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खुल गए यमुनोत्री के कपाट, जानिए उत्तराखंड के इस धाम की महिमा - Story of Yamunotri Dham

यमुनोत्री धाम के कपाट खुल गए हैं. इस बार यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने पर पहली पूजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से की गई. आइए आपको यमुनोत्री धाम के इतिहास के बारे में बताते हैं.

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जानिए उत्तराखंड के इस धाम की महिमा
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Published : May 14, 2021, 10:14 PM IST

Updated : May 15, 2021, 7:05 PM IST

उत्तरकाशी: उत्तराखंड के कण-कण में देवताओं का वास है, इसलिए इसे देवभूमि कहा गया है. उत्तराखंड चारों धाम, सिद्ध पीठों एवं देवालयों के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यमुनोत्री इन्हीं चारधामों में से एक है. करीब 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री धाम का पौराणिक और धार्मिक महत्व विश्व विख्यात है.

जानिए उत्तराखंड के इस धाम की महिमा

इसका कोई प्रमाणिक उल्लेख नहीं है कि कब मां यमुना धरती पर अवतरित हुई? कब यमुनोत्री धाम की स्थापना हुई, इसका भी प्रमाण नहीं है. मगर कई इतिहासकार बताते हैं कि पाडंव काल से पहले यमुनोत्री धाम था. क्योंकि पुराणों में पांडवों के यमुनोत्री धाम की यात्रा का विवरण है. यमुनोत्री धाम में यमुना जी के दर्शन और सूर्यकुंड में स्नान से यम यातनाओं और शनि जी के प्रकोप से मुक्ति मिलती है. सूर्य पुत्री यमुना, यमराज और शनि महाराज की बहन हैं.

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मां यमुनोत्री का मंदिर.

पढ़ें-अभिजीत मुहूर्त में विधि-विधान से खोले गए यमुनोत्री धाम के कपाट, पीएम मोदी के नाम से पहली पूजा

यमुना का उद्गम 4421 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कालिंदी पर्वत के चंपासर ग्लेशियर पर है. यहीं से उद्गम होने के कारण यमुना नदी को कालिंदी भी कहते हैं. आस्था है कि यमुना पृथ्वी पर आकर उत्तर वाहिनी बनकर संपूर्ण पापों एवं जन्म मरण के बंधन से मुक्त करने वाली हो गईं. वैसे यमुनोत्री धाम, यमुना के धार्मिक व पौराणिक महत्व के बारे में कर्म पुराण और केदारखंड ग्रंथ में व्यापक उल्लेख भी है. दोनों धामों के कपाट खुलने का लगभग एक ही विधान है.

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यमुना की डोली.

पढ़ें- उत्तराखंड में भी ब्लैक फंगस की दस्तक, राजधानी में एक मरीज में हुई पुष्टि, दो संदिग्ध

राजकीय महाविद्यालय के सहायक प्रवक्ता और यमुनोत्री-गंगोत्री धाम के इतिहास पर कार्य कर रहे डॉ. राकेश मोहन नौटियाल का कहना है कि 1855 से पूर्व यमुनोत्री धाम की पूजा हनुमान गुफा में होती थी. उसके बाद टिहरी नरेश राजा सुदर्शन शाह ने यमुनोत्री धाम के मंदिर का निर्माण करवाया था. उसके बाद भवानी शाह ने 1862 में धाम में यमुना जी के काले पत्थर की मूर्ति स्थापित की. नौटियाल बताते हैं कि 19 वीं सदी में राजा प्रताप शाह ने फिर यमुनोत्री मंदिर का निर्माण करवाया था.

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पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ निकली मां यमुना की डोली.

पढ़ें- उत्तराखंड में 50% कोविड मरीजों की मौत अस्पताल में भर्ती होने के 48 घंटे के अंदर : ऑडिट कमेटी

डॉ. राकेश मोहन नौटियाल का कहना है कि टिहरी रियासत की महारानी गुलेरिया का कोई प्रमाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन कहा जाता है कि उन्होंने यमुनोत्री धाम पैदल मार्ग निर्माण के साथ धाम में सूर्यकुंड का निर्माण करवाया था. इसके बाद मंदिर का पुनर्निर्माण छोटे-छोटे स्तरों पर होता रहा. उसके बाद 1985 में काली कमली धर्मशाला के ट्रस्टी तोलाराम मोहनलाल जालान ने नागर शैली में यमुनोत्री धाम के वर्तमान मन्दिर का निर्माण करवाया, जो तब से लेकर अब तक वैसा ही है.

