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दयारा बुग्याल में मनाया गया 'बटर फेस्टिवल', दही और मक्खन से खेली गई होली

11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल में अंढूड़ी उत्सव (बटर फेस्टिवल) की धूम रही. जिसका स्थानीय लोग सालभर बेसब्री से इंतजार करते हैं.

uttarkashi butter festival
दयारा बुग्याल में मनाया गया बटर फेस्टिवल.
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Published : Aug 18, 2021, 8:43 AM IST

Updated : Aug 18, 2021, 12:34 PM IST

उत्तरकाशी: देवभूमि की संस्कृति और विरासत अपने आप में अनूठी है, जिसकी झलक यहां के लोक पर्वों पर अक्सर देखने को मिल जाती है. उत्तराखंड में कोई देव पूजा हो या त्योहार, उसे हमेशा प्रकृति से जोड़कर मनाया जाता है. ऐसा ही एक त्योहार उत्तरकाशी के ऊंचाई वाले गांव के बुग्यालों में मनाया जाता है. जहां दूध, दही, मक्खन की होली के साथ अंढूड़ी त्योहार मनाया जाता है. जिसे 11 हजार फीट की ऊंचाई दयारा बुग्याल में धूमधाम से मनाया गया.

गौर हो कि जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र दयारा बुग्याल में बटर फेस्टिवल मनाया गया. दयारा बुग्याल में मनाया जाने वाला ये त्योहार काफी खास है. जिसको अंढूड़ी त्योहार कहा जाता है, जिसमें ग्रामीण बुग्यालों में एक विशेष दिन निकालकर अपने आराध्य देव को दूध, दही चढ़ाकर लोकनृत्य करते हैं. साथ ही एक दूसरे पर मक्खन और दही लगाकर होली खेलते हैं.

दयारा बुग्याल में मनाया गया बटर फेस्टिवल.

इस त्योहार को ग्रामीण दशकों से मनाते हैं. दयारा पर्यटन उत्सव समिति रैथल के सदस्य बताते हैं कि सावन माह में पहाडों में ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ बुग्यालों में छानियों में आ जाते हैं. करीब एक माह यहां पर रहने के बाद जब ऊंचे बुग्यालों में ठंड शुरू हो जाती है. ग्रामीण अपने गांव की ओर लौटने लगते हैं.

पढ़ें- CM धामी ने किया निशुल्क जांच योजना का शुभारंभ, अव्यवस्थाओं पर बिफरे धन सिंह रावत

इससे पूर्व दयारा बुग्याल में भाद्रपद की संक्रांति को ग्रामीणों अपने ईष्ट देवी देवताओं और वन देवताओं को सावन में मवेशियों से हुए दूध, दही और मक्खन का भोग लगाते हैं. इसे स्थानीय भाषा मे अंढूड़ी त्योहार कहा जाता है. समय के साथ दयारा बुग्याल में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए इस पर्व को बटर फेस्टिवल का नाम दिया गया है.

दयारा पर्यटन उत्सव समिति रैथल के सदस्यों ने बताया कि इस वर्ष मंगलवार को कोरोनाकाल के चलते सीमित ग्रामीणों की मौजूदगी में दयारा बुग्याल में दूध दही और मक्खन की होली खेली गई. उसके बाद ग्रामीणों ने ढोल-दमाऊं के साथ रासो, तांदी नृत्य का आयोजन किया गया. सावन माह में बुग्यालों में अच्छी घास होने के कारण मवेशी अच्छा दूध का उत्पादन करते हैं. इसलिए ग्रामीण बुग्यालों से लौटने से पहले अपने देवी-देवताओं को दूध, दही, मक्खन की भेंट चढ़ाना नहीं भूलते.

