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शहीद श्रीदेव की पुण्यतिथि पर मनाया गया 'सुमन दिवस', टिहरी जेल में पौधे रोप कर यादें की ताजा

टिहरी जिला कारागार में श्रीदेव सुमन की 78वीं पुण्यतिथि पर 'सुमन दिवस' मनाया गया. इस मौके पर जिलाधिकारी डॉ सौरभ गहरवार और विधायक किशोर उपाध्याय मौजूद रहे.

Sridev Suman
श्रीदेव सुमन
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Published : Jul 25, 2022, 12:07 PM IST

Updated : Jul 25, 2022, 2:14 PM IST

टिहरी: अमर शहीद श्रीदेव सुमन की 78वीं पुण्यतिथि पर जिला कारागार में 'सुमन दिवस' मनाया गया. 'सुमन दिवस' पर टिहरी विधायक किशोर उपाध्याय, डीएम डॉ सौरभ गहरवार (DM Dr Saurabh Gaharwar) ने श्रीदेव सुमन की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की. इस मौके पर पौधारोपण किया गया और छात्रों ने प्रभात फेरी भी निकाली.

बता दें, श्रीदेव सुमन का जन्म 25 मई 1916 को टिहरी के जौल गांव में हुआ था. ब्रिटिश हुकूमत और टिहरी की अलोकतांत्रिक राजशाही के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे श्रीदेव सुमन को दिसंबर 1943 को टिहरी की जेल में डाल दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने भूख हड़ताल करने का फैसला किया. 209 दिनों तक जेल में रहने और 84 दिनों की भूख हड़ताल के बाद श्रीदेव सुमन का 25 जुलाई 1944 को निधन हो गया.

श्रीदेव सुमन का मूल नाम श्रीदत्त बडोनी था. उनके पिता का नाम हरिराम बडोनी और माता का नाम तारा देवी था. उन्होंने मार्च 1936 गढ़देश सेवा संघ की स्थापना की थी. जबकि, जून 1937 में 'सुमन सौरभ' कविता संग्रह प्रकाशित किया. वहीं, जनवरी 1939 में देहरादून में प्रजामंडल के संस्थापक सचिव चुने गए. मई 1940 में टिहरी रियासत ने उनके भाषण पर प्रतिबंध लगा दिया.

Sridev Suman
जिला कारागार में किया पौधारोपण

वहीं, श्रीदेव सुमन को मई 1941 में रियासत से निष्कासित कर दिया गया. उन्हें जुलाई 1941 में टिहरी में पहली बार गिरफ्तार किया गया जबकि उनकी अगस्त 1942 में टिहरी में ही दूसरी बार गिरफ्तारी हुई. नवंबर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आगरा सेंट्रल जेल में बंद रहे. उन्हें नवंबर 1943 में आगरा सेंट्रल जेल से रिहा किया गया.

वहीं, दिसंबर 1943 में श्रीदेव सुमन को टिहरी में तीसरी बार गिरफ्तार किया गया. फरवरी 1944 में टिहरी जेल में सजा सुनाई गई. 3 मई 1944 से टिहरी जेल में अनशन शुरू किया. जहां 84 दिन के ऐतिहासिक अनशन के बाद 25 जुलाई 1944 में 29 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. इस दौरान उनकी रोटियों में कांच कूटकर डाला गया और उन्हें वो कांच की रोटियां खाने को मजबूर किया गया.
पढ़ें- देश की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा- लोकतंत्र की शक्ति ने मुझे यहां पहुंचाया

श्रीदेव सुमन पर कई प्रकार से अत्याचार होते रहे. झूठे गवाहों के आधार पर उन पर मुकदमा दायर किया गया. हालांकि, टिहरी रियासत को अंग्रेज कभी भी अपना गुलाम नहीं बना पाए थे. जेल में रहकर श्रीदेव सुमन कमजोर नहीं पड़े. जनक्रांति के नायक अमर शहीद श्रीदेव सुमन को हर साल श्रद्धासुमन अर्पित कर याद किया जाता है.

टिहरी: अमर शहीद श्रीदेव सुमन की 78वीं पुण्यतिथि पर जिला कारागार में 'सुमन दिवस' मनाया गया. 'सुमन दिवस' पर टिहरी विधायक किशोर उपाध्याय, डीएम डॉ सौरभ गहरवार (DM Dr Saurabh Gaharwar) ने श्रीदेव सुमन की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की. इस मौके पर पौधारोपण किया गया और छात्रों ने प्रभात फेरी भी निकाली.

बता दें, श्रीदेव सुमन का जन्म 25 मई 1916 को टिहरी के जौल गांव में हुआ था. ब्रिटिश हुकूमत और टिहरी की अलोकतांत्रिक राजशाही के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे श्रीदेव सुमन को दिसंबर 1943 को टिहरी की जेल में डाल दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने भूख हड़ताल करने का फैसला किया. 209 दिनों तक जेल में रहने और 84 दिनों की भूख हड़ताल के बाद श्रीदेव सुमन का 25 जुलाई 1944 को निधन हो गया.

श्रीदेव सुमन का मूल नाम श्रीदत्त बडोनी था. उनके पिता का नाम हरिराम बडोनी और माता का नाम तारा देवी था. उन्होंने मार्च 1936 गढ़देश सेवा संघ की स्थापना की थी. जबकि, जून 1937 में 'सुमन सौरभ' कविता संग्रह प्रकाशित किया. वहीं, जनवरी 1939 में देहरादून में प्रजामंडल के संस्थापक सचिव चुने गए. मई 1940 में टिहरी रियासत ने उनके भाषण पर प्रतिबंध लगा दिया.

Sridev Suman
जिला कारागार में किया पौधारोपण

वहीं, श्रीदेव सुमन को मई 1941 में रियासत से निष्कासित कर दिया गया. उन्हें जुलाई 1941 में टिहरी में पहली बार गिरफ्तार किया गया जबकि उनकी अगस्त 1942 में टिहरी में ही दूसरी बार गिरफ्तारी हुई. नवंबर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आगरा सेंट्रल जेल में बंद रहे. उन्हें नवंबर 1943 में आगरा सेंट्रल जेल से रिहा किया गया.

वहीं, दिसंबर 1943 में श्रीदेव सुमन को टिहरी में तीसरी बार गिरफ्तार किया गया. फरवरी 1944 में टिहरी जेल में सजा सुनाई गई. 3 मई 1944 से टिहरी जेल में अनशन शुरू किया. जहां 84 दिन के ऐतिहासिक अनशन के बाद 25 जुलाई 1944 में 29 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. इस दौरान उनकी रोटियों में कांच कूटकर डाला गया और उन्हें वो कांच की रोटियां खाने को मजबूर किया गया.
पढ़ें- देश की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा- लोकतंत्र की शक्ति ने मुझे यहां पहुंचाया

श्रीदेव सुमन पर कई प्रकार से अत्याचार होते रहे. झूठे गवाहों के आधार पर उन पर मुकदमा दायर किया गया. हालांकि, टिहरी रियासत को अंग्रेज कभी भी अपना गुलाम नहीं बना पाए थे. जेल में रहकर श्रीदेव सुमन कमजोर नहीं पड़े. जनक्रांति के नायक अमर शहीद श्रीदेव सुमन को हर साल श्रद्धासुमन अर्पित कर याद किया जाता है.

Last Updated : Jul 25, 2022, 2:14 PM IST
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