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आठ मार्च को ही क्यों मनाते हैं अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, जानें इतिहास - भारत में बाल विवाह

International Women's Day : दुनिया भर में महिलाएं अपने अधिकार को लेकर संघर्षरत हैं. भारत सहित कई देशों में विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मानकों पर महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन आज भी कई मामलों में सुधार को लेकर उनका आंदोलन जारी है. पढ़ें पूरी खबर..

International Women's Day
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Mar 7, 2024, 6:30 AM IST

हैदराबाद :पूरी दुनिया में 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. यह दिवस शिक्षा-प्रशिक्षण, रोजगार, वेतन-मानदेय, राजनीति, विज्ञान सहित अन्य सेक्टरों में महिलाओं की बराबरी के लिए आवाज बुलंद करने का दिन है. महिलाओं के विकास और बराबरी के रास्ते में आने वाली चुनौतियों को अवसरों में बदलकर सभी के लिए बेहतर भविष्य बनाने के लिए एकजुट होने का समय है. आज के समय में महिलाओं को शिक्षा, रोजगार, मेहनाताना में बराबरी का हक नहीं मिल पाया है. राजनीति में आज ज्यादातर जगहों पर महिलाओं को मिले अधिकारों का उपयोग उनके बेटे, पति व अन्य रिश्तेदार प्रतिनिधि के रूप में करते हैं. यही नहीं उनके लिए उपलब्ध सुविधाओं का उपभोग करते हैं.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

महिला दिवस का इतिहास
1975 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में नामित किया गया था. हालांकि, पहली बार 19 मार्च, 1911 को संयुक्त राज्य अमेरिका और कई यूरोपीय देशों में यह मनाया गया था. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का विचार 1908 के श्रमिक आंदोलन से उपजा है, जिसके दौरान कई महिला कपड़ा श्रमिकों ने बेहतर वेतन, कम काम के घंटे और मतदान के अधिकार की मांग करते हुए न्यूयॉर्क की सड़कों पर मार्च किया था. इस आंदोलन का नेतृत्व अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने किया था.

बाल विवाह के मामले में भारत की स्थिति

  1. बाल विवाह के मामले में भारत ने काफी काम किया है, लेकिन आज हमारी स्थिति काफी खराब है. यूनिसेफ की ओर से 2023 में जारी Ending Child Marriage: A profile of progress in India रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 3 में से 1 बाल वधू अभी भी हमारे देश में है.
  2. भारत में उन लड़कियों और महिलाओं की सबसे बड़ी संख्या है, जिनकी शादी बचपन में ही हो जाती है. वैश्विक स्तर पर भारत टॉप पर है. यह 34 फीसदी है.
  3. बाल वधुओं में 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियां शामिल हैं जिनकी पहले से ही शादी हो चुकी है, साथ ही सभी उम्र की महिलाएं भी शामिल हैं जिनकी पहली शादी बचपन में हुई थी.
  4. भारत में लगभग हर चार में से एक युवा महिला (23 प्रतिशत) अपने 18वें जन्मदिन से पहले विवाहित हो चुकी है.
  5. भारत में बाल विवाह का प्रचलन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अलग-अलग है. पश्चिम बंगाल, बिहार और त्रिपुरा में कम से कम 40 प्रतिशत युवा महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो जाती है, जबकि लक्षद्वीप में यह आंकड़ा एक प्रतिशत है.
  6. भारत में जिन लड़कियों और महिलाओं की बचपन में शादी हो गई, उनमें से आधे से अधिक पांच राज्यों में रहती हैं: उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश. उत्तर प्रदेश सबसे बड़ी संख्या का घर है.
  7. किसी लड़की के बाल विवाह का जोखिम उसकी पृष्ठभूमि की कुछ विशेषताओं पर निर्भर करता है, जो लड़कियां ग्रामीण इलाकों में रहती हैं या गरीब घरों से आती हैं, उन्हें अधिक जोखिम होता है. और कम या बिना शिक्षा वाली लड़कियों में बाल वधुओं का अनुपात अधिक पाया जाता है.
  8. जिन युवतियों की बचपन में शादी हुई उनमें से अधिकांश ने किशोरावस्था में बच्चों को जन्म दिया.
  9. बाल वधुओं को अपनी शिक्षा जारी रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. 10 में से 2 से भी कम विवाहित लड़कियां स्कूल में रह पाती हैं.
  10. साक्ष्य बीते 15 वर्षों में इस मुद्दे पर बदलाव को दिखाते हैं. पिछली पीढ़ियों की तुलना में आज बाल विवाह की प्रथा कम हुआ है.
  11. दक्षिण एशिया के अन्य देशों की तुलना में भारत की प्रगति मजबूत है. बहरहाल, यदि 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करना है तो अतिरिक्त प्रयासों की आवश्यकता होगी.