पढ़ें-बदरीनाथ मास्टर प्लान का ब्लू प्रिंट जारी, विपक्ष और वैज्ञानिकों ने जताया विरोध

त्योहार का महत्व: उत्तरकाशी के गांव में लोग सावन और भादों माह में खेतों में रोपाई पूरी होने के बाद अपने पालतू पशुओं को लेकर गांव के ऊंचे बुग्यालों और डांडी-कांडियों की ओर चले जाते हैं. बुग्यालों और डांडो में अच्छी घास होने के कारण गाय और भैंसे अच्छा दूध देती हैं. इस दौरान ग्रामीणों की छानियां दूध और दही मक्खन से भर जाते हैं. जिसके बाद ग्रामीणों द्वारा अंढूड़ी त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है.

उत्तरकाशी: देवभूमि की संस्कृति और विरासत अपने आप में अनूठी है, जिसकी झलक यहां के लोक पर्वों पर अक्सर देखने को मिल जाती है. उत्तराखंड में कोई देव पूजा हो या त्योहार, उसे हमेशा प्रकृति से जोड़कर मनाया जाता है. ऐसा ही एक त्योहार उत्तरकाशी के ऊंचाई वाले गांव के बुग्यालों में मनाया जाता है. जहां दूध, दही, मक्खन की होली के साथ अंढूड़ी त्योहार मनाया जाता है. जिसे 11 हजार फीट की ऊंचाई दयारा बुग्याल में धूमधाम से मनाया गया.

गौर हो कि जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र दयारा बुग्याल में बटर फेस्टिवल मनाया गया. दयारा बुग्याल में मनाया जाने वाला ये त्योहार काफी खास है. जिसको अंढूड़ी त्योहार कहा जाता है, जिसमें ग्रामीण बुग्यालों में एक विशेष दिन निकालकर अपने आराध्य देव को दूध, दही चढ़ाकर लोकनृत्य करते हैं. साथ ही एक दूसरे पर मक्खन और दही लगाकर होली खेलते हैं.

दयारा बुग्याल में मनाया गया बटर फेस्टिवल.

इस त्योहार को ग्रामीण दशकों से मनाते हैं. दयारा पर्यटन उत्सव समिति रैथल के सदस्य बताते हैं कि सावन माह में पहाडों में ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ बुग्यालों में छानियों में आ जाते हैं. करीब एक माह यहां पर रहने के बाद जब ऊंचे बुग्यालों में ठंड शुरू हो जाती है. ग्रामीण अपने गांव की ओर लौटने लगते हैं.

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इससे पूर्व दयारा बुग्याल में भाद्रपद की संक्रांति को ग्रामीणों अपने ईष्ट देवी देवताओं और वन देवताओं को सावन में मवेशियों से हुए दूध, दही और मक्खन का भोग लगाते हैं. इसे स्थानीय भाषा मे अंढूड़ी त्योहार कहा जाता है. समय के साथ दयारा बुग्याल में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए इस पर्व को बटर फेस्टिवल का नाम दिया गया है.

दयारा पर्यटन उत्सव समिति रैथल के सदस्यों ने बताया कि इस वर्ष मंगलवार को कोरोनाकाल के चलते सीमित ग्रामीणों की मौजूदगी में दयारा बुग्याल में दूध दही और मक्खन की होली खेली गई. उसके बाद ग्रामीणों ने ढोल-दमाऊं के साथ रासो, तांदी नृत्य का आयोजन किया गया. सावन माह में बुग्यालों में अच्छी घास होने के कारण मवेशी अच्छा दूध का उत्पादन करते हैं. इसलिए ग्रामीण बुग्यालों से लौटने से पहले अपने देवी-देवताओं को दूध, दही, मक्खन की भेंट चढ़ाना नहीं भूलते.

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त्योहार का महत्व: उत्तरकाशी के गांव में लोग सावन और भादों माह में खेतों में रोपाई पूरी होने के बाद अपने पालतू पशुओं को लेकर गांव के ऊंचे बुग्यालों और डांडी-कांडियों की ओर चले जाते हैं. बुग्यालों और डांडो में अच्छी घास होने के कारण गाय और भैंसे अच्छा दूध देती हैं. इस दौरान ग्रामीणों की छानियां दूध और दही मक्खन से भर जाते हैं. जिसके बाद ग्रामीणों द्वारा अंढूड़ी त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है.

Last Updated : Aug 18, 2021, 12:34 PM IST
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