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आखिर गुर्जर समुदाय के कब आएंगे अच्छे दिन, यहां नहीं दिखता PM मोदी का 'सबका साथ-सबका विकास'

गुर्जर समुदाय के लोगों को इतिहासकारों ने कभी सूर्यवंशी, रघुवंशी, रघुग्रामीन तो राजस्थान में मिहिर शब्दों से इनकी पहचान समाज के सामने लाने की कोशिश की. आज यह समुदाय अपनी पहचान और स्थाई पहचान की मांग कर रहे हैं. जिससे आने वाली पीढ़ी को दर-दर की ठोकर न खानी पढ़ें.

गुर्जर समुदाय.
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Published : Sep 16, 2019, 5:42 PM IST

Updated : Sep 16, 2019, 6:34 PM IST

पुरोला: आधुनिकता की चकाचौंध से कोसों दूर अपने मवेशियों के साथ जंगल में जीवन यापन करने वाले गुर्जर समुदाय के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीवन यापन करने को मजबूर हैं. उक्त समुदाय के लोगों के अनुसार उन्हें प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि कईं बार जंगली जानवरों से भी खतरा बना रहता है. इन समुदायों को मुख्यधारा में लाने के लिए सरकारें कई योजनाएं तो बनाती है, लेकिन योजनाएं धरातल में नहीं उतर पाती है. जिससे वर्षों से गुर्जर समुदाय के लोग मुफलिसी का जीवन जीने को मजबूर हैं.

आखिर गुर्जर समुदाय के कब आएंगे अच्छे दिन.

गौर हो कि गुर्जर समुदाय के लोगों को इतिहासकारों ने कभी सूर्यवंशी, रघुवंशी, रघुग्रामीन तो राजस्थान में मिहिर शब्दों से इनकी पहचान समाज के सामने लाने की कोशिश की. आज यह समुदाय अपनी पहचान और स्थाई पहचान की मांग कर रहे हैं. जिससे आने वाली पीढ़ी को दर-दर की ठोकर न खानी पढ़ें. अतीत से ही गुर्जर समुदाय के लोग छोटे छोटे कबीलों में रहकर जंगलों में अपने मवेशियों के साथ ही अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं. समुदाय के लोगों का मुख्य कार्य पशु पालन रहा है.

पढ़ें-कूड़े के कारण दो अधिकारियों पर गिरी गाज, डीएम ने रोका वेतन

जिससे वे अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. लेकिन वन कानून से इनका क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है, एक ओर जहां इनके परिवारों की संख्या लगातार बढ़ रही है. वहीं जंगलों में मवेशियों के चुगान के लिये वही सन 1960 का परमिट ही लागू है. जिस कारण इनके आगे रोजी- रोटी का संकट पैदा हो रहा है. वहीं इस समुदाय में शिक्षा की बात की जाए तो कई बच्चे आज भी तालीम नहीं ले पाते हैं. जिससे इनकी शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ पाता है. राज्य में घुमंतु गुर्जर समुदाय के लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है. अब ये लोग सरकार से एक अदद आशियानें की मांग कर रहे हैं.

जिससे उनकी बच्चों की शिक्षा और परिवार की स्थिति बेहतर हो सकें. हालांकि पिछली सरकारों ने इनके विस्थापन व बचों को पढ़ाने की पहल की लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. सरकारों ने न्यायालय के उस आदेश को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जिस में इन्हे विस्थापित कर अन्य नागरिकों की तरह सरकारी सुविधाएं दिए जाने के आदेश दिए थे. जहां एक ओर सरकार "सबक साथ सबका विकास" का नारा तभी बुलंद कर रही है. वहीं सवाल उठता है कि इस समुदाय का समुचित विकास कब होगा? जो आज भी आदिम युग में जीने को मजबूर है.

पुरोला: आधुनिकता की चकाचौंध से कोसों दूर अपने मवेशियों के साथ जंगल में जीवन यापन करने वाले गुर्जर समुदाय के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीवन यापन करने को मजबूर हैं. उक्त समुदाय के लोगों के अनुसार उन्हें प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि कईं बार जंगली जानवरों से भी खतरा बना रहता है. इन समुदायों को मुख्यधारा में लाने के लिए सरकारें कई योजनाएं तो बनाती है, लेकिन योजनाएं धरातल में नहीं उतर पाती है. जिससे वर्षों से गुर्जर समुदाय के लोग मुफलिसी का जीवन जीने को मजबूर हैं.

आखिर गुर्जर समुदाय के कब आएंगे अच्छे दिन.

