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सेब की खेती के लिए नहीं मिल पा रही दवाइयां, हिमाचल प्रदेश पर निर्भर काश्तकार - पलायन

उत्तरकाशी जिले के सीमांत मोरी ब्लॉक के सांकरी, नैटवाड़ और आपदा प्रभावित बंगाण क्षेत्र के काश्तकारों को सेब के लिए चौबटिया पेस्ट, लाइम सल्फर, टीएसओ, सुपर केन, पोटास, यूरिया समेत पेड़ों की दवाइयां सरकारी विभागों में उप्लब्ध नहीं हो पा रही है. ऐसे में काश्तकारों को पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश से ये दवाइयां लानी पड़ रही है.

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Published : Feb 25, 2020, 9:36 PM IST

पुरोलाः उत्तरकाशी जिले को सेबों के उत्पादन के लिए पहचाना जाता है, लेकिन सरकार सीमांत क्षेत्र मोरी ब्लॉक के काश्तकारों को सेबों के लिए दवाइयां और खाद तक उपलब्ध नहीं करवा पा रही है. लिहाजा, ऐसे में काश्तकारों को मजबूरन हिमाचल प्रदेश से दवाइयां, खाद समेत अन्य सामान खरीदना पड़ रहा है. काश्तकारों का आरोप है कि सरकार सेब के बागवानों के लिए कोई ठोस नीति नहीं बना पा रही है, न ही समय पर दवाई, खाद और सेब के बॉक्स उपलब्ध करवाती है. जिससे काश्तकार परेशान हैं.

सेब की खेती के लिए नहीं मिल पा रही दवाइयां

बता दें कि, उत्तरकाशी जिले के सीमांत मोरी ब्लॉक के सांकरी, नैटवाड़ और आपदा प्रभावित बंगाण क्षेत्र में इन दिनों सेबों की कटिंग (प्रूनिंग), ग्राफ्टिंग, पौधों की निराई गुड़ाई और स्प्रे का काम जोरों पर है, लेकिन काश्तकारों को चौबटिया पेस्ट, लाइम सल्फर, टीएसओ, सुपर केन, पोटास, यूरिया समेत पेड़ों की दवाइयां सरकारी विभागों में उप्लब्ध नहीं हो पा रही है. ऐसे में काश्तकारों को पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश से ये दवाइयां लानी पड़ रही है. इधर, राज्य सरकार की बागवानी मिशन दम तोड़ती नजर आ रही है.

ये भी पढ़ेंः मुख्यमंत्री की इस योजना से बदलेगी गांवों की तस्वीर, रुकेगा पलायन

गौर हो कि सेब उत्पादन के मामले में उत्तरकाशी जिला उत्तराखंड का सिरमौर बनता जा रहा है. यहां पर सालाना 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है. उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में सेब रोजगार का एक अहम जरिया है. यहां की भौगोलिक परिस्थितियां और अनुकूल माहौल के कारण पर्वतीय इलाकों में सेब की खेती काफी अच्छी है, लेकिन सरकार एक ओर बागवानी मिशन की बात करती है तो दूसरी ओर किसानों के लिए दवाइयां, खाद समेत अन्य सामान तक मुहैया नहीं करा पा रही है.

काश्तकारों का कहना है कि सरकार विकासखंड स्तर पर खेती-बाड़ी और बागवानी के लिए कोई ठोस योजना बनाती तो उन्हें रोजगार और सरकारी योजनाओं पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा. इतना ही नहीं काश्तकार खुद अन्य लोगों को रोजगार भी दे सकते हैं, लेकिन अफसोस है कि जहां पर लोगों ने पलायन को रोके रखा है, वहां पर सरकार मूलभूत सुविधा तक मुहैया नहीं करवा पा रही है. जहां पलायन जारी है, वहां करोड़ों रुपये विज्ञापनों के नाम पर ही खर्च कर रही है.

