नई दिल्ली:भारत सरकार ने हर साल 25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' मनाने का फैसला किया है. इसको लेकर कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने केंद्र पर पलटवार किया है. कांग्रेस और भाजपा के बीच ‘संविधान’ और ‘आपातकाल’ को लेकर वाकयुद्ध भी शुरू हो गया है. 27 जून को संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान भी भारतीय जनता पार्टी ने हर मोर्चे पर इमरजेंसी की भर्त्सना की थी. जिसको लेकर राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया था, जिसमें कांग्रेस ने सत्तारूढ़ एनडीए पर अपनी प्रशासनिक विफलताओं को छिपाने और बेरोजगारी और मूल्य वृद्धि जैसे वर्तमान ज्वलंत मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने के लिए पुराने विवादों को खोदने का प्रयास करने का आरोप लगाया था.
बता दें, लोकसभा का स्पीकर चुने जाने के बाद ओम बिरला ने सदन में एक प्रस्ताव पढ़ा, जिसमें उन्होंने 1975 में कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल की निंदा की. इस पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी सांसदों ने हंगामा किया और जमकर नारेबाजी की. वहीं, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने स्पीकर ओम बिरला से मुलाकात की और आपातकाल पर पढ़े प्रस्ताव पर नाराजगी जताई. राहुल गांधी ने स्पीकर से मुलाकात करते हुए कहा कि, यह विषय स्पष्ट रूप से राजनीतिक था और इससे बचा जा सकता था.
वहीं, शुक्रवार को गृह मंत्रालय की अधिसूचना के बाद विवाद फिर से सामने आया जिसमें कहा गया कि भारतीय लोकतंत्र के काले अध्याय को उजागर करने के लिए हर साल 25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मनाया जाएगा. राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी ने ईटीवी भारत से कहा कि मुझे आश्चर्य है कि बेरोजगारी और मूल्य वृद्धि और हमारी सीमाओं पर चीनी घुसपैठ जैसे ज्वलंत मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने के लिए पचास साल पुरानी घटना को याद किया जा रहा है. आपातकाल के बाद कई राष्ट्रीय चुनाव हुए, लेकिन यह भी सच है कि 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से संविधान का रोजाना गला घोंटा जा रहा है. मुझे लगता है कि पिछले दशक को वास्तव में 'संविधान हत्या युग' के रूप में याद किया जाना चाहिए.