लखनऊःभारत में इस समय अनुमानतः मुस्लिमों की आबादी 16.51 फीसदी है. वहीं, उत्तर प्रदेश में करीब 20 फीसदी मुसलमान यानि 3.84 करोड़ हैं. जबकि चुनाव दर चुनाव इनके प्रतनिधियों की संख्या कम हो रही है. इस बार केंद्र सरकार में भी जम्बो मंत्रिमंडल का गठन हुआ लेकिन एक मुस्लिम सांसद ने जगह बना पाई. यूपी से इस बार लोकसभा चुनाव 5 फीसदी यानि सिर्फ 4 मुस्लिम उम्मीदवार जीतने में सफल हुए हैं. इनमें से 3 सपा और 1 कांग्रेस से हैं. वहीं, पूरे देश में 24 मुस्लिम सांसद निर्वाचित हुए हैं. जिनमें से 21 इंडिया गठबंधन के हैं.
सबसे अधिक बसपा ने उतारे थे मुस्लिम उम्मीदवार
लोकसभा चुनाव में कुल 79 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में थे. इनमें से 57 निर्दलीय छोटी पार्टियों से थे. उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 17 मुस्लिम नेताओं को बसपा ने टिकट दिए थे, लेकिन जीत एक भी नहीं पाए. वहीं, सपा ने 4 तो कांग्रेस ने 1 उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा था. समाजवादी पार्टी के 3 मुस्लिम उम्मीदवार सांसद चुने गए हैं. जिनमें कैराना से इकरा हसन, संभल से जियाउर रहमान, गाजीपुर से अफजाल अंसारी जीते हैं. जबकि कांग्रेस ने सहरानपुर से मकसूद को टिकट दिया था, जीत दर्ज करने में कामयाब रहे.
भाजपा की मुसलमानों की प्रति सोच
चौंकाने वाली बात है कि चुनाव के समय 'मुस्लिम भाई जान' और मुस्लिम समुदाय की हक की बात करने वाली भाजपा ने उत्तर प्रदेश में किसी मुस्लिम चेहरे को टिकट नहीं दिया था. इतना ही नहीं पूरे देश में सिर्फ केरल के मलप्पुरम से एम अब्दुल सलाम से उम्मीदवार बनाया था. अब इस आंकड़ों से साफ पता चलता है कि भारतीय जनता पार्टी को मुस्लिम समाज से कितना लगाव है. यही वजह है कि मुस्लिम समाज कभी भाजपा के पक्ष में मतदान नहीं करता है. इस बार भी ऐसा हुआ. अब भले ही भाजपाई भले मुस्लिम समाज पर धोखा देने की बात कह रहे हैं.
बसपा की रणनीति नहीं काम आई
बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का मुस्लिम समाज कोर वोटर माना जाता है. लेकिन इस बार 17 मुस्लिम चेहरे को टिकट देने वाली बसपा का दांव उलटा पड़ गया. मुस्लिम समुदाय बसपा से पूरी तरह कट गया और इंडिया गठबंधन में मिल गया. एक भी सीटें न जीत पाने पर बसपा सुप्रीमो को कहना पड़ा कि मुस्लिम समाज के नेताओं को टिकट देने के बारे में अगली बार सोचेंगी.