नई दिल्ली: जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत होने के बाद से जस्टिस संजीव खन्ना कई महत्वपूर्ण फैसलों का हिस्सा रहे हैं, जिनमें अनुच्छेद 370 को खत्म करना और चुनावी बॉन्ड योजना से जुड़े फैसले शामिल हैं.
वहीं, भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनका छह महीने का कार्यकाल भी कम व्यस्त नहीं होगा. क्योंकि इस दौरान राजद्रोह और वैमैरिटल रेप की संवैधानिकता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित रहेंगे.
वकीलों के परिवार से ताल्लुक रखने वाले जस्टिस खन्ना 18 जनवरी 2019 को दिल्ली हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत हुए थे. उन्होंने 115 से ज्यादा फैसले लिखे हैं. वह उन मुट्ठी भर जजों में से हैं, जिन्हें देश के किसी भी हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले ही सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया.
1983 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से LLB की डिग्री प्राप्त करने के बाद जस्टिस खन्ना ने 2005 में एडिशनल जज के रूप में पदोन्नत होने से पहले लगभग 23 साल तक दिल्ली हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की. उन्हें फरवरी 2006 में परमानेंट जज बना दिया गया.
जस्टिस संजीव खन्ना के अहम फैसले
उन्होंने जिन पहले बड़े मामलों पर फैसला सुनाया, उनमें से एक यह था कि क्या सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) सीजेआई के कार्यालय पर लागू होता है. जस्टिस खन्ना ने इसके पक्ष में फैसला सुनाया और बहुमत का फैसला लिखा, जिसमें कहा गया कि न्यायिक स्वतंत्रता अनिवार्य रूप से सूचना के अधिकार का विरोध नहीं करती है.
2021 में जस्टिस संजीव खन्ना ने असहमति जताते हुए फैसला लिखा कि सेंट्रल विस्टा परियोजना के लिए अपेक्षित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया. इस परियोजना में भारत के पावर कॉरिडोर लुटियंस दिल्ली में प्रशासनिक क्षेत्र का पुनर्विकास शामिल है.
उन्होंने पांच जजों वाली पीठ की ओर से भी निर्णय लिखा, जिसने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग विवाह के इरेट्रीवेबल ब्रेकडाउन के आधार पर तलाक देने के लिए कर सकता है.
न्यायमूर्ति खन्ना उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को बरकरार रखा, जिसने तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया था.
इसके अलावा उन्होंने चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता से जुड़े मामले में भी फैसला सुनाया. वह शायद दुनिया के सबसे हाई-प्रोफाइल मामलों में से एक था. चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों को गुमनाम दान की अनुमति देता था. इस योजना को रद्द करने वाली संविधान पीठ के हिस्से के रूप में अपने सहमत फैसले में जस्टिस खन्ना ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया में काले धन पर अंकुश लगाने का दानकर्ता की पहचान छिपाने से कोई मतलब नहीं है.
साल 2024 न्यायमूर्ति खन्ना के लिए उल्लेखनीय रहा है क्योंकि वे उन पीठों का हिस्सा रहे हैं जिन्होंने चुनाव, जमानत और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं.
इस साल की शुरुआत में वे एक खंडपीठ का हिस्सा थे, जिसने VVPAT के माध्यम से वोटों के 100 फीसदी वेरिफिकेशन की याचिका को खारिज कर दिया था. इससे पहले जस्टिस खन्ना ने शराब नीति मामले में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (AAP) नेताओं मनीष सिसोदिया और संजय सिंह की जमानत याचिकाओं से संबंधित राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों को निपटाया.
वहीं, मई में जस्टिस खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने अपने पहले तरह के आदेश में अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनावों के लिए प्रचार करने के लिए तीन सप्ताह की जमानत दी थी. दो महीने बाद, पीठ ने ईडी मामले में AAP सुप्रीमो को अंतरिम जमानत दी.
सीजेआई संजीव खन्ना इन मामलों को कर सकते हैं निपटान
सीजेआई खन्ना के समक्ष आने वाले प्रमुख मामलों में से सबसे पहले आपराधिक कानून में मैरिटल रेप अपवाद को चुनौती देने वाली याचिकाएं हैं. सुप्रीम कोर्ट कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक महिला प्रशिक्षु डॉक्टर के क्रूर बलात्कार और हत्या के मामले से भी निपट रही है.
इसके अलावा अदालत ने डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की सुरक्षा के लिए प्रोटोकॉल सुझाने के लिए एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया था. यह निकाय जल्द ही अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा,और यह देखना बाकी है कि सीजेआई खन्ना क्या कदम सुझाते हैं.
वहीं, जस्टिस खन्ना चुनाव आयोग नियुक्ति अधिनियम की संवैधानिकता, बिहार जाति जनगणना की वैधता और पीएमएलए मामलों में गिरफ्तारी की आवश्यकता और अनिवार्यता जैसे अन्य मामलों की सुनवाई के लिए भी बेंच गठित कर सकते हैं.
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