रांचीः झारखंड पुलिस के ताबड़तोड़ अभियान की वजह से नक्सलियों के पांव लगातार झारखंड से उखड़ रहे हैं. स्थिति यह है कि नक्सलियों को अब नए कैडर नहीं मिल रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ जेल से निकलने वाले पुराने कैडर भी संगठन में वापस नहीं लौट रहे हैं.
वर्तमान में क्या है पुलिस का इनपुट
अपने आप को झारखंड का सबसे बड़ा नक्सली संगठन होने का दावा करने वाले भाकपा माओवादियों के पास कैडरों की भारी कमी हो गई है. डीजीपी अनुराग गुप्ता के अनुसार नक्सली संगठन में नई बहाली और रीसाइक्लिंग यानी पुराने कैडरों का वापस संगठन में लौटना पूरी तरह से बंद हो गया है. झारखंड के तमाम वैसे नक्सली क्षेत्र जहां पूर्व में ट्रेनिंग सेंटर चला करते थे वह भी बंद हो चुके हैं. पुलिस के लगातार किए जा रहे प्रहार की वजह से छोटे कैडर फरार हो चुके हैं, वहीं नए युवा संगठन से किनारा कर रहे हैं.
डीजीपी के अनुसार वर्तमान समय में जिन इलाकों में झारखंड पुलिस और केंद्रीय बलों के द्वारा बड़े अभियान चलाकर नक्सलियों को खदेड़ दिया गया है, वहां की वस्तु स्थिति फिलहाल ऐसी ही है, इन इलाकों में छोटे कैडरों के पास ना हथियार है, ना गोलियां और ना ही रसद. जिनके बल पर वे संगठन को आगे बढ़ा सके. ऐसे दर्जन भर छोटे कैडर संगठन छोड़ कर फरार हो चुके हैं.
बूढ़ापहाड़, पारसनाथ, सारंडा और बुलबुल जैसे ट्रेनिंग कैंप पर पुलिस का पहरा
झारखंड में नक्सलियों की नई बहाली और ट्रेनिंग सेंटर के लिए चार सबसे विख्यात जगह थे, पहला बूढ़ा पहाड़, दूसरा पारसनाथ, तीसरा बुलबुल जंगल और चौथा सारंडा जंगल. पहले तीन स्थानों से नक्सलियों को पूरी तरह से खदेड़ दिया गया है, उनके ट्रेनिंग कैंप को नष्ट कर दिया गया है. जिन स्थानों पर नई बहाली के लिए पर्चे जारी होते थे, ग्रामीणों को संगठन में आने के लिए धमकियां दी जाती थी, उनमें से अधिकांश इलाकों से नक्सलियों को बाहर कर दिया गया है.
ऐसे में एकमात्र सारंडा ही ऐसा जगह बच गया है, जहां 60 से ज्यादा नक्सली जमा हैं. जिसमें कई एक करोड़ के इनामी भी हैं. लेकिन इस इलाके में भी नक्सली अपनी ट्रेनिंग कैंप और नई बहाली को बंद करके रखे हुए हैं, क्योंकि नए कैडर उनके पास पहुंच ही नहीं पा रहे हैं.
रसद पर लग गई है ब्रेक