नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि तुच्छ और चिढ़ाने वाली कार्यवाही सीधे कानून के शासन पर असर डालती है, क्योंकि इससे लंबित मामलों की संख्या बढ़ती है और परिणामस्वरूप न्याय की मांग कर रहे अन्य मामलों के निपटारे में देरी होती है.
न्यायमूर्ति बी आर गवई और के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि भले ही मामले में शामिल पक्षकार बिना किसी वैध औचित्य के कार्यवाही में देरी करने का प्रयास करें, लेकिन अदालतों को सतर्क रहने और ऐसे किसी भी प्रयास को तुरंत रोकने की जरूरत है.
कोर्ट की ओर से सोमवार को दिए गए फैसले के लेखक न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा कि न्याय का प्रशासन नागरिकों के विश्वास पर आधारित है और ऐसा कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए, जिससे उस विश्वास और भरोसे को दूर से भी झटका लगे.
जस्टिस विश्वनाथन ने 2013 के एक हत्या के मामले में आगे की जांच के निर्देश देने वाले मद्रास हाई कोर्ट के 2021 के फैसले को खारिज करते हुए कार्यवाही के बारे में कई टिप्पणियां कीं. जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि यह सच है कि मुकदमे में देरी से सच्चाई की खोज में बाधा आएगी, लेकिन ऐसे मामलों के बीच अंतर किया जाना चाहिए, जहां कार्यवाही को रोकने के लिए वास्तविक आधार मौजूद हैं और ऐसे मामले जहां ऐसे आधार मौजूद नहीं हैं. उन्होंने कहा कि वर्तमान मामला बाद की कैटेगरी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.