नई दिल्ली:स्वच्छ और हरित ऊर्जा के भविष्य की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए भारत वैकल्पिक ईंधन के रूप में मेथनॉल पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. दिल्ली में ईटीवी भारत की सुरभि गुप्ता के साथ विशेष बातचीत के दौरान नीति आयोग के सदस्य वीके सारस्वत ने भारत की ऊर्जा परिवर्तन रणनीति में मेथनॉल के महत्व पर जोर दिया. सारस्वत ने कहा, "अमोनिया और इथेनॉल जैसे अन्य वैकल्पिक ईंधनों के साथ मेथनॉल ऊर्जा परिवर्तन का महत्वपूर्ण घटक है."
सारस्वत ने गतिशीलता (Mobility), औद्योगिक अनुप्रयोगों (Industrial Applications) और ऊर्जा उत्पादन के लिए मेथनॉल की क्षमता पर प्रकाश डाला. सारस्वत के अनुसार मेथनॉल परिवहन, ऊर्जा उत्पादन और यहां तक कि रासायनिक विनिर्माण सहित विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तनकारी भूमिका निभा सकता है.
नीति आयोग द्वारा 17-18 अक्टूबर तक आयोजित अंतरराष्ट्रीय मेथनॉल सेमिनार और एक्सपो का उद्देश्य मेथनॉल की विशाल क्षमता को प्रदर्शित करना है. साथ ही इसके उत्पादन के विभिन्न तरीकों की खोज करना है, जिसमें बायोमास और नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) को मेथनॉल में परिवर्तित करने जैसी टिकाऊ पद्धतियां शामिल हैं.
मेथनॉल: हरित ईंधन
भारत मेथनॉल के उत्पादन पर जोर दे रहा है, क्योंकि यह कई क्षेत्रों में उपयोग में आ सकता है और पर्यावरण के अनुकूल भी है. सारस्वत ने बताया कि अब हमारा ध्यान नवीकरणीय स्रोतों जैसे कि बांस, जो देश में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है, के साथ-साथ बायोमास और नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) से 'हरित मेथनॉल' बनाने पर है. इसके अलावा बिजली संयंत्रों, रिफाइनरी और अन्य उद्योगों से कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने और जल इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से उत्पादित हाइड्रोजन का उपयोग करके इसे मेथनॉल में परिवर्तित करने जैसी नवीन तकनीकें लोकप्रिय हो रही हैं. यह दृष्टिकोण न केवल कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद करता है, बल्कि वहनीयता में भी योगदान देता है.
डीजल और पेट्रोल जैसे पारंपरिक जीवाश्म ईंधन की जगह लेने की मेथनॉल की क्षमता इसे गेम-चेंजर बनाती है. सारस्वत ने बताया कि मेथनॉल को डाइमिथाइल ईथर (DME) के रूप में LPG के साथ मिश्रित किया जा सकता है और इससे गैस टर्बाइन और बॉयलर को बिजली मिल सकती है. इसके अलावा, मेथनॉल संभावित रूप से जहाजों और विमानन में उपयोग किए जाने वाले भारी ईंधन की जगह ले सकता है, जिससे कई ऐसे अनुप्रयोग खुल सकते हैं जो आयातित ईंधन पर भारत की निर्भरता को कम कर सकते हैं.
पर्यावरणीय लाभ और कम उत्सर्जन
मेथनॉल के सबसे बड़े लाभों में से एक पारंपरिक जीवाश्म ईंधन की तुलना में इसका कम उत्सर्जन प्रोफाइल है. सारस्वत ने मेथनॉल के पर्यावरणीय लाभों के बारे में विस्तार से बताया, क्योंकि इसे जलाने पर काफी कम हानिकारक उत्सर्जन होता है. उन्होंने समझाया, "अगर आप डीजल जलाते हैं, तो यह कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, पार्टिकुलेट मैटर और नाइट्रोजन ऑक्साइड छोड़ता है. दूसरी ओर, मेथनॉल के कारण उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कमी आती है, जिससे केवल कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड बनता है."