श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और कांग्रेस ने गठबंधन किया है. दोनों दलों का कहना है कि वे जम्मू-कश्मीर में 'भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने' के लिए एक साथ आए हैं. लेकिन श्रीनगर की एक महत्वपूर्ण विधानसभा सीट पर गठबंधन में दरार दिख रही है. यहां गठबंधन उम्मीदवार तारिक हमीद कर्रा के लिए एनसी के ही बागी नेता चुनौती बन गए हैं.
जम्मू-कश्मीर कांग्रेस (पीसीसी) के अध्यक्ष कर्रा ने सेंट्रल शाल्टेंग सीट से नामांकन किया है. कांग्रेस नेतृत्व ने सीट बंटवारे की बातचीत में कर्रा के लिए सेंट्रल शाल्टेंग सीट पर एनसी के साथ टकड़ी सौदेबाजी' की. लेकिन कर्रा और गठबंधन को तब झटका लगा, जब एनसी के पूर्व विधायक इरफान शाह ने पार्टी के फैसले के खिलाफ बगावत कर दी और अब निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.
इरफान शाह पूर्व मंत्री और एनसी के महासचिव गुलाम मोहिद्दीन शाह के बेटे हैं, उनकी गिनती एनसी के वफादारों में होती है. लेकिन उन्हें टिकट न दिए जाने से उनकी बगावत नहीं भड़की, बल्कि बटमालू में पुरानी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता फिर से ताजा हो गई.
शाह और कर्रा श्रीनगर में पुराने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं. हालांकि, दोनों की राजनीतिक जड़ें नेशनल कॉन्फ्रेंस में हैं, जो नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के साथ थे.
शाह के पिता गुलाम मोहिद्दीन शाह नेशनल कॉन्फ्रेंस के पूर्व मंत्री और महासचिव तथा बटमालू से विधायक थे. कर्रा के दादा गुलाम मोहिद्दीन कर्रा नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख अब्दुल्ला के सुनहरे दिनों में उनके संगठनात्मक आधार थे; बाद में दोनों राजनेता कट्टर प्रतिद्वंद्वी बन गए. गुलाम मोहिद्दीन कर्रा ने 1953 में नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक के साथ मतभेदों के बाद अपना राजनीतिक मंच स्थापित किया था. गुलाम मोहम्मद सादिक ने बख्शी गुलाम मोहम्मद का समर्थन किया था, जब 1953 में जवाहरलाल नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर जेल भेज दिया था. सादिक भी कर्रा वंश से थे.
तारिक कर्रा के दादा गुलाम मोहिद्दीन कर्रा का 1996 में निधन हो गया था, जिसके बाद कर्रा परिवार चुनावी राजनीति से दूर हो गया था. तारिक कर्रा ने 1996 के बाद कुछ समय के लिए एनसी में शामिल होकर इसे पुनर्जीवित किया और फिर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) में शामिल होकर इसके महासचिव बन गए.
शाह और कर्रा के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता
शाह और कर्रा के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता 2002 से फिर से शुरू हुई जब तारिक कर्रा ने 2002 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी के टिकट पर बटमालू से गुलाम मोहिद्दीन शाह के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. गुलाम मोहिद्दीन शाह के निधन के बाद 2004 में हुए उपचुनाव में कर्रा ने एनसी से यह सीट छीन ली थी. पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन सरकार में कर्रा को वन मंत्री बनाया गया था, जिसका नेतृत्व पीडीपी संरक्षक दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद कर रहे थे.
2008 के विधानसभा चुनाव में कर्रा को इरफान शाह से 2,500 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. 2014 के विधानसभा चुनावों में पीडीपी ने फिर से यह सीट जीती थी, जब कर्रा के करीबी नूर मोहम्मद शेख ने इरफान शाह के खिलाफ 4000 वोटों से सीट जीती थी. हालांकि, नूर शेख अब अपनी पार्टी छोड़ने के बाद कर्रा के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. वह पीडीपी छोड़ने के बाद 2021 में अपनी पार्टी में शामिल हो गए थे.
कर्रा ने 2014 के संसदीय चुनावों में श्रीनगर से एनसी अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला को भी हराया था, जब वह पीडीपी उम्मीदवार थे, लेकिन हिज्बुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद भड़के विरोध प्रदर्शनों में नागरिकों की हत्या के बाद उन्होंने सितंबर, 2016 में लोकसभा और पीडीपी से इस्तीफा दे दिया था.