देहरादूनः देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. भाजपा ने एक लिस्ट जारी करके चुनावी कार्यक्रम की घोषणा कर दी है. इसके साथ ही उत्तराखंड की तीन लोकसभा सीटों पर भी भाजपा ने उम्मीदवार उतार दिए हैं. उत्तराखंड भले ही छोटा राज्य हो, लेकिन यहां की राजनीति, केंद्र की राजनीति से अलग आधार रखती है. उत्तराखंड में जातीय राजनीति का अपना अलग वर्चस्व है. यही कारण है कि उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस हमेशा ही जातीय समीकरण के आधार पर ही सरकार और संगठन का गठन करते हैं.
एनडी तिवारी उत्तर प्रदेश के तीन बार और उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री थे. ठाकुर और ब्राह्मण के बीच घूमती है प्रदेश की राजनीति:उत्तराखंड राज्य गठन के बाद अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं या राजनीतिक दलों ने संगठन गठित किया है, उसमें हमेशा से जातीय समीकरण को सबसे आगे रखा है. उदाहरण के तौर पर, राज्य गठन के बाद से अब तक जितनी भी सरकारें बनी, सभी दलों ने मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष से लेकर कैबिनेट विस्तार में भी जातीय समीकरण को आधार बनाया है.
लोकसभा चुनाव में भी जातीय समीकरण: लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर भी जातीय समीकरण साफ देखा जा सकता है. भाजपा ने टिहरी सीट से ठाकुर समाज से ताल्लुक रखने वाली मौजूदा सांसद को टिकट दिया है. जबकि नैनीताल सीट से ब्राह्मण समाज से मौजूदा सांसद पर फिर से दांव खेला है. यही आकलन भाजपा की तरफ से प्रदेश की दो अन्य सीटों पर भी लगाया जा रहा है. भाजपा अगर रमेश पोखरियाल निशंक को दोबारा से हरिद्वार से उम्मीदवार बनाती है तो पौड़ी लोकसभा सीट से किसी ठाकुर नेता को टिकट मिलना तय है.
विजय बहुगुणा उत्तराखंड के छठे मुख्यमंत्री बने थे. (कार्यकाल 13 मार्च 2012 से 31 जनवरी 2014) उत्तराखंड में ऐसे सेट होता है ठाकुर और ब्राह्मण फॉर्मूला:उत्तराखंड की राजनीति हमेशा से ठाकुर और ब्राह्मण फैक्टर के इर्द-गिर्द रही है. उदाहरण के तौर पर उत्तराखंड राज्य गठन के बाद जब पहला विधानसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस की सरकार बनी तो ब्राह्मण समाज के नारायण दत्त तिवारी को सीएम बनाया गया. जबकि ठाकुर समाज ने आने वाले हरीश रावत को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.
साल 2007 में जब भाजपा सत्ता में आई तो भाजपा ने जातिगत समीकरण को बखूबी आगे बढ़ाया. भाजपा ने गढ़वाल क्षेत्र से आने वाले ब्राह्मण नेता भुवन चंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया. जबकि कुमाऊं के ठाकुर नेता बची सिंह रावत को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई. ऐसा करके भाजपा ने जातीय समीकरण के साथ-साथ कुमाऊं और गढ़वाल की राजनीति को भी साधने की पूरी कोशिश की. इसके बाद भाजपा ने गढ़वाल क्षेत्र से आने वाले ब्राह्मण नेता रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी तो कुमाऊं के ठाकुर नेता बिशन सिंह चुफाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. इस दौरान राजनीतिक हलचल हुई और निशंक को हटाकर खंडूड़ी को फिर मुख्यमंत्री बनाया गया. हालांकि, गढ़वाल-कुमाऊं और ब्राह्मण-ठाकुर का फॉर्मूला सही बैठने पर प्रदेश अध्यक्ष नहीं बदला गया.
हरीश रावत 11 मई 2016 से 18 मार्च 2017 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद साल 2012 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की तो कांग्रेस ने भी इसी फॉर्मूले को अपनाते हुए गढ़वाल से विजय बहुगुणा (ब्राह्मण नेता) को मुख्यमंत्री बनाया. जबकि कुमाऊं से यशपाल आर्य को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई. लेकिन साल 2014 में उत्तराखंड की कुर्सी से विजय बहुगुणा को हटा दिया गया. कांग्रेस ने नए नाम पर विचार करते हुए कुमाऊं के ठाकुर नेता हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया. जबकि गढ़वाल से आने वाले किशोर उपाध्याय (ब्राह्मण नेता) को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी गई. इस तरह कांग्रेस ने गढ़वाल और कुमाऊं के साथ-साथ जातीय समीकरण को भी बरकरार रखा.
