नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि मदरसे उचित शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त जगह है और यह मनमाने तरीके से काम करते हैं. ये संवैधानिक जनादेश, शिक्षा का अधिकार अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम 2015 का समग्र उल्लंघन करते हैं.
NCPCR ने अपने लिखित कथन में कहा कि मदरसा शिक्षा बोर्ड को अकादमिक प्राधिकरण नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि यह केवल परीक्षा आयोजित करने की शक्ति रखने वाली बॉडी है और बोर्ड द्वारा ली जाने वाली परीक्षाएं NCERT और SCERT द्वारा बनाए गए कोर्स के बिल्कुल विपरीत हैं, जिससे मदरसा के छात्र के शिक्षा के अधिकार के दायरे में आने वाले छात्रों से पीछे रह जाते हैं.
आयोग ने कहा कि यह शिक्षा के लिए बच्चे के मौलिक संवैधानिक अधिकार का घोर उल्लंघन है, जो पूरी तरह से धर्म के संदर्भ में शिक्षा प्रदान करता है और जो आरटीई अधिनियम 2009 या किसी अन्य लागू कानून की आवश्यकताओं का पालन नहीं करता है. इसमें कहा गया है कि मदरसों में शिक्षा के धार्मिक विषय को संस्थागत बना दिए जाने के परिणामस्वरूप मासूम बच्चे पीड़ित हैं.
शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त स्थान है मदरसा
आयोग ने अपने बयान में कहा, "मदरसा न केवल 'उचित' शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त स्थान है, बल्कि यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 19, 21,22, 23, 24, 25 और 29 के तहत छात्रों को वंचित करता है. इसके अलावा, मदरसा न केवल शिक्षा के लिए एक असंतोषजनक और अपर्याप्त मॉडल प्रस्तुत करता है, बल्कि इसके काम करने का एक मनमाना तरीका भी है, जिसमें पूरी तरह से एक स्टैंडराइज्ड करिकुलम और कार्यप्रणाली का अभाव है."
आयोग ने यह लिखित दलील उत्तर प्रदेश में मदरसा से संबंधित अंजुम कादरी द्वारा दायर मामले में दायर की थी. 5 अप्रैल, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 22 मार्च 2024 को पारित आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 के प्रावधानों को रद्द कर दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि प्रथम दृष्टया में उसका मानना है कि कानून में धार्मिक शिक्षा का प्रावधान नहीं है और छात्रों को विज्ञान, गणित और सामाजिक अध्ययन जैसे धर्मनिरपेक्ष विषयों की भी शिक्षा दी जाती है.
इस्लाम की सर्वोच्चता के पाठ
आयोग ने कहा कि मदरसा बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध किताबों की लिस्ट के अवलोकन से यह भी पता चला है कि उनके कोर्स में शामिल की गई दीनियात की किताबों में भी आपत्तिजनक मटैरियल है. आयोग ने दलील दी कि वेबसाइट पर उपलब्ध दीनियातकी किताबों के अवलोकन से यह पाया गया है कि निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार मदरसा बोर्ड पुस्तकों के माध्यम से इस्लाम की सर्वोच्चता के बारे में पाठ पढ़ा रहा है.