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पश्चिमी देशों में मजबूत हो रहे प्रवासी, आखिर क्या है इन राष्ट्रों की मजबूरी? जानिए असली वजह - International Labour Day 2024 - INTERNATIONAL LABOUR DAY 2024

INTERNATIONAL LABOUR DAY 2024 : दुनिया भर के श्रमिकों के अमूल्य योगदान का सम्मान करने के लिए एक मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है. इस दिन श्रमिकों के अधिकारों की बात की जाती है. लेकिन एक महत्वपूर्ण तथ्य ये भी है कि पश्चिमी देशों में प्रवासी श्रमिकों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसा क्यों हो रहा है? इसके फायदे और नुकसान क्या हैं. विस्तार से पढ़िए खास खबर.

INTERNATIONAL LABOUR DAY 2024
पश्चिमी देशों में मजबूत हो रहे प्रवासी

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Apr 30, 2024, 8:32 PM IST

Updated : Apr 30, 2024, 10:09 PM IST

हैदराबाद :पश्चिमी देश बाहरी देशों के श्रम का फायदा उठाकर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में लगे हैं. लेकिन कहते हैं कि एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं. अप्रवासी श्रमिकों के मामले में भी ऐसा ही है. अब पश्चिमी देश एक तरह से बाहरी श्रम पर इतना ज्यादा निर्भर होते जा रहे हैं, जिसका उनको खमियाजा भी भुगतना पड़ रहा है. कनाडा जैसे देश में इनकी आबादी इस कदर बढ़ गई है कि वहां की सरकार को भी इनके आगे झुकना पड़ रहा है. कनाडा के पीएम ट्रडो जिस तरह से सिख आबादी के पक्ष में बयान दे रहे हैं उससे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.

पश्चिमी देशों में मजबूत हो रहे प्रवासी

बात अमेरिका की करें तो यहां एक विचार अब ये उभर रहा है कि आप्रवासी श्रमिकों की वजह से उनके लोगों को नौकरियों में नुकसान हो रहा है. कनाडा और ब्रिटेन का भी यही हाल है.समय-समय पर इसे लेकर पश्चिमी देशों में प्रदर्शन भी होते रहे हैं.

कुशल और सस्ता श्रम : दरअसल पश्चिमी देशों में कुशल कामगारों की कमी है. बहुत से ऐसे काम हैं जो उनके अपने नागरिक करना भी नहीं चाहते हैं. इसकी वजह उनकी आय का स्तर और विलासतापूर्ण लाइफस्टाइल है. मजबूरन ऐसे राष्ट्र बाहरी देशों के लोगों को रोजगार देकर अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ा रहे हैं. रिपोर्टों के मुताबिक पश्चिमी देश बाहरी देशों के कामगारों को इसलिए भी रोजगार देते हैं क्योंकि उन्हें स्थानीय लोगों के मुकाबले कम सैलरी देकर काम चल जाता है. वहीं, एशियाई देशों के लोगों को विदेशों में जाकर अच्छी कमाई का मौका मिलता है.

पीएम ट्रडो

बढ़ रही बाहरी आबादी, मजबूत हो रहे बाहरी : इस सबके बीच एक चिंताजनक बात ये है कि इन राष्ट्रों में बाहरी आबादी बढ़ती जा रही है. दुनिया भर में प्रवासन बढ़ रहा है, जो अक्सर गंतव्य देशों में राजनीतिक सत्ता में बैठे लोगों के लिए चुनौती भी बनता जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक वैश्विक आबादी में अंतरराष्ट्रीय प्रवासी हिस्सेदारी 2010 में 3.2% से बढ़कर 2020 में 3.6% हो गई है. संयुक्त राज्य अमेरिका सबसे अधिक अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों का घर है.

पश्चिमी देशों में मजबूत हो रहे प्रवासी

क्या कहते हैं विश्व प्रवासन रिपोर्ट के आंकड़े :विश्व प्रवासन रिपोर्ट 2022 के अनुसार 2020 में अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों की संख्या बढ़कर करीब 28 करोड़ हो गई है, जो वैश्विक जनसंख्या का 3.6 फीसदी है. एक अनुमान के मुताबिक 2020 में यूरोप में 8.67 करोड़ अंतरराष्ट्रीय प्रवासी थे, इसके बाद एशिया में ये संख्या करीब 8.56 करोड़ थी. यूरोप में विश्व के लगभग एक-तिहाई अप्रवासी आते हैं.

ब्रिटेन में भी तेजी से बढ़ रहें प्रवासी :नए आधिकारिक अनुमान बताते हैं कि जून 2023 तक यूके में शुद्ध प्रवासन 672,000 था, जो कोरोना महामारी से पहले की संख्या से काफी अधिक है.

