रांची: लोकसभा चुनाव 2024 के बाद अब झारखंड में राजनीतिक दलों के नेता इसी वर्ष के अंत के होने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने में लग गए हैं. इस संबंध में पहला बयान कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव गुलाम अहमद मीर का आया कि पार्टी ने विधिवत रूप से विधानसभा की 33 सीटों पर चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं.
ऐसे में सवाल यह है कि 2019 में झारखंड मुक्ति मोर्चा और राष्ट्रीय जनता दल के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस पार्टी को तब 31 विधानसभा सीट मिलीं थी. अब दावा 33 विधानसभा सीट का क्यों है. क्या महागठबंधन के दूसरे दल आसानी से इसे स्वीकार लेंगे या यह राज्य में सत्तारूढ़ तीन दलों में आपसी खटपट की शुरुआत भर है. इसके अलावा कोई प्रेशर पॉलिटिक्स की कवायद की जा रही है. ऐसे कई सवाल प्रदेश की सियासी फिजा में गूंज रही है.
हैरानी की बात यह है कि जिन दो विधानसभा सीटों पर अब कांग्रेस अपना हक जता रही है. वह दोनों सीटें पोड़ैयाहाट और मांडू 2019 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कोटे में गयी थी. उस समय झामुमो ने झारखंड विकास मोर्चा के उम्मीदवार प्रदीप यादव के मुकाबले में महागठबंधन प्रत्याशी की रूप में अशोक कुमार को मैदान में उतारा था. इसी तरह 2019 में मांडू विधानसभा सीट भी महागठबंधन में झामुमो के कोटे में गयी थी और तब भाजपा प्रत्याशी जेपी पटेल के मुकाबले में जेएमएम ने रामप्रकाश भाई पटेल को उम्मीदवार बनाया था.
झारखंड विधानसभा की 33 सीट पर चुनाव लड़ने के पीछे क्या है तर्क
आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव में कम से कम 33 सीट पर चुनाव लड़ने की प्रदेश प्रभारी की घोषणा को झारखंड कांग्रेस ने सही करार दिया है. इसको लेकर प्रदेश कांग्रेस महासचिव राकेश सिन्हा ने कहा कि राज्य में 33 विधानसभा की सीट पर हमारी दावेदारी के पीछे मजबूत तर्क भी है. 2019 के विधानसभा चुनाव में हमें 31 सीटें महागठबंधन में मिली थी और मांडू के भाजपा विधायक जेपी पटेल और पोड़ैयाहाट से जेवीएम विधायक प्रदीप यादव हमारे दल में शामिल हो चुके हैं. ऐसे में 31+2= 33 का हमारा दावा जायज है.
मांडू और पोड़ैयाहाट हमारी सीट, खटास बढ़ाने वाले बयान से परहेज करें कांग्रेस के नेता- झामुमो