हैदराबादः भारत में गिद्धों की संख्या में 1990 के दशक से भारी गिरावट आई है. वर्तमान समय में इसकी संख्या में गिरावट जारी है. स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स 2023 के अनुसार गिद्ध शिकारी पक्षी हैं, लेकिन उनकी उपस्थिति पारिस्थिति तंत्र के लिए आवश्यक है. अमेरिकन इकोनॉमिक एसोसिएशन जर्नल में गिद्धों की संख्या में गिरावट के कारण भारतीय नागरिकों पर प्रभाव का विस्तार से अध्ययन किया गया है. अध्ययन में पाया गया है कि गिद्धों के नहीं होने के कारण मृत पशुओं से पैदा होने वाले हानिकारक बैक्टीरिया की चपेट में आने से विभिन्न बीमारियों से बीते 5 सालों में 5 लाख लोगों की मौत हो गई.
1990 के दशक के पहले, गिद्ध भारतीय आसमान में सबसे अधिक संख्या में पाए जाने वाले पक्षियों में से थे. फिर बिना किसी चेतावनी के 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में कई प्रजातियों की आबादी लगभग शून्य हो गई. किसी भी कशेरुकी (Vertebrates) में दर्ज की गई सबसे तेज गिरावट में से एक.
स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स ने कई शोध के आधार पर जानकारी साझा किया है कि : पशुओं के इलाज में उपयोग में आने वाली डाइक्लोफेनाक का उपयोग इसके लिए सबसे बड़ा कारक है. 2008 में भारत में डाइक्लोफेनाक के पशु चिकित्सा उपयोग पर प्रतिबंधित कर दिया गया. इससे बची हुई गिद्ध आबादी के लिए कुछ उम्मीद जगी है.
सफेद-पूंछ वाले गिद्ध, भारतीय गिद्ध और लाल-पूंछ वाले गिद्धों में सबसे अधिक दीर्घकालिक गिरावट (क्रमशः 98 फीसदी, 95 फीसदी और 91 फीसदी) आई है. मिस्र के गिद्ध और प्रवासी ग्रिफॉन गिद्धों में भी काफी गिरावट आई है, लेकिन इतनी भयावह रूप से नहीं है. आज, गिद्धों की बची हुई आबादी संरक्षित क्षेत्रों में और उसके आस-पास पाई जाती है, जहां उनके आहार में (संभवतः दूषित) पशुधन की तुलना में मृत वन्यजीव अधिक होते हैं.
डाइक्लोफेनैक प्रतिबंध ने कुछ स्थानों पर गिद्धों की संख्या में कमी को धीमा कर दिया. रिपोर्ट के विश्लेषण से पता चलता है कि देश भर में गिद्धों की संख्या में गिरावट जारी है: भारतीय गिद्धों में हर साल 8 फीसदी से अधिक और लाल-पूंछ वाले और सफेद-पूंछ वाले गिद्धों में क्रमशः 5 फीसदी और 4 फीसदी से अधिक की गिरावट आ रही है. इस तरह की निरंतर गिरावट गिद्धों के लिए चल रहे खतरों का संकेत देती है, जो विशेष रूप से चिंता का विषय है क्योंकि गिद्धों की गिरावट ने मानव कल्याण को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है.
क्यों खतरनाक है डाइक्लोफेनाक
विशेषज्ञों के अनुसार डाइक्लोफेनाक मवेशियों के इलाज के लिए गैर-स्टेरॉयडल दर्द निवारक दवाओं में से एक है. इस दवा से जिन पशुओं का इलाज किया जाता है, मरने के बाद उनके शव को जो भी पक्षी खाते हैं, उनका किडनी डैमेज हो जाता है. अंततः किडनी डैमेज से संबंधित पक्षियों की मौत हो जाती है. गिद्धों का मुख्य आहार मृत मवेशी है, इस कारण इसका सबसे ज्यादा असर गिद्धों की आबादी पर पड़ा.