नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने इस कानूनी सवाल की समीक्षा मंगलवार को शुरू कर दी कि क्या राज्य सरकार को दाखिलों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 की वैधता का भी अध्ययन कर रही है जो अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए तय आरक्षण के तहत सरकारी नौकरियों में 'मजहबी सिख' और 'वाल्मीकि' समुदायों को 50 प्रतिशत आरक्षण और प्रथम वरीयता देता है.
पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, न्यायमूर्ति पंकज मिथल, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र मिश्रा शामिल हैं. पीठ 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिसमें पंजाब सरकार द्वारा दायर एक प्रमुख याचिका भी शामिल है जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती दी गयी है. उच्च न्यायालय ने पंजाब कानून की धारा 4(5) को असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया था जो 'वाल्मिकियों' और 'मजहबी सिखों' को अनुसूचित जाति का 50 फीसदी आरक्षण देती थी. अदालत ने कहा था कि यह प्रावधान ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय के 2004 के पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले का उल्लंघन करता है.