पर्वतीय क्षेत्रों में खतरे में घराटों का अस्तित्व, अब नहीं सुनाई देती टिक-टिक की आवाज

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घराटों को पर्वतीय क्षेत्रों की शान समझा जाता है. जिसकी टिक-टिक की आवाज आज भी कानों में गूंजती है. अतीत से ही पर्वतीय क्षेत्रों में परंपरागत घराट का चलन है. जिससे ग्रामीण क्षेत्र के लोग गेहूं की पिसाई करते हैं. इन पनचक्की से जो आटा निकलता है, उसकी तुलना चक्की के आटा से नहीं की जा सकती. इसके बारे में खास बात यह है कि यह बिना बिजली के चलती है. लोगों का मानना है कि घराट में तैयार होने वाला आटा कई नजरिए से स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है. इसलिए आज भी पर्वतीय अंचलों में लोग मांगलिक कार्यों के लिए घराट के आटे का ही उपयोग करते हैं. लेकिन आधुनिकता की मार घराटों पर साफ देखी जाती है. जिसकी तस्दीक घराटों की कम होती संख्या कर रही है.

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