नई दिल्ली : सीएए यानी सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (नागरिकता संशोधन अधिनियम) को देशभर में लागू कर दिया गया है. इसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आने वाले उन छह अल्पसंख्यक समुदायों के प्रवासियों/विदेशियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी, जो धार्मिक उत्पीड़न की वजह से यहां आए हैं. छह अल्पसंख्यक समुदाय हैं- हिंदू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी. इसमें मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया है.
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि मुस्लिम देशों में मुस्लिमों को धार्मिक प्रताड़ना का शिकार नहीं होना पड़ता है, इसलिए उन्होंने मुस्लिमों को शामिल नहीं किया है. उन्होंने कहा कि इसके बावजूद अगर मुस्लिम नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं, तो उनके आवेदन पर भारतीय नागरिकता कानून के तहत विचार किया जाएगा.
यहां इसका उल्लेख जरूरी है कि इस (सीएए) कानून की वजह से किसी भी विदेशी को भारत की नागरिकता प्राप्त करने में कोई दिक्कत नहीं होगी. कानून में उसके लिए पहले से व्यवस्था है, जिसके अनुसार वर्ग, धर्म और श्रेणी की वजह से उनके साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा. वे नागरिकता हासिल करने के लिए पहले की तरह आवेदन करते रहेंगे. नया कानून सिर्फ तीन देशों से ही संबंधित है, और वह भी गैर मुस्लिमों के लिए.
सीएए के तहत नागरिकता हासिल करने के लिए ऑनलाइन पोर्टल खोला गया है. पात्र व्यक्तियों को आवेदन करना होगा और सक्षम प्राधिकारी उनकी योग्यता जांच कर नागरिकता प्रदान करेंगे. सीएए के तहत नागरिकता देने का अधिकार केंद्र सरकार के पास होगा.
छठी अनुसूची में उल्लिखित इलाकों में नहीं लागू होगा सीएए
छठी अनुसूची में आने वाले क्षेत्रों और इनर लाइन परमिट वाले क्षेत्रों को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है. यानी सीएए की वजह से नॉर्थ ईस्ट में रहने वाले आदिवासियों या फिर अन्य स्थानीय लोगों के हितों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. इसका मतलब यह हुआ कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले छह अल्पसंख्यक समुदायों के लोग यदि इन इलाकों में वास कर रहे हैं, तो उन्हें यह इलाका खाली करना होगा.
सीएए को 11 दिसंबर 2019 को पारित किया गया था. विपक्षी पार्टियां इसे मुस्लिम विरोधी बता रहीं हैं. प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि वह इस कानून का विरोध करती रहेंगी.