नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने गोमांस परिवहन के आरोपी एक व्यक्ति के खिलाफ मामले की सुनवाई करते हुए शुक्रवार को असम सरकार की खिंचाई की. कोर्ट ने कहा कि उसे ऐसे लोगों के पीछे भागने के बजाय ‘‘कुछ और बेहतर काम करने चाहिए.’’
जस्टिस एएस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने आरोपियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी और मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल के लिए निर्धारित कर दी. वहीं पीठ ने राज्य सरकार द्वारा मांस के नमूने परीक्षण के लिए प्रयोगशाला भेजे जाने की जानकारी दिए जाने के बाद कहा कि राज्य सरकार को इन लोगों के पीछे भागने के बजाय कुछ बेहतर काम करने चाहिए.
मामले पर वकील ने कहा कि वाहन रोके जाने के बाद चालक वास्तविक उत्पाद की प्रकृति के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब देने में असमर्थ था. उन्होंने कहा, ‘‘इसके बाद मांस को फॉरेंसिक प्रयोगशाला में भेज दिया गया.’’
कोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति को विशेषज्ञ जानकारी नहीं है, वह केवल देखकर संबंधित चीजों में अंतर नहीं कर सकता. साथ ही कोर्ट कहा कि कोई व्यक्ति किस तरह जान सकेगा कि यह गोमांस है या कोई अन्य मांस? यदि किसी व्यक्ति के पास यह है तो वह कैसे पहचान पाएगा कि यह किस पशु का मांस है?
वहीं आरोपी के वकील ने दलील दी कि उनका फरियादी एक गोदाम का मालिक है और उसने सिर्फ पैक किया हुआ कच्चा मांस ही परिवहन किया था. कोर्ट ने असम मवेशी संरक्षण अधिनियम की धारा 8 का हवाला देते हुए कहा कि यह प्रावधान तभी लागू किया जा सकता है जब आरोपी को पता हो कि बेचा जा रहा मांस गोमांस है. वहीं राज्य सरकार के वकील ने दलील दी कि आरोपी मांस की पैकेजिंग और बिक्री में शामिल था. मामले को लेकर पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई जरूरी है और इसे अप्रैल में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाता है.
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