भोपाल: महाराष्ट्र कैडर की आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर को संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में गलत सर्टिफिकेट लगाने के कारण नौकरी गंवानी पड़ गई. दस्तावेजों में धोखाधड़ी कर गलत तरीके से अन्य पिछड़ा वर्ग और दिव्यांग कोटा का लाभ लेने का मामला सामने आने के बाद केंद्र सरकार ने पूजा खेडकर को भारतीय प्रशासनिक सेवा से बर्खास्त कर दिया था. लेकिन मध्यप्रदेश में भी पूजा खेडकर जैसे एक हजार से अधिक मामले हैं. जिनमें से करीब 90 प्रतिशत मामलों में अब तक विभागीय जांच ही पूरी नहीं हो सकी. जिससे दागी अधिकारी-कर्मचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और वो धड़ल्ले से सरकारी नौकरियों पर जमे हुए हैं.
विभाग भी नहीं ले रहा कोई एक्शन
आरोप है कि, फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी पाने वाले अधिकतर अधिकारी-कर्मचारियों की जांच उच्च स्तरीय छानबीन समिति के पास लंबित है. जिन प्रकरणों की जांचें पूरी हो चुकी हैं, उन मामलों में भी विभागीय स्तर से कोई एक्शन नहीं हो रहा है. यही कारण है कि बड़ी संख्या में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी पाने वाले अधिकारी-कर्मचारी बदस्तूर अपनी नौकरी कर रहे हैं. विभागीय अधिकारी भी इन्हें न तो नौकरी से हटा पा रहे हैं और न ही फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर अर्जित किए गए लाभ की वसूली करा रहे हैं.
जाति प्रमाण पत्र की जानकारी मांगी, तो FIR
आरोप है कि, एक तरफ प्रदेश में हजारों लोग फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरियां कर रहे हैं, लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है. वहीं, एक मामले में जबलपुर में सहकारिता विभाग में कार्यरत एक महिला ने कार्यालय में काम करने वाली एक अन्य सहयोगी की जानकारी आरटीआई में मांगी. जिस महिला की जानकारी मांगी गई उसने जानकारी मांगने वाली महिला के विरुद्ध एससीएसटी एक्ट में मामला भी दर्ज करा दिया. हालांकि राज्य सूचना आयोग ने इस मामले में कहा कि, ''शासकीय कार्यालय में काम करने वाली महिला के जाति प्रमाण पत्र की जानकारी व्यक्तिगत कैसे हो सकती है.''
11 साल बाद भी FIR तो दूर विभागीय कार्रवाई भी नहीं
इधर, एक अन्य मामले में फर्जी प्रमाण पत्र लगातार नौकरी पाने वाले अधिकारी के खिलाफ विभागीय स्तर से तो 11 साल पहले पुलिस थाने मेंFIR के लिए पत्र लिखा जा चुका है, लेकिन उन्हें पद से हटाने की कार्रवाई आज तक नहीं हो पाई है. ऐसे अफसरों से वसूली की बात तो भूल ही जाइए. एक मामला जहां मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (मैपकास्ट) का है तो वहीं 8 मामले हथकरघा विभाग से जुड़े हैं.
आरोप है कि, इनमें एक में भी दोषी अधिकारी-कर्मचारी पर एक्शन नहीं हुआ. विभागीय अधिकारियों की ओर से मामले को लंबे समय से दबाया जा रहा है. इसी का नतीजा है कि बड़ी संख्या में लोग फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर अपनी नौकरी पूरी करके रिटायर तक हो चुके हैं और ऐसे अधिकारियों के संबंध में तो कोई जांच करना ही नहीं चाहता है.
सीधे बर्खास्त कर सकता है विभाग
बता दें कि, प्रमाण पत्र के दो चर्चित मामलों में सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग है. इसमें पहला माधुरी पाटिल बनाम एडिशनल कमिश्नर ट्राइबल डिपार्टमेंट महाराष्ट्र और दूसरा डायरेक्टर ट्राइबल वेलफेयर आंध्रप्रदेश बनाम लावेदी गिरी. इसमें कहा गया है कि यदि उच्च स्तरीय छानबीन समिति जाति प्रमाणपत्र को फर्जी पाती है, तो आरोपी को नियोक्ता सीधे बर्खास्त कर सकता है. संबंधित कर्मचारी के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज कर कार्रवाई की जाए.
प्रथम श्रेणी के 600 अधिकारी संदेह के घेरे में
मध्य प्रदेश में हलवा जाति का प्रमाण-पत्र भी फर्जी मानकर निरस्त किया जा चुका है. विदिशा जिले के सिरोंज में मीणा जाति अनुसूचित जनजाति में आती थी, जबकि राजस्थान में मीणा सामान्य जाति में आते हैं. इसी का फायदा उठाकर सिरोंज से बड़ी संख्या में फर्जी जाति प्रमाण पत्र का खेल चला. जिसमें कई अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई हो चुकी है, उधर कई जांच के घेरे में हैं. मध्यप्रदेश में करीबन 600 क्लास वन अधिकारियों के जाति प्रमाण पत्र संदेह के घेरे में हैं.
ऐसे मामलों में जांच की गति बेहद धीमी
इस मामले में मध्यप्रदेश के सेवानिवृत्त डीजी अरुण गुर्टू ने कहा कि, ''आईएएस, आईपीएस और आईएफएस इन तीनों में पद के दुरूपयोग के सबसे ज्यादा मामले हैं, क्योंकि इन पर किसी तरह का सरकार का अंकुश नहीं है. इसके अलावा मध्यप्रदेश में राज्य सरकार के विभागों में भी कई अधिकारी-कर्मचारी फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नौकरी कर रहे हैं. लेकिन ऐसे मामलों में जांच की गति बेहद धीमी है. ऐसे कर्मचारी अधिकारी सालों नौकरी करके रिटायर्ड भी हो जाते हैं और जांच ही खत्म नहीं हो पाती.''
24 अधिकारियों के जाति प्रमाण पत्र को निरस्त
विधानसभा के शीत कालीन सत्र में कांग्रेस विधायक डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह द्वारा पूछे गए एक अन्य सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि, ''2020 के बाद पिछले चार साल में 24 अधिकारी कर्मचारियों के जाति प्रमाण पत्र को निरस्त किया जा चुका है. इसी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर इन कर्मचारी-अधिकारियों ने सरकारी नौकरी प्राप्त की थी.'' वहीं जनजातीय कार्य मंत्री कुंवर विजय शाह ने इसकी लिखित जानकारी विधानसभा में दी है. जिसमें कहा गया है कि प्रदेश में 232 कर्मचारी अधिकारियों के जाति प्रमाण पर की जांच की जा रही है. इन 232 कर्मचारी-अधिकारियों के खिलाफ अलग-अलग लोगों द्वारा शिकायतें दर्ज कराई गई हैं.