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एक प्याऊ से शुरू किया था सेवा का सफर, 130 साल से हर श्रद्धालु की मदद कर रहे 'बाबा काली कमली वाले' - rishikesh news

बाबा काली कमली कर रहे सालों से चारधाम आने-जाने वाले श्रद्धालुओं और संतों की सेवा.

बाबा काली कमली वाले.
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Published : May 15, 2019, 3:26 PM IST

उत्तरकाशी: ऋषिकेश से चारधाम पैदल यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए गंगा तट के पास साल 1880 में सबसे पहली बार प्याऊ की व्यवस्था बाबा काली कमली उर्फ स्वामी विशुद्धानन्द ने की थी. इसके कुछ सालों बाद बाबा काली कमली ने हरिद्वार से लेकर उत्तराखंड के चारों धामों तक हर 9 मील की दूरी पर पैदल यात्रियों के लिए एक चट्टी का निर्माण करवाया, जहां श्रद्धालुओं को फ्री में कच्चा राशन मिलता है. इस राशन को यात्री पकाकर खाते हैं और विश्राम कर आगे की यात्रा शुरू करते हैं. इसके बाद यात्रियों के लिए यात्रा के मुख्य पड़ावों पर काली कमली धर्मशाला की भी शुरुआत की गई.

बाबा काली कमली वाले.

काली कमली धर्मशाला यात्रा सीजन के दौरान देश-विदेश से पहुंचे श्रद्धालुओं की सभी व्यवस्था करने के भूखे लोगों और साधु-संतों को रोज भोजन करवाता है. ऑफ सीजन में भी यहां हर दिन संत साधुओं सहित भूखे लोगों के लिए लंगर लगता है. इसके अलावा चट्टियों में मुफ्त अन्नक्षेत्र की व्यवस्था भी साधु-संतों के लिए अकसर रहती है. फिलहाल चारधाम यात्रा के सभी रास्तों पर 17 मुख्य काली कमली धर्मशाला हैं. इसके अलावा 9 मील की दूरी पर स्थित चट्टियां अभी भी अस्तित्व में हैं.

पढ़ें- कूड़े की वजह से जाम हुआ नाला, लोगों को घरों में पानी घुसने का डर

बाबा काली कमली कैसे पड़ा नाम
स्वामी विशुद्धानन्द महाराज बाबा काली कमली के नाम से भी जाने जाते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि वो काला कंबल ओढ़े शंकरानन्द से दीक्षा लेकर काशी से हरिद्वार आये थे. यहां से उन्होंने पूरे उत्तराखंड की यात्रा शुरू की, साथ ही यहां की विषम परिस्थितियों को करीब से जाना. तब उनके मन में आया कि जो साधु-महात्मा और यात्री चारों धामों की यात्रा पर आते हैं उनके लिए जीवन समर्पित किया जाना चाहिए.

श्रद्धालुओं के लिए किया जीवन समर्पित
बाबा काली कमली ने जैसे ही चारधाम श्रद्धालु और साधु संतों की सेवा के लिए जीवन समर्पित करने की सोची तो साल 1880 में ऋषिकेश में गंगा किनारे एक प्याऊ की व्यवस्था की. इसके बाद बाबा काली कमली ने पूरे भारतवर्ष की यात्रा कर लोगों का ध्यान उत्तराखंड की ओर खींचा. इसके चार साल बाद उन्होंने ऋषिकेश में अन्न क्षेत्र की स्थापना की, जो आजतक चल रहा है. बाबा काली कमली संस्था का पंजीकरण 23 जनवरी 1927 को हुआ था. इन्होंने अपना पहला कार्यालय कलकत्ता में खोला था, जो आज भी सक्रिय है.

पढ़ें- बच्चों की सेहत से हो रहा खिलवाड़, आंगनबाड़ी के पुष्टाहार में मिला कीड़ा

एक प्याऊ के साथ शुरू हुआ बाबा काली कमली का सार्थक प्रयास आज एक बड़े वट वृक्ष की तरह फैल गया है. हरिद्वार से लेकर चारधाम यात्रा के मुख्य पड़ावों पर काली कमली धर्मशाला मौजूद हैं. यहां हर वर्ष चारधाम यात्रा के दौरान हजारों श्रद्धालु रुकते हैं. साथ ही चारधाम यात्रा पर निकले साधु संतों को ऋषिकेश से एक पर्ची दी जाती है, जिस पर्ची के आधार पर हर 9 मील पर स्थित बाबा काली कमली के अन्नक्षेत्रों में पैदल यात्रियों के लिए भोजन व्यवस्था की जाती है. साथ ही सभी मुख्य धर्मशालाओं में प्रत्येक दिन साधु संतों और भूखे लोगों के लिए अन्नक्षेत्र की व्यवस्था की जाती है.

