उत्तरकाशी: ऋषिकेश से चारधाम पैदल यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए गंगा तट के पास साल 1880 में सबसे पहली बार प्याऊ की व्यवस्था बाबा काली कमली उर्फ स्वामी विशुद्धानन्द ने की थी. इसके कुछ सालों बाद बाबा काली कमली ने हरिद्वार से लेकर उत्तराखंड के चारों धामों तक हर 9 मील की दूरी पर पैदल यात्रियों के लिए एक चट्टी का निर्माण करवाया, जहां श्रद्धालुओं को फ्री में कच्चा राशन मिलता है. इस राशन को यात्री पकाकर खाते हैं और विश्राम कर आगे की यात्रा शुरू करते हैं. इसके बाद यात्रियों के लिए यात्रा के मुख्य पड़ावों पर काली कमली धर्मशाला की भी शुरुआत की गई.
काली कमली धर्मशाला यात्रा सीजन के दौरान देश-विदेश से पहुंचे श्रद्धालुओं की सभी व्यवस्था करने के भूखे लोगों और साधु-संतों को रोज भोजन करवाता है. ऑफ सीजन में भी यहां हर दिन संत साधुओं सहित भूखे लोगों के लिए लंगर लगता है. इसके अलावा चट्टियों में मुफ्त अन्नक्षेत्र की व्यवस्था भी साधु-संतों के लिए अकसर रहती है. फिलहाल चारधाम यात्रा के सभी रास्तों पर 17 मुख्य काली कमली धर्मशाला हैं. इसके अलावा 9 मील की दूरी पर स्थित चट्टियां अभी भी अस्तित्व में हैं.
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बाबा काली कमली कैसे पड़ा नाम
स्वामी विशुद्धानन्द महाराज बाबा काली कमली के नाम से भी जाने जाते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि वो काला कंबल ओढ़े शंकरानन्द से दीक्षा लेकर काशी से हरिद्वार आये थे. यहां से उन्होंने पूरे उत्तराखंड की यात्रा शुरू की, साथ ही यहां की विषम परिस्थितियों को करीब से जाना. तब उनके मन में आया कि जो साधु-महात्मा और यात्री चारों धामों की यात्रा पर आते हैं उनके लिए जीवन समर्पित किया जाना चाहिए.
श्रद्धालुओं के लिए किया जीवन समर्पित
बाबा काली कमली ने जैसे ही चारधाम श्रद्धालु और साधु संतों की सेवा के लिए जीवन समर्पित करने की सोची तो साल 1880 में ऋषिकेश में गंगा किनारे एक प्याऊ की व्यवस्था की. इसके बाद बाबा काली कमली ने पूरे भारतवर्ष की यात्रा कर लोगों का ध्यान उत्तराखंड की ओर खींचा. इसके चार साल बाद उन्होंने ऋषिकेश में अन्न क्षेत्र की स्थापना की, जो आजतक चल रहा है. बाबा काली कमली संस्था का पंजीकरण 23 जनवरी 1927 को हुआ था. इन्होंने अपना पहला कार्यालय कलकत्ता में खोला था, जो आज भी सक्रिय है.
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एक प्याऊ के साथ शुरू हुआ बाबा काली कमली का सार्थक प्रयास आज एक बड़े वट वृक्ष की तरह फैल गया है. हरिद्वार से लेकर चारधाम यात्रा के मुख्य पड़ावों पर काली कमली धर्मशाला मौजूद हैं. यहां हर वर्ष चारधाम यात्रा के दौरान हजारों श्रद्धालु रुकते हैं. साथ ही चारधाम यात्रा पर निकले साधु संतों को ऋषिकेश से एक पर्ची दी जाती है, जिस पर्ची के आधार पर हर 9 मील पर स्थित बाबा काली कमली के अन्नक्षेत्रों में पैदल यात्रियों के लिए भोजन व्यवस्था की जाती है. साथ ही सभी मुख्य धर्मशालाओं में प्रत्येक दिन साधु संतों और भूखे लोगों के लिए अन्नक्षेत्र की व्यवस्था की जाती है.