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खुल गये यमुनोत्री के कपाट.

पढ़ें- उत्तराखंड के मंत्रियों के निशाने पर क्यों हैं पूर्व CM त्रिवेंद्र, जानिए अंदर की कहानी

चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव

यमुनोत्री को चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव कहा जाता है. चार धामों की यात्रा हर साल अक्षय तृतीया से शुरू हो जाती है. यात्रा यमुनोत्री से शुरू होकर गंगोत्री फिर केदारनाथ और आखिर में श्री बदरीनाथ धाम पर पूरी होती है. मां यमुना का पवित्र धाम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में है. यहां से एक किलोमीटर दूर स्थित चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम स्थल है. ग्लेशियर की ऊंचाई 4 हजार 421 मीटर है, जिसे कलिंद पर्वत कहा जाता है यहीं से उद्गम होने के कारण यमुना नदी को कालिंदी भी कहते हैं.

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मां यमुना की डोली.

पौराणिक गाथाओं के अनुसार

  1. भैयादूज के दिन जो भी व्यक्ति यमुना में स्नान करता है उसे यमत्रास से मुक्ति मिल जाती है. इस मंदिर में यम की पूजा का भी विधान है.
  2. यमुनोत्री धाम के इतिहास का वर्णन हिन्दुओं के वेद-पुराणों में भी किया गया है. कूर्मपुराण, केदारखण्ड, ऋग्वेद, ब्रह्मांड पुराण में यमुनोत्री को 'यमुना प्रभव' तीर्थ कहा गया है. यह भी कहा जाता है कि इस स्थान पर 'संत असित' का आश्रम था.
  3. महाभारत के अनुसार जब पांडव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा पर आए थे, वे पहले यमुनोत्री, गंगोत्री फिर केदारनाथ-बदरीनाथ ओर बढ़े थे. तभी से उत्तराखंड में चार धाम यात्रा इसी तरह की जाती है.
  4. यमुनोत्री मंदिर भूकंप से एक बार पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है.
  5. यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुयी बर्फ की एक झील और हिमनंद (चंपासर ग्लेशियर) है.

उत्तरकाशी: उत्तराखंड के कण-कण में देवताओं का वास है, इसलिए इसे देवभूमि कहा गया है. उत्तराखंड चारों धाम, सिद्ध पीठों एवं देवालयों के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यमुनोत्री इन्हीं चारधामों में से एक है. करीब 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री धाम का पौराणिक और धार्मिक महत्व विश्व विख्यात है.

जानिए उत्तराखंड के इस धाम की महिमा

इसका कोई प्रमाणिक उल्लेख नहीं है कि कब मां यमुना धरती पर अवतरित हुई? कब यमुनोत्री धाम की स्थापना हुई, इसका भी प्रमाण नहीं है. मगर कई इतिहासकार बताते हैं कि पाडंव काल से पहले यमुनोत्री धाम था. क्योंकि पुराणों में पांडवों के यमुनोत्री धाम की यात्रा का विवरण है. यमुनोत्री धाम में यमुना जी के दर्शन और सूर्यकुंड में स्नान से यम यातनाओं और शनि जी के प्रकोप से मुक्ति मिलती है. सूर्य पुत्री यमुना, यमराज और शनि महाराज की बहन हैं.

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मां यमुनोत्री का मंदिर.

पढ़ें-अभिजीत मुहूर्त में विधि-विधान से खोले गए यमुनोत्री धाम के कपाट, पीएम मोदी के नाम से पहली पूजा

यमुना का उद्गम 4421 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कालिंदी पर्वत के चंपासर ग्लेशियर पर है. यहीं से उद्गम होने के कारण यमुना नदी को कालिंदी भी कहते हैं. आस्था है कि यमुना पृथ्वी पर आकर उत्तर वाहिनी बनकर संपूर्ण पापों एवं जन्म मरण के बंधन से मुक्त करने वाली हो गईं. वैसे यमुनोत्री धाम, यमुना के धार्मिक व पौराणिक महत्व के बारे में कर्म पुराण और केदारखंड ग्रंथ में व्यापक उल्लेख भी है. दोनों धामों के कपाट खुलने का लगभग एक ही विधान है.

