अजमेर : सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में आस्था का सैलाब उमड़ रहा है. लाखों लोग दरगाह में हाजिरी लगाने के लिए आ रहे हैं. वहीं, ख्वाजा गरीब नवाज के जीवन से जुड़ा एक अन्य स्थान अजमेर में है, जिसके बारे कम ही लोग जानते हैं. जिनको इस पवित्र स्थान के बारे में मालूम है वे यहां आकर जियारत करना नहीं भूलते हैं. हम बात कर रहे हैं ख्वाजा गरीब नवाज के चिल्ले की, जहां अजमेर आने पर ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती सबसे पहले आकर रुके थे. यहां रहकर उन्होंने खुदा की इबादत की थी. मान्यता है कि जब ख्वाजा गरीब नवाज चिल्ले को छोड़कर गए थे तो उनकी याद में पहाड़ भी रो पड़ा था, जिसके निशान आज भी मौजूद हैं.
इबादत और आध्यात्मिक का पहला स्थान :ख्वाजा गरीब नवाज के चिल्ले के खादिम सैयद इकबाल चिश्ती ने बताया कि ख्वाजा गरीब नवाज लंबा सफर तय कर संजर से अजमेर आए थे. मार्ग की दुख तकलीफ को सहन करते हुए ख्वाजा गरीब नवाज अजमेर आकर आनासागर के नजदीक पहाड़ी पर स्थित गुफा में रहा करते थे. यहीं रहकर गरीब नवाज ने लंबे समय तक खुदा की इबादत की. इस दौरान ख्वाजा गरीब नवाज लोगों से भी मिला करते थे और उनकी दुख तकलीफों को दूर किया करते थे. यहां रहते हुए वे लोगों को मोहब्बत और मानवता का संदेश दिया करते थे. उनकी सादगी और आध्यात्मिक जीवन शैली लोगों को आकर्षित किया करती थी. चिश्ती बताते हैं कि एक बार किसी ने उन्हें आनासागर झील से पानी लेने नहीं दिया था. मान्यता है कि इसपर उन्होंने झील का सारा पानी अपने बर्तन में ले लिया था. व्यक्ति ने जब उनसे माफी मांगी तब झील पानी से फिर से लबालब हो गई.
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रो पड़ा था पहाड़ :उन्होंने बताया कि ख्वाजा गरीब नवाज के चिल्ले के बारे में कम ही लोगों को पता है, लेकिन जिन लोगों को पता है वह यहां जियारत के लिए जरूर आते हैं. यह स्थान अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज का पहला आध्यात्मिक और इबादत का स्थल रहा है. मान्यता है कि ख्वाजा गरीब नवाज जब यहां से रुखसत होकर वर्तमान दरगाह के स्थान पर गए, तब उनकी जुदाई में पहाड़ भी रो पड़ा था. पहाड़ की गुफा में ऊपर की ओर देखेंगे तो आज भी आंसुओं जैसी बूंदें नजर आती हैं, जो पथरीली हैं. यह करामात देखकर भी लोग दंग रह जाते हैं. ख्वाजा गरीब नवाज के चिल्ले पर लोग मन्नत के धागे बांधते हैं और अपने और अपने परिजनों की खुशहाली और सेहतमंदी की कामना करते हैं. ख्वाजा के करम से यहां लोगों की दिली मुरादें पूरी होती हैं.