राजनीति में महिलाओं को बराबरी का अधिकार कब
भारतीय राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी आज आजादी के सात दशक बाद भी अच्छी नहीं है. ज्यादातर महिलाएं सत्ता शीर्ष पर नहीं पहुंच पाती हैं. इसके पीछे मुख्य कारण सत्ता में महिलाओं को बराबरी की हिस्सेदारी नहीं दी जाती है. आज के समय में पूरे देश में एक मात्र पश्चिम बंगाल में महिला मुख्यमंत्री हैं. यही हाल लोक और विभिन्न राज्यों के विधान सभाओं में है. 2019 में लोक सभा चुनाव में 543 सीटों के लिए मात्र 78 महिलाएं चुनकर लोक सभा पहुंच पाईं. हालांकि 1952 से अबतक हुए आम चुनाव में लोक सभा पहुंचने वाली महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा है. हाल में महिलाओं को राजनीति में आरक्षण के लिए कानूनी प्रावधान किया गया है. कानूनी जटिलताओं के मानकों को पूरा कर यह कब जमीन पर उतरेगा, यह कहना कठीन है.

लोकसभा में महिलाओं की स्थिति

मासिक धर्म अवकाश के लिए महिलाओं को इंतजार
भारत में मासिक धर्म अवकाश आज तक कोई वैधानिक अधिकार नहीं है. साथ ही अलग-अलग राज्य सरकारों की नीतियों में भिन्नता है. वहीं निजी क्षेत्र में भी इसमें काफी अंतर है. आज के समय में ज्यादातर सेक्टर में महिलाओं और लड़कियों को पेड लीव नहीं है. कई जगहों पर लीव विदाउट पे देने में समस्या है. बिहार ऐसे कुछ राज्यों में है, जहां पर इस दिशा में काफी बेहतर काम किया गया है. वहां पर 1992 से दो दिन मासिक धर्म अवकाश का प्रावधान है. केरल के स्टेट यूनिवर्सिटीज में महिला छात्राओं के लिए मासिक धर्म अवकाश का प्रावधान किया गया है.

50 फीसदी महिलाओं तक ही सेनेटरी पेड की पहुंच
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NHFS-5) का आयोजन 2019-2021 के बीच किया गया था. इस दौरान कई पता चला कि देश में 15-24 आयु वर्ग की लगभग 50 फीसदी महिलायें मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के लिए कपड़े का उपयोग करती हैं. वे सेनेटरी पैड का उपयोग नहीं करती हैं.

जेंडर गैप रिपोर्ट 2023 के अनुसार भारत में वार्षिक जेंडर गैप रिपोर्ट में भारत आठवें पायदान पर चढ़ गया है. लिंग समानता के मामले में 146 देशओं में से 127वें स्थान है, जो बीते साल 135वें स्थान पर है.

महिलाओं के लिए केंद्र सरकार की योजनाएं

  1. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
  2. सुकन्या समृद्धि योजना
  3. कौशल भारत मिशन
  4. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
  5. वन-स्टॉप सेंटर
  6. स्टैंड अप इंडिया
  7. महिला शक्ति केंद्र
  8. महिला पुलिस स्वयंसेवक
  9. महिला हेल्पलाइन (181)
  10. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना

महिलाओं के लिए कानूनी अधिकार
लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए भारत में महिलाओं को पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न कानूनी अधिकार दिए गए हैं. उनके हितों की रक्षा करें. भारत में महिलाओं को मिलने वाले कुछ महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार नीचे दिए गए हैं:

  1. समानता का अधिकार
  2. शिक्षा का अधिकार
  3. काम का अधिकार
  4. स्वास्थ्य का अधिकार
  5. संपत्ति का अधिकार
  6. घरेलू हिंसा के विरुद्ध अधिकार
  7. विवाह और तलाक का अधिकार

समानता के लिए निवेश जरूरी

यदि हम समृद्ध अर्थव्यवस्था और एक स्वस्थ ग्रह बनाना चाहते हैं तो जीवन के सभी पहलुओं में लैंगिक समानता और महिलाओं की भलाई हासिल करना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. हालांकि, हम एक प्रमुख चुनौती का सामना कर रहे हैं: 2030 तक लिंग-समानता उपायों में चिंताजनक 360 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक घाटा का अनुमान हैय

8 मार्च, 2024 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 'महिलाओं में निवेश: प्रगति में तेजी लाएं' विषय के तहत हमसे जुड़ें, और हैशटैग #InvestInWomen का उपयोग कर अभियान में ज्यादा से ज्यादा लोगों से शामिल होने के लिए अनुरोध किया जा रहा है.

