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युवाओं पर भारी पड़ रही सिजोफ्रेनिया, बुजुर्गों से ज्यादा शिकार हो रही नई पीढ़ी! - SCHIZOPHRENIA

जम्मू-कश्मीर में एक फीसदी से ज्यादा सिजोफ्रेनिया के मरीजों होने की संभावना है. डॉक्टर ने बताया कि क्या है इसके लक्ष्ण.

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सिजोफ्रेनिया. (सांकेतिक तस्वीर.) (ETV Bharat)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 21, 2025, 1:52 PM IST

श्रीनगर: भारत में एक फीसदी से ज्यादा आबादी सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारी से प्रभावित है. लेकिन अभी तक इनमें से 20 से 30 फीसदी मरीज ही सामने आए हैं. मनोचिकित्सकों ने बताया कि अगर शुरुआती दौर में ही इलाज शुरू कर दिया जाए तो 90 फीसदी प्रभावित मरीज सामान्य जीवन जी सकते हैं. जम्मू-कश्मीर में भी एक फीसदी से ज्यादा मरीजों के होने की संभावना है.

क्या होता है सिजोफ्रेनियाःयह एक मानसिक बीमारी है जो व्यक्ति के सोचने, समझने, प्रतिक्रिया करने और दुनिया को देखने के तरीके को बुरी तरह प्रभावित करती है. व्यक्ति वास्तविक और अवास्तविक जीवन में अंतर करना भूल जाता है और अनियंत्रित भावनाओं के कारण उसके लिए सामान्य जीवन जीना मुश्किल हो जाता है. यह मानसिक बीमारी युवाओं को बुजुर्गों से ज्यादा प्रभावित करती है. कई बार यह किशोरावस्था में भी होती है. इसका कारण आनुवांशिक या पर्यावरणीय हो सकता है.

जम्मू का मेंटल हॉस्पिटल. (ETV Bharat)

जम्मू में मरीजों की संख्याः जम्मू-कश्मीर में 18 से 40 वर्ष की आयु के 40 फीसदी, 41 से 60 वर्ष की आयु के 13 फीसदी और 60 वर्ष से अधिक आयु के 12 फीसदी लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं. इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज के वरिष्ठ प्रोफेसर अरशद हुसैन ने बताया कि इस बीमारी से प्रभावित लोगों की दर पूरी दुनिया में एक जैसी है. कुछ सर्वेक्षणों के अनुसार घाटी में इन रोगियों की दर 0.8 प्रतिशत है. उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर मानसिक बीमारी है जो लोगों की सोच, व्यवहार और भावनाओं को प्रभावित करती है.

क्या हैं इसके लक्ष्णः

  • रोगी लोगों से मिलने से डरता है.
  • रोगी को अलग-अलग आवाज़ें सुनाई देती हैं.
  • किसी वस्तु या व्यक्ति की अनुपस्थिति में, वह वस्तु या व्यक्ति दिखाई देने लगता है.
  • रोगी के मन में ऐसे विचार आते हैं जिन पर वह पूरी तरह से विश्वास करता है लेकिन उनकी कोई वास्तविकता नहीं होती है.
  • उन्हें लगता है कि दूसरे लोग उसके दुश्मन हैं और उसे नुकसान पहुंचाना चाहते हैं.
  • इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को कम या फिर बहुत अधिक नींद आती है.

कैसे होती है मरीज की पहचानः डॉ. अरशद ने कहा कि इस मनोवैज्ञानिक विकार के लक्षण 18 वर्ष की आयु के बाद दिखाई देते हैं. बच्चों में इन लक्षणों की पहचान करना आसान नहीं है. इनमें से केवल 30 से 40 प्रतिशत मरीज ही पंजीकृत हैं और उनका इलाज किया जा रहा है. उनमें से अधिकांश बेघर हैं. मनोचिकित्सकों ने कहा कि यह वास्तव में एक दीर्घकालिक मानसिक बीमारी है जिसका तुरंत निदान नहीं किया जा सकता है. किसी मरीज में सिज़ोफ्रेनिया का निदान करने के लिए रक्त परीक्षण, मस्तिष्क स्कैन और विशेष लक्षणों का मूल्यांकन किया जाता है. उसके बाद ही डॉक्टर इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि मरीज सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित है.

डिस्क्लेमरः सिज़ोफ्रेनिया का इलाज दवा और मनोचिकित्सा से किया जाता है. गंभीर लक्षण वाले या खुद को या दूसरों को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों को अपनी स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए अस्पताल में रहने की आवश्यकता हो सकती है.

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