उत्तरकाशी: ऋषिकेश से चारधाम पैदल यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए गंगा तट के पास साल 1880 में सबसे पहली बार प्याऊ की व्यवस्था बाबा काली कमली उर्फ स्वामी विशुद्धानन्द ने की थी. इसके कुछ सालों बाद बाबा काली कमली ने हरिद्वार से लेकर उत्तराखंड के चारों धामों तक हर 9 मील की दूरी पर पैदल यात्रियों के लिए एक चट्टी का निर्माण करवाया, जहां श्रद्धालुओं को फ्री में कच्चा राशन मिलता है. इस राशन को यात्री पकाकर खाते हैं और विश्राम कर आगे की यात्रा शुरू करते हैं. इसके बाद यात्रियों के लिए यात्रा के मुख्य पड़ावों पर काली कमली धर्मशाला की भी शुरुआत की गई.

बाबा काली कमली वाले.

काली कमली धर्मशाला यात्रा सीजन के दौरान देश-विदेश से पहुंचे श्रद्धालुओं की सभी व्यवस्था करने के भूखे लोगों और साधु-संतों को रोज भोजन करवाता है. ऑफ सीजन में भी यहां हर दिन संत साधुओं सहित भूखे लोगों के लिए लंगर लगता है. इसके अलावा चट्टियों में मुफ्त अन्नक्षेत्र की व्यवस्था भी साधु-संतों के लिए अकसर रहती है. फिलहाल चारधाम यात्रा के सभी रास्तों पर 17 मुख्य काली कमली धर्मशाला हैं. इसके अलावा 9 मील की दूरी पर स्थित चट्टियां अभी भी अस्तित्व में हैं.

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बाबा काली कमली कैसे पड़ा नाम
स्वामी विशुद्धानन्द महाराज बाबा काली कमली के नाम से भी जाने जाते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि वो काला कंबल ओढ़े शंकरानन्द से दीक्षा लेकर काशी से हरिद्वार आये थे. यहां से उन्होंने पूरे उत्तराखंड की यात्रा शुरू की, साथ ही यहां की विषम परिस्थितियों को करीब से जाना. तब उनके मन में आया कि जो साधु-महात्मा और यात्री चारों धामों की यात्रा पर आते हैं उनके लिए जीवन समर्पित किया जाना चाहिए.

श्रद्धालुओं के लिए किया जीवन समर्पित
बाबा काली कमली ने जैसे ही चारधाम श्रद्धालु और साधु संतों की सेवा के लिए जीवन समर्पित करने की सोची तो साल 1880 में ऋषिकेश में गंगा किनारे एक प्याऊ की व्यवस्था की. इसके बाद बाबा काली कमली ने पूरे भारतवर्ष की यात्रा कर लोगों का ध्यान उत्तराखंड की ओर खींचा. इसके चार साल बाद उन्होंने ऋषिकेश में अन्न क्षेत्र की स्थापना की, जो आजतक चल रहा है. बाबा काली कमली संस्था का पंजीकरण 23 जनवरी 1927 को हुआ था. इन्होंने अपना पहला कार्यालय कलकत्ता में खोला था, जो आज भी सक्रिय है.

पढ़ें- बच्चों की सेहत से हो रहा खिलवाड़, आंगनबाड़ी के पुष्टाहार में मिला कीड़ा

एक प्याऊ के साथ शुरू हुआ बाबा काली कमली का सार्थक प्रयास आज एक बड़े वट वृक्ष की तरह फैल गया है. हरिद्वार से लेकर चारधाम यात्रा के मुख्य पड़ावों पर काली कमली धर्मशाला मौजूद हैं. यहां हर वर्ष चारधाम यात्रा के दौरान हजारों श्रद्धालु रुकते हैं. साथ ही चारधाम यात्रा पर निकले साधु संतों को ऋषिकेश से एक पर्ची दी जाती है, जिस पर्ची के आधार पर हर 9 मील पर स्थित बाबा काली कमली के अन्नक्षेत्रों में पैदल यात्रियों के लिए भोजन व्यवस्था की जाती है. साथ ही सभी मुख्य धर्मशालाओं में प्रत्येक दिन साधु संतों और भूखे लोगों के लिए अन्नक्षेत्र की व्यवस्था की जाती है.

