अमेठी: एक युवक सन्यासी के रूप में गेरुआ वस्त्र धारण किए हाथ में सारंगी बजाते हुए 20 वर्ष बाद अपने जन्म भूमि आया. वह सन्यासी गोपीचंद और राजा भरथरी की लोकगाथा सुना रहा है. गुरु गोरखनाथ की महिमा बता रहा है. जब गांव वालों ने उसे पहिचान लिया, तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा. सन्यासी के घर वाले सन्यासी को देखते ही असमंजस पड़ गये.
जिले के बहादुर पुर विकासखंड क्षेत्र के खरौली गांव का एक वीडियो इन दोनों सोशल मीडिया पर ट्रेंड हो रहा है. यह वीडियो लगभग एक सप्ताह पहले का बताया जा रहा है. इसमें एक सन्यासी के जीवन की गाथा को बयां कर रहा है. लगभग बीस वर्ष पूर्व वर्ष 2002 में अमेठी का एक परिवार दिल्ली में रहता था. उनका दस वर्षीय बेटा कहीं गायब हो गया. काफी खोजबीन के बाद भी वह नहीं मिला. थक हारकर कर बच्चे के परिजन हमारी किस्मत में हमारा बच्चा नहीं है. उन लोगों को यह भी नहीं पता था कि वह बच्चा अब तक जिंदा भी होगा.
10 दिन पहले जब बच्चा बाबा के रूप में अपने गांव पहुंचा, तो परिवार के लोगों ने उसे पहचान लिया. पेट में ऑपरेशन के निशान से उसकी पहचान हो गई. इसके बाद परिवार के लोगों ने दिल्ली में रह रहे उसके माता-पिता को सूचना दी. जब उसके माता-पिता घर पर आए, तो अपने कलेजे के टुकड़े को पहचान लिया. उनके सन्यासी बेटे ने कहा कि वह घर वालों से मिलने नहीं आया, बल्कि संन्यासी जीवन का एक अहम विधान पूरा करने आया है.
दरअसल, जोगियों की एक परंपरा है. इसके अनुसार संन्यास धारण करने के बाद, मां से भिक्षा पाना अनिवार्य है. कोई जोगी तभी बनता है, जब उसे अपने मां के हाथ से भिक्षा मिलती है. युवा जोगी अपने घर लौटा लेकिन, अभी उसका संन्यास पूरा नहीं हुआ है. पिता ने उसे देखा, तो उनकी आंखे भर आयीं और उन्होंने अपने बेटे को गले से लगा लिया. बच्चे ने मां से भिक्षा मांगी, लेकिन मां ने इनकार कर दिया. मां का कहना है कि वो सन्यास छोड़ दे और अब परिवार के साथ रहे.