टिहरी: विजयादशमी के मौके पर टिहरी राजपरिवार ने शस्त्र पूजा की. टिहरी राजघराने के वंशज भवानी प्रताप सिंह जो वर्तमान में टिहरी दरबार के मुख्य संरक्षक है ने कहा कि गढ़वाल रियासत में पंवार वंश के राजा द्वारा शस्त्र पूजन का विधान आरंभ किया गया था. महाराज कनकपाल ने दशहरे के दिन शस्त्र पूजन का विधान चांदपुर गढ़ी से आरंभ किया था. जिसके पश्चात ये परंपरा देवलगढ़ से होते हुए श्रीनगर एवं टिहरी तक बड़े ही धूमधाम से मनाया जाने लगा. इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों से जागीदारों, थोकदारों द्वारा दरबार में कुल देवी राजराजेश्वरी की पूजा के साथ भेंट चढ़ाने की प्रक्रिया संपन्न होती है.
दशहरा के मौके पर राजगुरु आचार्य कृष्णा नंद नौटियाल द्वारा शस्त्र पूजन कराया गया. इस अवसर पर कुल देवी राजराजेश्वरी की पूजा ब्रह्म कमल और बदरी विशाल के प्रसाद तुलसी माला के साथ किया गया. मान्यता है कि राज परिवार की ओर से दशहरे पर आयोजित होने वाले अनुष्ठानों में दक्ष, किन्नर, गंध और देवी-देवता मौजूद रहते थे.
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महाराज कनकपाल ने चांदपुर गढ़ी में छठवीं शताब्दी में यह परंपरा शुरू की, जिसके बाद देवलगढ़, श्रीनगर और टिहरी में भी इसका काफी प्रसार हुआ. उन्होंने बताया कि इस दिन राज अवकाश भी होता था. त्योहार के दिन जागीरदार, थोकदार और हक-हुकूकदारी दरबार की पूजाओं में शामिल होते थे.
दशहरे के दिन होती है शस्त्र पूजा
दशहरे के दिन शस्त्र पूजा का विधान है. सनातन परंपरा में शस्त्र और शास्त्र दोनों का बहुत महत्व है. शास्त्र की रक्षा और आत्मरक्षा के लिए धर्मसम्म्त तरीके से शस्त्र का प्रयोग होता रहा है. प्राचीनकाल में क्षत्रिय शत्रुओं पर विजय की कामना लिए इसी दिन का चुनाव युद्ध के लिए किया करते थे. पूर्व की भांति आज भी शस्त्र पूजन की परंपरा कायम है और देश की तमाम रियासतों और शासकीय शस्त्रागारों में आज भी शस्त्र पूजा बड़ी धूमधाम के साथ की जाती है.