Intro:हेडलाइन- काली कमली धर्मशाला( स्पेशल स्टोरी)। उत्तरकाशी। वर्ष 1880 में ऋषिकेश में गंगा तट से पेड़ के नीचे से शुरू हुआ प्याऊ से शुरू हुआ और उसके 4 वर्ष बाद चारधाम यात्रा पर जाने वाले यात्रियों के लिए अन्न क्षेत्र के साथ एक प्रयास शुरू हुआ। जो कि हरीद्वार से लेकर उत्तराखंड के चारों धामों के हर 9 मील की दूरी पर पैदल धाम की यात्रा पर जा रहे महात्माओं और श्रद्धालुओं के लिए शुरू हुआ,' बाबा काली कमली धर्मशाला'। जहां आज के समय मे आम से लेकर खास यात्रियों की रुकने की वयवस्था है। चारधाम यात्रा के दौरान यह देश विदेश से आने वाले यात्रियों की पहली पसंद होती है। साथ ही हर रोज यात्रा सीजन हो या ऑफ सीजन संत साधुओं सहित भूखे लोगों के लिए हर दिन अन्नक्षेत्र की वयवस्था सभी काली कमली धर्मशालाओं में होती हैं। आज के समय हरिद्वार से सभी चारधाम यात्रा रूटों पर मुख्य 17 काली कमली धर्मशाला हैं। साथ ही 9 मील की दूरी पर स्थित अन्य धर्मशालाएं शामिल हैं।


Body:वीओ-1, स्वामी विशुद्धानन्द जी महाराज ( बाबा काली कमली) काली कम्बल पहनने के कारण पड़ा नाम, ने काशी में शंकरानंद जी से दीक्षा लेकर हरिद्वार आये। जहां से उन्होंने पूरे उत्तराखंड की यात्रा की। साथ ही यहां की विषम परिस्थितियों को करीब से जाना। तब उनके मन मे आया कि जो साधु माहात्मा और यात्री चारों धामों की यात्रा पर आते हैं। उनके लिए जीवन समर्पण किया। 1880 में ऋषिकेश में गंगा किनारे एक प्याऊ के साथ एक सार्थक प्रयास की शुरुआत हुई। उसके बाद बाबा काली कमली ने पूरे भारतवर्ष की यात्रा कर लोगों का ध्यान उत्तराखण्ड की और खींचा और चार वर्ष बाद ऋषिकेश में अन्न क्षेत्र की स्थापना की। जो आज तक चल रहा है। बाबा काली कमली संस्था का पंजीकरण 23 जनवरी 1927 को हुआ और कलकत्ता में इसका प्रधान कार्यालय खोला गया। जो आज भी कार्य कर रहा है।


Conclusion:वीओ-2, एक प्याऊ के साथ शुरू हुई बाबा काली कमली का के सार्थक प्रयास को आज एक बड़े बट के पेड़ की तरह उनके अनुयायियों ने फैलाया। जो कि आज हरिद्वार से लेकर चारधाम यात्रा के मुख्य पड़ावों पर काली कमली धर्मशाला मौजूद है। जहां पर हर वर्ष चारधाम यात्रा के दौरान हजारों श्रद्धालु रुकते हैं। साथ ही चारधाम यात्रा पर निकले साधु संतों को ऋषिकेश से एक पर्ची दी जाती है। जिस पर्ची के आधार पर हर 9 मील पर स्थित बाबा काली कमली के अन्नक्षेत्रों में पैदल यात्रियों को आज भी भोजन व्यवस्थाएं दी जाती हैं। साथ ही सभी मुख्य धर्मशालाओं में प्रत्येक दिन साधु संतों और भूखे लोगों के लिए अन्नक्षेत्रों की व्यवस्थाएं की जाती हैं। बाईट- रविन्द्र शर्मा, प्रबंधक बाबा काली कमली धर्मशाला,उत्तरकाशी।
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