उत्तरकाशी: सूबे की त्रिवेंद्र सरकार के अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित भारत-चीन युद्ध के समय खाली हो चुके जाड़ समुदाय के नेलांग और जाडुंग गांव को दोबारा बसाने की योजना में जिला प्रशासन की ओर से प्रथम चरण की कवायद शुरू हो चुकी है. जिलाधिकारी मयूर दीक्षित की अध्यक्षता में नेलांग-जाडुंग से बगोरी और डुंडा में विस्थापित हो चुके ग्रामीणों से विचार विमर्श कर एक कमेटी का गठन किया गया है, जो कि सीमा के खाली हो चुके गांव को पर्यटन और सामरिक दृष्टिकोण से विकसित करने का खाका तैयार करेगी. साथ ही हर माह इस कमेटी की दो बैठकों का आयोजन किया जाएगा.
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डीएम का कहना है कि नेलांग घाटी में इनरलाइन की कुछ बाध्याताओं को समाप्त करने के लिए राज्य सरकार की ओर से केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है. बता दें कि वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय सुरक्षा के दृष्टिकोण से नेलांग से 40 और जाडुंग गांव से 30 परिवारों को हर्षिल के समीप बगोरी और जनपद मुख्यालय से 15 किमी दूर डुंडा में विस्थापित किया गया था. उसके बाद ग्रामीण यहां कभी वापस नहीं लौटे और इनके घरों को सेना का बंकरो के रूप में तब्दील कर दिया गया.
यह जाड़ समुदाय के लोग वर्ष में मात्र एक दिन लाल देवता की पूजा के लिए जाडुंग इनरलाइन के तहत परमिशन लेकर जाते हैं. आज भी नेलांग में ग्रामीणों की 375.61 हेक्टेयर और जाडुंग में 8.54 हेक्टेयर कृषि भूमि है. वहीं अब सूबे की त्रिवेंद्र सरकार के ओर से अंतरराष्ट्रीय सीमा के इन दो गांवों में होम स्टे जैसी योजनाओं के साथ पर्यटन और सामरिक दृष्टिकोण से विकसित करने की योजना की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है.
डीएम मयूर दीक्षित ने कहा कि मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार अंतरराष्ट्रीय सीमा के नेलांग और जाडुंग गांव के विस्थापित और मूल निवासियों के साथ एक बैठक का आयोजन किया गया था, जिसके तहत प्रशासनिक अधिकारियों की एक कमेटी गठित की गई है. इस कमेटी की हर माह दो बैठक आयोजित की जाएगी, जिसके तहत नेलांग जाडुंग में पर्यटन के विकास पर चर्चाएं और सुझाव लिए जाएंगे. वहीं, इस घाटी में स्थित गड़तांग गली का पुनर्निर्माण जल्द शुरू किया जाएगा. डीएम ने कहा कि नेलांग क्षेत्र में इनरलाइन की बाध्याताओं को समाप्त करने के लिए राज्य सरकार की ओर से केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है.