नई दिल्ली: चीन को एक कड़ा संदेश देते हुए प्रधानमंत्री मोदी और सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग ने गुरुवार को दक्षिण चीन सागर में शांति, सुरक्षा, स्थायित्व, सुरक्षा और नौवहन की स्वतंत्रता को बनाए रखने और बढ़ावा देने के महत्व की पुष्टि की. उन्होंने बल प्रयोग या धमकी का सहारा लिए बिना अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से 1982 के संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) के अनुसार विवादों का शांतिपूर्ण समाधान करने की बात कही.
गौरतलब है कि दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिविधियां अंतरराष्ट्रीय चिंता और तनाव का विषय रही हैं. खासकर क्षेत्रीय विवादों और सैन्य उपस्थिति के बारे में. चीन अपनी नाइन-डैश लाइन के माध्यम से दक्षिण चीन सागर के लगभग 90 फीसदी हिस्से पर दावा करता है, जो वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई और ताइवान सहित कई अन्य देशों के दावों से मेल खाता है.
ऑर्टिफिशियस द्वीपों का निर्माण कर रहा चीन
बीजिंग विवादित चट्टानों और उथले पानी पर ऑर्टिफिशियस द्वीपों का निर्माण और सैन्यीकरण कर रहा है, खास तौर पर स्प्रैटली द्वीप और पैरासेल द्वीप पर. ये द्वीप हवाई पट्टियों, मिसाइल सिस्टम और अन्य सैन्य बुनियादी ढांचे से सुसज्जित हैं. 2016 में हेग में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय ने फिलीपींस द्वारा लाए गए एक मामले में चीन के दावों के खिलाफ फैसला सुनाया. हालांकि, चीन ने इस फैसले को खारिज कर दिया है और अपने दावों पर जोर देना जारी रखा.
इसके अलावा, दोनों पक्षों ने सभी पक्षों से बिना किसी धमकी या बल प्रयोग के शांतिपूर्ण तरीकों से विवादों को सुलझाने और क्षेत्र में तनाव बढ़ाने वाली कार्रवाइयों के संचालन में आत्म-संयम बरतने का आह्वान किया. प्रधानमंत्री मोदी की सिंगापुर यात्रा के बाद जारी एक संयुक्त बयान में दोनों देश के नेताओं ने UNCLOS द्वारा निर्धारित कानूनी ढांचे पर जोर दिया.
दोनों नेताओं ने अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से UNCLOS के अनुसार दक्षिण चीन सागर में एक ठोस और प्रभावी आचार संहिता (COC) के शीघ्र समापन की आशा व्यक्त की, जो इन वार्ताओं में भाग न लेने वाले देशों सहित सभी देशों के वैध अधिकारों और हितों के प्रति पूर्वाग्रह नहीं रखती.