नई दिल्ली: रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF) शुरू करने की घोषणा का किसानों ने समर्थन किया. हालांकि किसानों ने इस मिशन के समक्ष कई चुनौतियां भी गिनाई. किसानों ने देश में फसलों में कीटनाशकों के उपयोग को प्राकृतिक खेती में बदलने के लिए सरकार से पूर्ण समर्थन, उचित प्रावधान और प्रणाली की आवश्यकता पर जोर दिया है.
ईटीवी भारत से बातचीत में किसान धर्मेंद्र मलिक ने कहा, 'हमारे लिए यह बहुत अजीब है. जब हम प्राकृतिक खेती कर रहे थे, तब किसानों से कहा गया कि वे कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक खेती करें. इसके बाद हमने प्राकृतिक खेती की जगह रासायनिक खेती की बढ़े और अब प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.
मलिक ने कहा, 'पशुपालन के बिना प्राकृतिक खेती की कल्पना करना बहुत कठिन है, क्योंकि यह प्राकृतिक खेती के लिए आवश्यक है. हालांकि मुख्य मुद्दा यह है कि आजकल जनसंख्या पहले से ही बढ़ गई है और पशुपालन कम हो गया है. किसानों ने चिंताजनक बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यूरिया और उर्वरक का उपयोग करने के बाद उन्हें अपेक्षित कृषि उपज नहीं मिलती है. फिर प्राकृतिक खेती करने के बाद उनके लिए जीवित रहना बहुत कठिन हो जाएगा क्योंकि रासायनिक खेती की तुलना में उपज स्वाभाविक रूप से कम होगी.
इसी तरह की भावनाओं को व्यक्त करते हुए उत्तर प्रदेश के बिजनौर के एक अन्य किसान बीरेंद्र सिंह बंट ने ईटीवी भारत को बताया, 'रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती में बदलने के लिए कृषि भूमि को कम से कम तीन से चार साल लगते हैं. अगर कोई किसान प्राकृतिक खेती शुरू करता है तो उसे रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती में जाने के लिए तीन से चार साल इंतजार करना पड़ता है. ऐसी स्थिति में उन्हें कम उत्पादकता का सामना करना पड़ता है.'
बीरेंद्र सिंह ने कहा, 'कम उत्पादन की अवधि के दौरान किसान को इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार से सहायता की आवश्यकता होती है. यह बिल्कुल स्वाभाविक है कि रासायनिक खेती के बजाय प्राकृतिक खेती में उत्पादन कम होगा, क्योंकि रासायनिक खेती मौसम और भूमि पर निर्भर करती है.'