वैश्विक स्थिति

  1. 1984 में, ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया का पहला महिला बजट पेश किया, जिससे कई अन्य लोगों के लिए भी इसे फॉलो करने का मार्ग प्रशस्त हुआ.
  2. लिंग-समानता उपायों पर खर्च करने में 360 बिलियन अमरीकी डालर की भारी वार्षिक कमी के साथ वित्तपोषण की चिंताजनक कमी है.
  3. सरकारी सहायता का केवल 5 फीसदी महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा से निपटने पर केंद्रित है, और 0.2 फीसदी से भी कम है. इसकी रोकथाम के लिए निर्देशित है.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार महिलाओं के बेहतर विकास के लिए पांच प्रमुख क्षेत्रों में कार्रवाई पर बल दिया गया है.

  1. महिलाओं में निवेश, एक मानवाधिकार मुद्दा: समय समाप्त होता जा रहा है. लैंगिक समानता सबसे बड़ी मानवाधिकार चुनौती है, जिससे सभी को लाभ होगा.
  2. गरीबी खत्म करना: कोविड महामारी और कई अन्य संघर्षों के कारण, 2020 से 75 मिलियन अधिक लोग गंभीर गरीबी में गिर गए हैं. 2030 तक 342 मिलियन से अधिक महिलाओं और लड़कियों को गरीबी में रहने से रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई जरूरी है.
  3. लिंग-उत्तरदायी वित्तपोषण को लागू करना: संघर्ष और बढ़ती कीमतों के कारण 75 फीसदी देश 2025 तक सार्वजनिक खर्च में कटौती कर सकते हैं, जिससे महिलाओं और उनकी आवश्यक सेवाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
  4. हरित अर्थव्यवस्था और देखभाल वाले समाज में स्थानांतरण:वर्तमान आर्थिक व्यवस्था महिलाओं पर असंगत रूप से प्रभाव डालती है. अधिवक्ता महिलाओं की आवाज को बुलंद करने के लिए हरित अर्थव्यवस्था और देखभाल समाज में बदलाव का प्रस्ताव रखते हैं.
  5. नारीवादी परिवर्तनकर्ताओं का समर्थन: अग्रणी प्रयासों के बावजूद, नारीवादी संगठनों को आधिकारिक विकास सहायता का केवल 0.13 फीसदी प्राप्त होता है.

संयुक्त राष्ट्र : वैश्विक लैंगिक समानता के लिए 2030 का लक्ष्य
संयुक्त राष्ट्र महिला और संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग की यह वार्षिक समीक्षा 17 सतत विकास लक्ष्यों के ढांचे के भीतर लैंगिक समानता की स्थिति की जांच करती है. वर्तमान दर के आधार पर, हम 2030 तक 340 मिलियन से अधिक महिलाओं और लड़कियों को अत्यधिक गरीबी में छोड़ने का जोखिम उठाते हैं, और चिंताजनक रूप से 4 प्रतिशत उस वर्ष तक अत्यधिक खाद्य असुरक्षा से जूझ सकते हैं.

