उत्तरकाशी (उत्तराखंड): भारत-चीन सीमा पर उत्तरकाशी जिले की जाड़ गंगा घाटी में स्थित गरतांग गली (सीढ़ीनुमा रास्ता) पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है. यह सीढ़ियां खड़ी जाड़ गंगा के ऊपर खड़ी चट्टानों पर बनाया गया है, जो 17वीं सदी की इंजीनियरिंग का एक नायाब नमूना है. ये नायाब नमूना आज की आधुनिक इंजीनियरिंग को भी मात देता है. यहां पर पर्यटक प्राकृतिक सौंदर्य के साथ रोमांच का भरपूर तुत्फ उठा सकते हैं. साल 2021 में इस गली को पर्यटकों के लिए 59 सालों बाद खोला गया था.
व्यापार से जुड़ा है किस्सा:नेलांग घाटी में स्थित इसी गली से 1962 से पहले कभी भारत और तिब्बत के बीच व्यापार हुआ करता था. व्यापार के लिए पेशावर ये आए पठानों ने इस गली का निर्माण करवाया था. लेकिन, 1962 में भारत सरकार ने भारत-चीन युद्ध को देखते हुए इस गली को सामरिक और सुरक्षा की दृष्टि से बंद कर दिया गया था. इसके साथ ही उत्तरकाशी के इनर लाइन क्षेत्रों में पर्यटकों की आवाजाही पर भी बैन लगा दिया गया था. उत्तरकाशी के नजदीकी गांव जादुंग और नेलांग को खाली कराकर उन्हें तब हर्षिल और बगोरी में बसाया गया था. गंगोत्री धाम से 11 किमी पूर्व भैरोंघाटी से जाड़ गंगा के किनारे से होकर गरतांग गली का रास्ता है.
इस वजह से रहा खास:11000 फीट की ऊंचाई पर स्थित ये गली करीब 140 साल पुरानी है. यहां खड़ी चट्टान में बनाया गया लकड़ी का सीढ़ीनुमा रास्ता जो 150 मीटर लंबा है. इसको इस तरह बनाने का ये कारण था कि तब उस पर घोड़े और खच्चर नहीं चल सकते थे इसलिए तब उस वक्त यहां पत्थर की चट्टान को काटकर दर्रा पार करने के लिए एक गली बनाई गई थी, जो भारत और तिब्बत के सीमावर्ती क्षेत्रों में व्यापार के काम आई. उत्तरकाशी में हर साल जनवरी में माघ पर्व मनाया जाता है. बताते हैं कि तब तिब्बत के लोग इस पर्व में आकर गर्म ऊनी कपड़ों के बदले तेल, नमक, चीनी और गुड़ ले जाया करते थे, जो 1962 के बाद बंद हो गया.