त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड के 8वें मुख्यमंत्री रहे. (कार्यकाल 18 मार्च 2017 से मार्च 2021) इसके बाद साल 2017 में भाजपा ने सत्ता में वापसी की. उस दौरान भी भाजपा ने यही फॉर्मूला अपनाते हुए गढ़वाल से त्रिवेंद्र सिंह रावत (ठाकुर नेता) को मुख्यमंत्री बनाया. जबकि कुमाऊं से आने वाले अजय भट्ट को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में अजय भट्ट के सांसद चुने जाने पर नरेश बंसल को प्रदेश प्रभारी का जिम्मा सौंपा गया. इस बीच कुमाऊं मंडल से आने वाले बंशीधर भगत को प्रदेश अध्यक्ष का पूर्ण जिम्मा सौंपा गया. हालांकि, 2021 में उत्तराखंड में राजनीतिक हलचल हुई और भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा बदलते हुए तीरथ सिंह रावत को सत्ता की कुर्सी सौंपी. तो दूसरी तरफ मदन कौशिक को उत्तराखंड भाजपा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.
तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड के 9वें मुख्यमंत्री बने. वे 10 मार्च 2021 से 4 जुलाई 2021 तक सीएम रहे. मौजूदा समय में भी देखा जाए तो भाजपा ने कुमाऊं क्षेत्र से ठाकुर समाज से ताल्लुक रखने वाले पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया है. तो वहीं प्रदेश अध्यक्ष की कमान गढ़वाल के ब्राह्मण समाज से आने वाले महेंद्र भट्ट के हाथों सौंपी है.
पुष्कर सिंह धामी 4 जुलाई 2021 से अभी तक मुख्यमंत्री हैं. केंद्र भी रखता है उत्तराखंड में जातीय समीकरण का ध्यान:बात चाहे विधानसभा चुनाव की हो या लोकसभा चुनाव की. राजनीतिक दल हमेशा से जातीय समीकरण साधने की कोशिश करते रहे हैं. यही समीकरण तब भी देखने के लिए मिलते हैं जब केंद्र में उत्तराखंड के लोकसभा सांसद को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलता है. मसलन मोदी सरकार में मौजूदा समय में अजय भट्ट को केंद्रीय मंत्री बनाया है. जबकि मुख्यमंत्री जैसे बड़े पद पर पुष्कर सिंह धामी हैं. इस तरह से प्रदेश में और केंद्र में जातीय संतुलन नजर आ रहा है. इसी तरह से जब ब्राह्मण समाज से आने वाले रमेश पोखरियाल निशंक मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे, तब राज्य में ठाकुर समाज से आने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री थे. हालांकि इससे पहले की अगर बात करें तो केंद्र में दलित समाज से आने वाले नेता और सांसद अजय टम्टा को भी मोदी ने अपनी कैबिनेट में जगह दी है.
उत्तराखंड में ब्राह्मण-ठाकुर और गढ़वाल-कुमाऊं का फॉर्मूला ये है प्रदेश में जातीय समीकरण:मौजूदा समय में उत्तराखंड में 1.17 करोड़ की जनसंख्या है. जिसमें अगर बात मतदाताओं की करें तो कुल 82 लाख 43 हजार मतदाता हैं. इसमें 42.71 लाख पुरुष और 39.72 लाख महिला वोटर शामिल हैं. पांच लोकसभा सीटों में से 3 सीट गढ़वाल और 2 सीट कुमाऊं रीजन का हिस्सा हैं. साल 2011 के अनुसार राज्य में अल्पसंख्यक लगभग 16 प्रतिशत हैं. जिनमें मुस्लिम 14 प्रतिशत व शेष अन्य हैं. उत्तराखंड में अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के लोग को मिलाकर 18.92 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के 2.81 प्रतिशत हैं. राज्य में 26 प्रतिशत ब्राह्मण, 35 प्रतिशत ठाकुर और 2 प्रतिशत ओबीसी हैं.
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