से कोई नहीं' है. चुनाव के दौरान वोटर के लिए यह एक ऐसा विकल्प है, जिसके जरिये वे खामूशी से अपनी असहमति व्यक्त कर सकते हैं, अगर वे उम्मीदवारों को पसंद नहीं करते हैं. बहुत से लोग नोटा का समर्थन करते हैं, जबकि बहुत से लोग इसे वोट की 'बर्बादी' बताते हैं. मध्य प्रदेश की इंदौर लोकसभा सीट से अपने उम्मीदवार अक्षय कांति बम के अंतिम समय में नामांकन वापस लेने के बाद कांग्रेस ने सभी समर्थकों से विरोध स्वरूप नोटा विकल्प चुनने की अपील की है. आइए जानते हैं कि NOTA क्या है और इसे क्यों अपनाया गया.
नोटा क्या है, किसने डिजाइन किया नोटा चिन्ह
भारत निर्वाचन आयोग ने 2013 में मतपत्र और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर नोटा (उपरोक्त में से कोई नहीं) का विकल्प पेश किया था. तब से मतदाताओं को चुनाव में उम्मीदवारों के खिलाफ अपना विचार व्यक्त करने का विकल्प मिल गया है. नोटा का चिन्ह सभी ईवीएम और बैलट पेपर में सबसे नीचे रहता है. नोटा को सितंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद पेश किया गया था, जिसमें चुनाव आयोग को मतपत्रों और ईवीएम में नोटा का विकल्प देने का निर्देश दिया गया था. नोटा का चिन्ह अहमदाबाद स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (एनआईडी) द्वारा डिजाइन किया गया था.
नोटा का उद्देश्य
चुनाव आयोग के मुताबिक, नोटा विकल्प का मुख्य उद्देश्य मतदाताओं को गोपनीयता के साथ किसी भी उम्मीदवार को वोट न देने के अपने अधिकार का प्रयोग करने में सक्षम बनाना है, जो किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के अपने फैसले में कहा था कि वोट देने के अधिकार में वोट न देने का अधिकार भी शामिल है, यानी उम्मीदवारों को अस्वीकार करने का अधिकार.