पश्चिमी देशों में मजबूत हो रहे प्रवासी

कमाई कर घर भेजते हैं पैसे : दुनिया भर में प्रवासियों की संख्या में भारत सबसे आगे है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है. भारत के बाद इस मामले में मैक्सिको दूसरे और चीन तीसरे नंबर पर है. प्रवासी श्रमिक अपने मेजबान देशों में श्रम शक्ति में योगदान करते हैं, जिससे उद्योग की महत्वपूर्ण कमी को पूरा करने में मदद मिलती है. हां, इसका उन्हें फायदा भी होता है. वह आम तौर पर अपने परिवार और दोस्तों को धनराशि भेजते हैं. विश्व बैंक के अनुसार, 2022 में दुनिया भर में प्रवासी श्रमिकों ने लगभग 79 हजार 400 करोड़ अमेरिकी डॉलर घर भेजे. ये रकम आजीविका बनाने में लाखों परिवारों के लिए लाइफलाइन थी. ऑनलाइन मनी ट्रांसफर सेवाओं और डिजिटल वॉलेट जैसे सुविधाएं आने के बाद से पैसे भेजना आसान भी हो गया है.

वर्ल्डपे की वैश्विक भुगतान रिपोर्ट 2021 से पता चलता है कि डिजिटल वॉलेट दुनिया भर में ई-कॉमर्स उपभोक्ताओं के बीच पसंदीदा पेमेंट का तरीका बना हुआ है, जो 2020 में ई-कॉमर्स लेनदेन की मात्रा का 44.5% है. रिपोर्ट यह भी अनुमान लगाती है कि 2024 के अंत तक ई-कॉमर्स भुगतान बढ़कर 51.7% हो जाएगा.

प्रवासी और गैर प्रवासी के बीच क्या है मुख्य अंतर :प्रवासी और गैर-प्रवासी के बीच मुख्य अंतर गंतव्य देश की नागरिकता और उससे जुड़े अधिकारों का है. बाहरी देशों से पहुंचने वालों को उस देश के नागरिकों की तुलना में ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

जान जोखिम में डालकर जाते हैं लोग: कुछ देशों में पश्चिमी राष्ट्रों में नौकरी का क्रेज इस कदर है कि लोग अवैध तरीके से जान जोखिम में डालकर भी वहां जाने ने नहीं हिचकते हैं. यहां तक कि पश्चिम अफ्रीका और कैनरी द्वीप समूह के बीच खतरनाक समुद्री मार्ग से भी लोग जा रहे हैं. 2023 में अब तक लगभग 30,000 लोगों ने इसे पार करने का प्रयास किया है. जर्मनी जैसे देश, जो कभी शरण चाहने वालों के लिए मित्रवत थे. अब इसमें कटौती कर रहे हैं. एक अनुमान है कि इस साल संयुक्त राज्य अमेरिका तक पहुंचने के लिए पांच लाख लोग डेरियन गैप को पार कर सकते हैं. ये इस्थमस का हिस्सा है जो कोलंबिया को पनामा से जोड़ता है. यह संख्या 2010 के दौरान क्रॉसिंग का प्रयास करने वालों की तुलना में चार गुना से भी अधिक है.

पश्चिमी देशों में मजबूत हो रहे प्रवासी

इन आंकड़ों पर भी एक नजर

  • उत्तरी अमेरिका और ओशिनिया या भारत में पैदा हुए श्रमिक ब्रिटेन में जन्मे श्रमिकों की तुलना में ज्यादा कुशल हैं.
  • उत्तरी अमेरिका और ओशिनिया और भारत में पैदा हुए कर्मचारियों की 2022 में औसत कमाई सबसे अधिक थी.
  • ब्रिटेन में साल 2022 की चौथी तिमाही में 62 लाख विदेशी मूल के लोगों को रोजगार मिला, जो कामकाजी आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा है.
  • ब्रिटेन में जन्मे पुरुषों की तुलना में प्रवासी पुरुषों के रोजगार में होने की संभावना अधिक थी, लेकिन महिलाओं में प्रवासियों के रोजगार में होने की संभावना कम थी.
  • कोविड-19 महामारी के दौरान प्रवासियों और ब्रिटेन में जन्मे लोगों दोनों के बीच बेरोजगारी दर में तेजी से वृद्धि हुई थी, लेकिन 2022 के अंत तक यह काफी हद तक 2019 के स्तर पर वापस आ गई थी.
  • ब्रिटेन में पैदा हुए बेरोजगार लोगों की तुलना में बेरोजगार प्रवासियों द्वारा बेरोजगारी लाभ का दावा करने की संभावना कम थी.
  • ब्रिटेन में जन्मे श्रमिकों की तुलना में विदेश में जन्मे श्रमिक रात की पाली में और गैर-स्थायी नौकरियों में भी काम करने को तैयार हो जाते हैं

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Last Updated : Apr 30, 2024, 10:09 PM IST

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