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केरल उच्च न्यायालय का बड़ा फैसला, 'पाकिस्तान में काम करने गया भारतीय दुश्मन नहीं' - Kerala High Court

पाकिस्तान में सिर्फ काम की तलाश में गया कोई भारतीय देश का दुश्मन नहीं हो जाता. यह आदेश केरल उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए दिया और शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया. यहां जाने क्या है पूरा मामला...

Kerala High Court
केरल उच्च न्यायालय (फोटो - ETV Bharat Kerala Desk)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 26, 2024, 12:32 PM IST

कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि कोई व्यक्ति भारत रक्षा अधिनियम, 1971 के नियम 130 और 138 के तहत सिर्फ इसलिए दुश्मन नहीं बन जाता कि वह काम की तलाश में पाकिस्तान चला गया है. न्यायालय ने यह भी कहा कि जब तक वह किसी दुश्मन के साथ व्यापार नहीं करता, तब तक वह इस अधिनियम के तहत दुश्मन नहीं बन जाता.

अदालत का यह फैसला याचिकाकर्ता पी. उमर कोया द्वारा अपने पिता कुंजी कोया और उनके रिश्तेदारों से आस-पास की कुछ जमीन और संपत्ति खरीदने से संबंधित मामले में आया है. अदालत के बयान ने याचिकाकर्ता के पिता कुंजी कोया, जो कुछ समय तक कराची के एक होटल में काम करते थे, उनकी स्वामित्व वाली संपत्तियों के खिलाफ शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया.

जानकारी के अनुसार जब पी. उमर कोया संपत्ति कर का भुगतान करने गए, तो ग्राम अधिकारी ने यह कहते हुए टैक्स लेने से इनकार कर दिया कि उनके पास भारतीय शत्रु संपत्ति अभिरक्षक (सीईपीआई) के आदेश हैं, क्योंकि शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के तहत कार्यवाही शुरू कर दी गई है.

उन्होंने बताया कि यह कार्रवाई विदेश व्यापार मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार की गई है. याचिकाकर्ता ने कहा कि नागरिकता अधिनियम के तहत केंद्र सरकार ने निहित शक्तियों के साथ विधिवत आदेश दिया था कि उनके पिता भारतीय नागरिक हैं, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ.

लेकिन न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता के पिता रोजगार की तलाश में पाकिस्तान गए थे और उन्होंने वहां कुछ समय तक काम किया था तथा उन्हें भारत रक्षा अधिनियम के नियम 130 और 138 के तहत 'शत्रु' की परिभाषा में नहीं लाया जा सकता. न्यायालय ने माना कि 1971 अधिनियम की धाराएं पूरी तरह से अलग उद्देश्य के लिए प्रदान की गई थीं और यह इस संदर्भ से बाहर थी तथा मामले के तथ्यों के लिए अप्रासंगिक थी.

न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता के पिता को इनमें से किसी भी परिभाषा के तहत शत्रु नहीं माना जा सकता, क्योंकि याचिकाकर्ता के खिलाफ सीईपीआई द्वारा शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया गया तथा ग्राम अधिकारी को संपत्ति का मूल कर वसूलने का निर्देश दिया गया.

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