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'पर्सनल लिबर्टी का हनन...', केजरीवाल को जमानत देने पर बोले जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस भुइयां ने CBI पर की टिप्पणी - Justice Surya Kant

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 13, 2024, 1:26 PM IST

Arvind Kejriwal Gets Bail: जस्टिस भुइयां ने सीबीआई को लेकर कि सीबीआई को पिंजरे में बंद तोते की इमेज से बाहर आना होगा और दिखाना होगा कि अब वह पिंजरे में बंद तोता नहीं रहा.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (IANS)

नई दिल्ली: दिल्ली आबकारी नीति मामले में सुप्रीम कोर्टी के दो जजों की बेंच ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत दी है. जमानत देने वाले दो जजों में शामिल जस्टिस सूर्यकांत ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि मुकदमे के लंबित रहने तक आरोपी व्यक्ति को लंबे समय तक जेल में रखना पर्सनल लिबर्टी के लिए अन्यायपूर्ण है.

वहीं, जस्टिस भुइयां ने सीबीआई को लेकर टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि सीबीआई को पिंजरे में बंद तोते की इमेज से बाहर आना होगा और दिखाना होगा कि अब वह पिंजरे में बंद तोता नहीं रहा. जस्टिस भुइंया ने कहा, 'सीबीआई इस देश की प्रमुख जांच एजेंसी है. इसी में सबकी भलाई है कि सीबीआई को न केवल सबसे ऊपर होना चाहिए, बल्कि ऐसा दिखना भी चाहिए.

बता दें कि जस्टिस कांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने केजरीवाल को 10 लाख रुपये के जमानत बांड और दो जमानतदारों पर राहत दी. दोनों जजों ने केजरीवाल को जमानत देने पर सहमति जताई और अलग-अलग फैसले लिखे.

'जमानत का मुद्दा लिबर्टी जस्टिस है'
जस्टिस कांत ने अपने द्वारा लिखे गए फैसले में कहा, "मूल सिद्धांत दोहराया जाता है कि देश में जमानत न्यायशास्त्र का विकास इस बात को रेखांकित करता है कि जमानत का मुद्दा लिबर्टी जस्टिस है. जमानत का विकसित न्यायशास्त्र न्यायिक प्रक्रिया के प्रति संवेदनशील समाज का अभिन्न अंग है. मुकदमे के लंबित रहने तक आरोपी व्यक्ति को लंबे समय तक कैद में रखना व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए अन्यायपूर्ण है..."

'जमानत देने की विधायी नीति विफल हो जाएगी'
पीठ ने कहा कि जहां उचित समय में मुकदमा पूरा होने की कोई संभावना नहीं है, वहां जमानत देने की विधायी नीति विफल हो जाएगी. जस्टिस कांत ने कहा, "अदालतें हमेशा विचाराधीन मामले के प्रति लचीले दृष्टिकोण के साथ स्वतंत्रता की ओर झुकती हैं, सिवाय इसके कि ऐसे व्यक्ति की रिहाई से सामाजिक आकांक्षाओं को नुकसान पहुंचने, मुकदमे को पटरी से उतारने या आपराधिक न्याय प्रणाली को खराब करने की संभावना हो, जो कानून के शासन का अभिन्न अंग है."

जस्टिस कांत ने कहा कि एफआईआर अगस्त 2022 में दर्ज की गई थी और तब से एक चार्जशीट और चार सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की गई हैं और चौथी सप्लीमेंट्री चार्जशीट 29 जुलाई को दायर की गई थी और ट्रायल कोर्ट ने इसका संज्ञान लिया है.

मामले में 17 आरोपियों के नाम सामने आए
उन्होंने कहा कि इसके अलावा मामले में 17 आरोपियों के नाम सामने आए हैं, 224 लोगों की पहचान गवाह के तौर पर की गई है और फिजिकल और डिजिटल दोनों तरह के दस्तावेज जमा किए गए हैं. जस्टिस कांत ने कहा कि इन फैक्टर्स से पता चलता है कि निकट भविष्य में मुकदमे के पूरा होने की संभावना नहीं है.

उन्होंने आगे कहा कि केजरीवाल सीबीआई के मामले की योग्यता पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करेंगे, क्योंकि मामला ट्रायल कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है और सार्वजनिक मंचों पर स्वार्थी बयानबाजी की हालिया प्रवृत्ति को रोकने के लिए यह शर्त आवश्यक है.

जस्टिस कांत ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय के मामले में समन्वय पीठ द्वारा लगाए गए नियम और शर्तें, जिनमें सीएम का अपने कार्यालय न और फाइलों पर हस्ताक्षर न करना शामिल हैं, वह यहां भी लागू रहेंगी. इसके अलावा अपीलकर्ता को सुनवाई की प्रत्येक डेट पर ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित होना होगा, जब तक कि उसे छूट न दी जाए.

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