पलामूः झारखंड का पलामू जिला, नक्सल, पोस्ता की खेती और सुखाड़ के लिए हमेशा से चर्चा में रहा है. सरकारी पहल के बाद अब नक्सलवाद पर लगाम लगा है. पोस्ता (अफीम) की खेती पर पुलिस का डंडा लगातार चल रहा है. अब ऐसे सुदूर अंचल में भी बदलाव की बयार चल पड़ी है. मुख्यधारा से जुड़ने की प्रबल इच्छाशक्ति लिए, आदिम जनजाति परिवार अब पोस्ता छोड़ मड़ुआ को अपना साथी बनाने जा रहे हैं.
मड़ुआ की खेती पोस्ता वाले इलाके में बदलाव लाएगी, इस बदलाव के वाहक आदिम जनजाति के परिवार बनने वाले हैं. झारखंड के कई इलाकों में पोस्ता की खेती है और इसको रोकना शासन-प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है. कई स्तर पर पहल और कार्रवाई की जा रही है लेकिन पोस्ता की खेती का दायरा बढ़ता जा रहा है.
झारखंड में पलामू का इलाका पोस्ता की खेती के लिए चर्चित रहा है. पोस्ता से पहले पलामू का इलाका मड़ुआ और मोटे अनाज की खेती के लिए चर्चित रहा है. झारखंड सरकार ने पोस्ता की खेती से प्रभावित वाले इलाके में लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए मड़ुआ की खेती से जोड़ने की योजना तैयार की है. सरकार द्वारा नक्सल प्रभावित इलाके में आदिम जनजाति परिवारों को मड़ुआ की खेती से जोड़ा जा रहा है. झारखंड लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के माध्यम से आदिम जनजाति परिवारों को मड़ुआ का बीज उपलब्ध करवाया गया है.
बंजर जमीन में मड़ुआ खेती के लिए किया जा रहा प्रेरित
बंजर जमीन पर मड़ुआ की खेती करने के लिए आदिम जनजाति के परिवारों को प्रेरित किया जा रहा है, उन्हें इससे जोड़ा गया है. पलामू के अतिनक्सल प्रभावित इलाका मनातू के दलदलिया में 200 से अधिक परिवारों को मड़ुआ का बीज उपलब्ध करवाया गया है. दलदलिया का इलाका पोस्ता की खेती के साथ-साथ मानव तस्करी के लिए चर्चित रहा है. आदिम जनजाति का परिवार के सदस्य बड़ी संख्या में पलायन कर गए है. दलदलिया की रहने वाली आदिम जनजाति महिला सूरत देवी ने बताया कि वो खेती करना चाहते हैं, खेती से ही इलाके में बदलाव होगा. इससे पहले वो गेंहू की खेती कर रही थीं. इस बार मड़ुआ की खेती करने वाले है, 15 दिनों में इसकी शुरुआत होगी.
आदिम जनजाति परिवारों को दिया गया प्रशिक्षण