  1. लक्ष्य 1:कोई गरीबी नहीं: रिपोर्ट का अनुमान है कि 2030 तक, वैश्विक महिला आबादी का 8 प्रतिशत (लगभग 342 मिलियन महिलाएं और लड़कियां) प्रतिदिन 2.15 अमेरिकी डॉलर से कम पर जीवन यापन करना जारी रखेंगी.
  2. लक्ष्य 2: शून्य भूख: जबकि खाद्य असुरक्षा में लिंग अंतर को कम करने में प्रगति हुई है, लगभग 24 प्रतिशत महिलाओं और लड़कियों को 2030 तक मध्यम से गंभीर खाद्य असुरक्षा का अनुभव हो सकता है.
  3. लक्ष्य 3: अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण: जबकि 2000 से 2020 तक वैश्विक स्तर पर मातृ मृत्यु दर में कमी आई है, 2015 के बाद से प्रगति रुक गई है.
  4. लक्ष्य 4: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा: शिक्षा में लड़कियों के नामांकन में वृद्धि सराहनीय है, लेकिन यदि प्रगति रुकी तो 2030 तक लगभग 110 मिलियन लड़कियां और युवा महिलाएं स्कूल से बाहर रह सकती हैं. शिक्षा और प्रशिक्षण के अवसरों में लैंगिक अंतर बना हुआ है.
  5. लक्ष्य 5: लैंगिक समानता: लैंगिक समानता में सीमित प्रगति देखी गई है, इस लक्ष्य के केवल दो संकेतक अपने लक्ष्य के करीब हैं. कोई भी संकेतक अपने लक्ष्य को पूरी तरह से पूरा नहीं कर पाया है.
  6. लक्ष्य 6: स्वच्छ जल और स्वच्छता: जबकि अधिक महिलाओं के पास अब सुरक्षित पेयजल तक पहुंच है, लगभग 380 मिलियन महिलाएं और लड़कियां उच्च या गंभीर जल तनाव के बीच रहती हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक यह संख्या बढ़कर 674 मिलियन हो जाने का अनुमान है.
  7. लक्ष्य 7: सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा: 2030 तक लगभग 341 मिलियन महिलाओं और लड़कियों के पास बिजली की पहुंच नहीं हो सकती है, साथ ही खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन कई लोगों की पहुंच से बाहर रहेगा. सार्वभौमिक बिजली 2050 तक 185 मिलियन महिलाओं और लड़कियों को गरीबी से ऊपर उठा सकती है.
  8. लक्ष्य 8: अच्छा काम और आर्थिक विकास: बाधित करियर, देखभाल की ज़िम्मेदारियां और वेतन भेदभाव का मतलब है कि महिलाएं श्रम से उत्पन्न वैश्विक आय का केवल एक तिहाई कमाती हैं. पुरुषों द्वारा श्रम आय में अर्जित प्रत्येक डॉलर के लिए, महिलाओं ने केवल 51 सेंट अर्जित किए.
  9. लक्ष्य 9:उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढांचा: एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) नौकरियों में 21 प्रतिशत महिलाएं हैं और तीन शोधकर्ताओं में से केवल एक महिला है.
  10. लक्ष्य 10:असमानताओं को कम करना:लैंगिक भेदभाव कई रूपों में होता है और आम बात बनी हुई है, जो मानवाधिकारों को कमजोर करती है. नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, एचआईवी से पीड़ित 21 प्रतिशत लोगों ने पिछले 12 महीनों में स्वास्थ्य देखभाल से वंचित होने की सूचना दी है.
  11. लक्ष्य 11: टिकाऊ शहर: 2050 तक, शहरी क्षेत्रों में दुनिया की 70 प्रतिशत महिला आबादी, जो कुल 3.3 अरब है, रहने की उम्मीद हैं. चिंताजनक रुझान से पता चलता है कि इनमें से एक तिहाई महिलाएं और लड़कियां अपर्याप्त आवास या झुग्गियों में रह रही हैं.
  12. लक्ष्य 12-15:जिम्मेदार उत्पादन और उपभोग, जलवायु कार्रवाई, पानी के नीचे जीवन, जमीन पर जीवन: ग्लोबल वार्मिंग के कारण बिगड़ती स्थितियों के कारण मध्य सदी तक 158 मिलियन से अधिक महिलाएं और लड़कियां खुद को गरीबी में पा सकती हैं. यह उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में 16 मिलियन अधिक दर्शाता है.
  13. लक्ष्य 16:शांति और मजबूत संस्थान: 2017 के बाद से, संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में महिलाओं और लड़कियों की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 2022 तक 614 मिलियन तक पहुंच गई है. 2023 में, बेहद नाजुक क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएं विशेष रूप से असुरक्षित थीं.
  14. लक्ष्य 17:साझेदारी: उन देशों में बढ़ी हुई वित्तीय सहायता की सख्त जरूरत है जहां लैंगिक समानता सबसे ज्यादा पिछड़ी हुई है. मुख्य उद्देश्य के रूप में लैंगिक समानता को समर्पित वार्षिक बजट 5.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निचले स्तर पर है, जो कुल द्विपक्षीय सहायता का केवल 4 प्रतिशत है.

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