उत्तरकाशी: गंगा संरक्षण के लिये वर्ष 1948 से अपना पूरा जीवन लगाने वाले 94 वर्षीय स्वामी सुंदरानंद गंगोत्री ग्लेशियर की वर्तमान स्थिति से बेहद चिंतित हैं. गंगोत्री ग्लेशियर और बदरीनाथ घाटी के साथ ही पूरे हिमालयी क्षेत्र को करीब से जानने वाले स्वामी सुंदरानंद ने इस ज्वलंत मुद्दों पर ईटीवी भारत से खास बातचीत की. स्वामी सुंदरानंद गंगोत्री, हिमालय और ग्लेशियर को वामक कहते हैं. उनके गिरते स्तर पर उन्होंने चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि आज गौमुख पुष्पबासा से 5 किमी पीछे खिसक चुका है. अगर ऐसी ही स्थिति बनी रहती है और गंगोत्री ग्लेशियर से छेड़छाड़ बन्द नहीं हुई तो आने वाले 25 साल बाद गंगा गंगोत्री में ही नाले के रूप में बहने लगेगी.
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स्वामी सुंदरानंद ने गंगोत्री धाम में ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि जब 1948 में वह पहली बार गंगोत्री धाम पहुंचे और उसके बाद हिमालय की ऊंची-ऊंची चोटियों का विचरण किया तो यह स्वर्ग था, आज स्वर्ग में धरती निकल आई है. गौमुख जो कि कभी पुष्पबासा के समीप हुआ करता था आज 5 किमी पीछे खिसक गया है.
स्वामी सुंदरानंद आगे कहते हैं कि पहले गंगा को पोषित करने के लिए गंगोत्री हिमालय में रक्तवन, रुद्रगेरा सहित अनेकों ग्लेशियर (वामक) हुआ करते थे. आज सब विलुप्ति की कगार पर हैं. स्वामी सुंदरानंद चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं कि अगर इसी प्रकार हिमालय पर अतिक्रमण होता रहा तो आने वाले 25 साल बाद गंगा गंगोत्री धाम में ही एक नाले के रूप में बहने लगेगी और भविष्य की पीढ़ी गंगा की पवित्रता को किताबों या कहानियों में ही सुन पाएगी.
स्वामी सुंदरानंद ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान बदरीनाथ घाटी में सेना की हिलामयी ग्लेशियर के बीच रास्ता ढूंढ़ने में मदद की थी. सुंदरानंद ने बताया कि उस वक्त चीन ने धमकी दी थी कि बदरीनाथ के कपाट उनकी सेना खोलेगी. फोटोग्राफी के शौकीन स्वामी सुंदरानंद बदरीनाथ पहुंचे थे, जहां सेना को मालूम हुआ कि स्वामी हिमालयी रास्तों को अच्छी तरह जानते हैं. ऐसे में स्वामी सुंदरानंद सेना के गाइड बने और 30 सैनिकों को लेकर चीन सीमा को छूने वाले ग्लेशियर की तलाश की.