ये भी पढ़ेंः देहरादूनः बाजारों में ग्राहकों की पहली पसंद बना किन्नू, लाभकारी है सिट्रस प्रजाति का यह फल

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को चाहिए कि प्रदेश के काश्तकारों के लिए विकासखंड स्तर पर खेती-बाड़ी और बागवानी के लिए अलग नीति बनाए. जिससे पलायन के साथ स्थानीय स्तर पर होने वाले उत्पादों को बढ़ावा मिल सके. साथ ही कृषि बागवानी से जुड़े लोगों के लिए सरकारी डीपो बने जहां पर दवाइयां और कृषि संबंधी सामान आसानी से मिल सके.

पुरोलाः उत्तरकाशी जिले को सेबों के उत्पादन के लिए पहचाना जाता है, लेकिन सरकार सीमांत क्षेत्र मोरी ब्लॉक के काश्तकारों को सेबों के लिए दवाइयां और खाद तक उपलब्ध नहीं करवा पा रही है. लिहाजा, ऐसे में काश्तकारों को मजबूरन हिमाचल प्रदेश से दवाइयां, खाद समेत अन्य सामान खरीदना पड़ रहा है. काश्तकारों का आरोप है कि सरकार सेब के बागवानों के लिए कोई ठोस नीति नहीं बना पा रही है, न ही समय पर दवाई, खाद और सेब के बॉक्स उपलब्ध करवाती है. जिससे काश्तकार परेशान हैं.

सेब की खेती के लिए नहीं मिल पा रही दवाइयां

बता दें कि, उत्तरकाशी जिले के सीमांत मोरी ब्लॉक के सांकरी, नैटवाड़ और आपदा प्रभावित बंगाण क्षेत्र में इन दिनों सेबों की कटिंग (प्रूनिंग), ग्राफ्टिंग, पौधों की निराई गुड़ाई और स्प्रे का काम जोरों पर है, लेकिन काश्तकारों को चौबटिया पेस्ट, लाइम सल्फर, टीएसओ, सुपर केन, पोटास, यूरिया समेत पेड़ों की दवाइयां सरकारी विभागों में उप्लब्ध नहीं हो पा रही है. ऐसे में काश्तकारों को पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश से ये दवाइयां लानी पड़ रही है. इधर, राज्य सरकार की बागवानी मिशन दम तोड़ती नजर आ रही है.

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गौर हो कि सेब उत्पादन के मामले में उत्तरकाशी जिला उत्तराखंड का सिरमौर बनता जा रहा है. यहां पर सालाना 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है. उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में सेब रोजगार का एक अहम जरिया है. यहां की भौगोलिक परिस्थितियां और अनुकूल माहौल के कारण पर्वतीय इलाकों में सेब की खेती काफी अच्छी है, लेकिन सरकार एक ओर बागवानी मिशन की बात करती है तो दूसरी ओर किसानों के लिए दवाइयां, खाद समेत अन्य सामान तक मुहैया नहीं करा पा रही है.

काश्तकारों का कहना है कि सरकार विकासखंड स्तर पर खेती-बाड़ी और बागवानी के लिए कोई ठोस योजना बनाती तो उन्हें रोजगार और सरकारी योजनाओं पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा. इतना ही नहीं काश्तकार खुद अन्य लोगों को रोजगार भी दे सकते हैं, लेकिन अफसोस है कि जहां पर लोगों ने पलायन को रोके रखा है, वहां पर सरकार मूलभूत सुविधा तक मुहैया नहीं करवा पा रही है. जहां पलायन जारी है, वहां करोड़ों रुपये विज्ञापनों के नाम पर ही खर्च कर रही है.

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उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को चाहिए कि प्रदेश के काश्तकारों के लिए विकासखंड स्तर पर खेती-बाड़ी और बागवानी के लिए अलग नीति बनाए. जिससे पलायन के साथ स्थानीय स्तर पर होने वाले उत्पादों को बढ़ावा मिल सके. साथ ही कृषि बागवानी से जुड़े लोगों के लिए सरकारी डीपो बने जहां पर दवाइयां और कृषि संबंधी सामान आसानी से मिल सके.

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