नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एम्स दिल्ली को प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के पूर्व अध्यक्ष ई अबूबकर की मेडिकल जांच करने का निर्देश दिया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वह मेडिकल आधार पर जमानत के हकदार हैं.
शीर्ष अदालत ने कहा, "अगर उन्हें तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता है, अगर हम इस पर ध्यान नहीं देते हैं तो हम भी जिम्मेदार होंगे." अदालत ने आगे कहा, "अगर उन्हें तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता है, तो हम इससे इनकार नहीं कर सकते."
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ मामले में सुनवाई की. एनआईए की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मेडिकल आधार पर जमानत का विरोध करते हुए दलील दी कि याचिकाकर्ता को चेकअप के लिए कई बार एम्स ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों को कभी नहीं लगा कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता है.
इस पर जस्टिस सुंदरेश ने कहा, "अगर लगातार सहयोग नहीं किया जा रहा है तो हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है, हम इसे खारिज कर देंगे. लेकिन कृपया इस बात को समझिए, अगर उन्हें तत्काल चिकित्सा उपचार की आवश्यकता है, अगर हम इस पर ध्यान नहीं देते हैं तो हम भी जिम्मेदार होंगे."
जस्टिस सुंदरेश ने कहा, "मेरा अपना मामला, मैंने एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में निपटाया है. सुप्रीम कोर्ट से चिकित्सा उपचार के लिए अनुरोध याचिका खारिज होने के बाद दो दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में एक आवेदन दायर किया गया था. मैंने इसे चार दिन दिए, एक दिन के भीतर उसकी (याचिकाकर्ता) मृत्यु हो गई. इसलिए हम केवल मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर आगे बढ़ेंगे."
पीठ ने कहा कि इसे देखने के दो तरीके हैं: जेल में कोई भी जेल अधिकारी या डॉक्टर जिम्मेदारी नहीं लेगा क्योंकि अगर कुछ भी होता है तो यह उसकी जिम्मेदारी है, ऐसा भी होता है, और दूसरी ओर मेहता की दलील भी सही है. जस्टिस सुंदरेश ने कहा, "इसलिए, हम डॉक्टरों पर छोड़ देते हैं...(डॉक्टर जो भी कहेंगे) हम उसके अनुसार मामले में आगे बढ़ेंगे. उपचार के लिए कितना समय चाहिए... अगर रिपोर्ट में कहा गया है कि वह सहयोग नहीं कर रहा है तो हम नहीं करेंगे."