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यमुना की डोली.

पढ़ें- उत्तराखंड में भी ब्लैक फंगस की दस्तक, राजधानी में एक मरीज में हुई पुष्टि, दो संदिग्ध

राजकीय महाविद्यालय के सहायक प्रवक्ता और यमुनोत्री-गंगोत्री धाम के इतिहास पर कार्य कर रहे डॉ. राकेश मोहन नौटियाल का कहना है कि 1855 से पूर्व यमुनोत्री धाम की पूजा हनुमान गुफा में होती थी. उसके बाद टिहरी नरेश राजा सुदर्शन शाह ने यमुनोत्री धाम के मंदिर का निर्माण करवाया था. उसके बाद भवानी शाह ने 1862 में धाम में यमुना जी के काले पत्थर की मूर्ति स्थापित की. नौटियाल बताते हैं कि 19 वीं सदी में राजा प्रताप शाह ने फिर यमुनोत्री मंदिर का निर्माण करवाया था.

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पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ निकली मां यमुना की डोली.

पढ़ें- उत्तराखंड में 50% कोविड मरीजों की मौत अस्पताल में भर्ती होने के 48 घंटे के अंदर : ऑडिट कमेटी

डॉ. राकेश मोहन नौटियाल का कहना है कि टिहरी रियासत की महारानी गुलेरिया का कोई प्रमाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन कहा जाता है कि उन्होंने यमुनोत्री धाम पैदल मार्ग निर्माण के साथ धाम में सूर्यकुंड का निर्माण करवाया था. इसके बाद मंदिर का पुनर्निर्माण छोटे-छोटे स्तरों पर होता रहा. उसके बाद 1985 में काली कमली धर्मशाला के ट्रस्टी तोलाराम मोहनलाल जालान ने नागर शैली में यमुनोत्री धाम के वर्तमान मन्दिर का निर्माण करवाया, जो तब से लेकर अब तक वैसा ही है.

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खुल गये यमुनोत्री के कपाट.

पढ़ें- उत्तराखंड के मंत्रियों के निशाने पर क्यों हैं पूर्व CM त्रिवेंद्र, जानिए अंदर की कहानी

चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव

यमुनोत्री को चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव कहा जाता है. चार धामों की यात्रा हर साल अक्षय तृतीया से शुरू हो जाती है. यात्रा यमुनोत्री से शुरू होकर गंगोत्री फिर केदारनाथ और आखिर में श्री बदरीनाथ धाम पर पूरी होती है. मां यमुना का पवित्र धाम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में है. यहां से एक किलोमीटर दूर स्थित चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम स्थल है. ग्लेशियर की ऊंचाई 4 हजार 421 मीटर है, जिसे कलिंद पर्वत कहा जाता है यहीं से उद्गम होने के कारण यमुना नदी को कालिंदी भी कहते हैं.

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मां यमुना की डोली.

पौराणिक गाथाओं के अनुसार

  1. भैयादूज के दिन जो भी व्यक्ति यमुना में स्नान करता है उसे यमत्रास से मुक्ति मिल जाती है. इस मंदिर में यम की पूजा का भी विधान है.
  2. यमुनोत्री धाम के इतिहास का वर्णन हिन्दुओं के वेद-पुराणों में भी किया गया है. कूर्मपुराण, केदारखण्ड, ऋग्वेद, ब्रह्मांड पुराण में यमुनोत्री को 'यमुना प्रभव' तीर्थ कहा गया है. यह भी कहा जाता है कि इस स्थान पर 'संत असित' का आश्रम था.
  3. महाभारत के अनुसार जब पांडव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा पर आए थे, वे पहले यमुनोत्री, गंगोत्री फिर केदारनाथ-बदरीनाथ ओर बढ़े थे. तभी से उत्तराखंड में चार धाम यात्रा इसी तरह की जाती है.
  4. यमुनोत्री मंदिर भूकंप से एक बार पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है.
  5. यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुयी बर्फ की एक झील और हिमनंद (चंपासर ग्लेशियर) है.
Last Updated : May 15, 2021, 7:05 PM IST
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