उत्तरकाशीः आजादी के सात दशक बाद भी ग्रामीण इलाकों में मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंच पाई है. जिसकी एक बानगी डुंडा विकासखंड के बल्ला गांव में देखने को मिल रहा है. जहां ग्रामीण दशकों से सड़क की राह देख रहे हैं, लेकिन अभी तक उनके गांव में सड़क नहीं पहुंच पाई है. ऐसे में अब ग्रामीण सड़क की मांग को लेकर आंदोलन पर उतर गए हैं. इतना ही नहीं ग्रामीण गांव के मंदिर परिसर में 'रोड नहीं तो वोट नहीं' के नारे के साथ धरने पर बैठ गए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि अगर उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो विधानसभा चुनाव का बहिष्कार किया जाएगा.
दरअसल, डुंडा विकासखंड के ग्राम सभा ओल्या की उपग्राम बल्ला के ग्रामीण गांव के मंदिर परिसर में रोड नहीं तो वोट नहीं के नारे के साथ धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि गांव में करीब 300 से 350 की जनसंख्या है, लेकिन आजादी के सात दशक बाद भी गांव सड़क से नहीं जुड़ पाया है. उनका कहना है कि ग्रामीणों को करीब 7 किमी की खड़ी चढ़ाई पार कर गांव पहुंचना पड़ता है. ऐसे में गांव में अगर कोई बीमार हो जाए तो ग्रामीण उसे डंडी-कंडी के सहारा सड़क तक पहुंचाते हैं. उसके बाद ही मरीज अस्पताल पहुंच पाता है.
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ग्रामीणों का कहना है कि गांव में सड़क सुविधा न होने से सबसे ज्यादा परेशानी गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों, बीमार और बच्चों को होती है. साथ ही गांव में सामान आदि पहुंचाने में भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. सड़क की मांग को लेकर वो कई नेताओं, जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक नुमाइंदों से मुलाकात कर चुके हैं. लेकिन उनकी मांगों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. ऐसे में वो कई किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हैं. ऐसा भी नहीं है कि सड़क निर्माण को लेकर कवायद न हुई हो, सड़क की घोषणा भी हो चुकी है.
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2 किमी के बाद सड़क निर्माण भूली सरकारः बल्ला के ग्रामीणों का कहना है कि साल 2002 से लगातार सड़क के लिए संघर्ष करने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने 7 किमी लंबी सड़क की घोषणा की थी. जिसके बाद प्रथम चरण में सर्वे के पिलर भी लगे, लेकिन फिर सड़क को मात्र जखारी तक 2 किमी में ही समेट दिया गया. जिससे ग्रामीणों खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. इसलिए अब उन्हें मजूबरन आंदोलन करना पड़ रहा है. उनका आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक सड़क की मांग पूरी नहीं होती है.