गौर हो कि गुर्जर समुदाय के लोगों को इतिहासकारों ने कभी सूर्यवंशी, रघुवंशी, रघुग्रामीन तो राजस्थान में मिहिर शब्दों से इनकी पहचान समाज के सामने लाने की कोशिश की. आज यह समुदाय अपनी पहचान और स्थाई पहचान की मांग कर रहे हैं. जिससे आने वाली पीढ़ी को दर-दर की ठोकर न खानी पढ़ें. अतीत से ही गुर्जर समुदाय के लोग छोटे छोटे कबीलों में रहकर जंगलों में अपने मवेशियों के साथ ही अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं. समुदाय के लोगों का मुख्य कार्य पशु पालन रहा है.

पढ़ें-कूड़े के कारण दो अधिकारियों पर गिरी गाज, डीएम ने रोका वेतन

जिससे वे अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. लेकिन वन कानून से इनका क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है, एक ओर जहां इनके परिवारों की संख्या लगातार बढ़ रही है. वहीं जंगलों में मवेशियों के चुगान के लिये वही सन 1960 का परमिट ही लागू है. जिस कारण इनके आगे रोजी- रोटी का संकट पैदा हो रहा है. वहीं इस समुदाय में शिक्षा की बात की जाए तो कई बच्चे आज भी तालीम नहीं ले पाते हैं. जिससे इनकी शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ पाता है. राज्य में घुमंतु गुर्जर समुदाय के लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है. अब ये लोग सरकार से एक अदद आशियानें की मांग कर रहे हैं.

जिससे उनकी बच्चों की शिक्षा और परिवार की स्थिति बेहतर हो सकें. हालांकि पिछली सरकारों ने इनके विस्थापन व बचों को पढ़ाने की पहल की लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. सरकारों ने न्यायालय के उस आदेश को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जिस में इन्हे विस्थापित कर अन्य नागरिकों की तरह सरकारी सुविधाएं दिए जाने के आदेश दिए थे. जहां एक ओर सरकार "सबक साथ सबका विकास" का नारा तभी बुलंद कर रही है. वहीं सवाल उठता है कि इस समुदाय का समुचित विकास कब होगा? जो आज भी आदिम युग में जीने को मजबूर है.

Intro:स्थान- पुरोला
स्पेशल/exclusive रिपोर्ट---- ground report anil aswal....

anchor_गुर्जर समुदाय के लोगों को इतिहासकारों ने कभी सूर्यवंसी, रघुवंशी, रघुग्रामीन तो राजस्थान में "मिहिर"शब्दों से इनकी पहचान समाज के सामने लाने की कोशिश की हो ,तो वहीं संस्कृत विद्धवान के अनुसार" गुर्जर "शुद्ध संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ शत्रु विनाशक के रूप में की हो। लेकिन इतिहासकार समाज में इन्हें क्या पहचान दें ये मायने नहीं रखता, आज इस समुदाय के सामने अपनी पहचान की लड़ाई नही अपितु अपने जीवन यापन और एक अद्दद आशियाने की दरकार है जहाँ वो भी अपने आने वाली युवा पीढ़ी को अछी तालीम देकर देश की मुखय धारा में जोड़ सके। पेश है एक ग्राउंड रिपोर्ट,,,,,,,,,


Body:vo1_ गुर्जर समुदाय के लोग छोटे छोटे कबीलों में रहकर जंगलों में अपने मवेशियों के साथ ही अपना जीवन यापन करते आ रहे है ।इसी पशु धन से ,सदियों से ये अपने और अपने परिवार का गुजर बसर करते आ रहे हैं,लेकिन सरकारी क़ानून के आगे वनों में इनका छेत्र सिकुड़ता जा रहा है, एक ओर जहां इनके परिवारों की संख्या लगातार बढ़ रही है तो वहिं पषुधन में साल दर साल लगातार बढ़ोतरी हो रही है लेकिन जंगलों में चरान चुगान के लिये वही सन १९६० का परमिट ही लागू है । जिस कारण इनके आगे रोजी रोटी का संकट खड़ा हो रखा है, तो मासुम तालीम से दूर ।
bit- ,,,,,,,p2c anil aswal
vo2- राज्य में घुमंतु गुर्जर समुदाय के लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा, अब ये लोग सरकार से एक अदद आशियानें की मांग कर रहे हैं जहां पर ये अपने बचों को पढ़ना लिखना सीखा सकें । हालाँकि पिछली सरकारों ने इनके विस्थापन व बचों को पढ़ाने की पहल की लेकिन नतीजा सिफर ही रहा । तो सरकारों ने न्यालय के उस आदेश को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जिस में इन्हे विस्थापित कर अन्य नागरिकों की तरह सरकारी सुविधाएं दी जाने की बात कही गई थी ।
bit- 1
bit- last p2c,,,anil aswal,,,,


Conclusion:vo3- सरकार का" सबक साथ सबका विकास" का नारा तभी बुलंद हो सकता है जब मुख्य धारा से हटे लोगों को भी विकाश की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके।
Last Updated : Sep 16, 2019, 6:34 PM IST
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