टिहरी: सकलाना पट्टी के सेमवाल गांव निवासी कमलेश भट्ट का परिवार बेहद दर्द से गुजर रहा है. अबु धाबी में हार्ट अटैक से मौत के बाद 23 अप्रैल को भारत लाए गये शव को केंद्र सरकार के एक सर्कुलर की वजह से वापस भेज दिया गया था. परिजनों को खाली हाथ दिल्ली एयरपोर्ट से लौटना पड़ा. हालांकि, ईटीवी भारत पर खबर प्रमुखता से दिखाए जाने और केंद्रीय मंत्रालयों से सवाल-जवाब के बाद आखिरकार आज गृह मंत्रालय ने स्पष्टीकरण जारी कर शवों को लाए जाने की बात कही है. रविवार रात एक बजे तक कमलेश के साथ 3 अन्य शवों को दिल्ली पहुंचाया जाएगा, वहां से परिजनों को सौंपा जाएगा.
अब जो भी हो रहा हो लेकिन बीती 16 अप्रैल से अबतक टिहरी का भट्ट परिवार अपने बेटे के शव को पाने के लिये केवल जद्दोजहद ही कर रहा था. गीली आंखों और रुंधे गले के साथ बेबस परिजनों भारत सरकार से केवल शव को वापस लाने की लगातार मांग कर रहे थे. टिहरी जिले के जौनपुर विकासखंड के अंतर्गत पड़ने वाले सेमवाल गांव निवासी कमलेश भट्ट तीन साल पहले रोजगार पाने की लिए दूर देश संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबु धाबी चला गया था ताकि वह अपनी गरीबी दूर कर सके लेकिन नियती को कुछ और ही मंजूर था.
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तीन साल बाद 16 अप्रैल की शाम 23 साल के कमलेश भट्ट की हार्ट अटैक से मौत हो गई. इस बात की सूचना कंपनी वालों ने घरवालों को फोन पर दी. इसके बाद तो परिवार पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा. कमलेश ही घर का एकमात्र सहारा था. कमलेश की मौत और शव वापस भेजे जाने की खबर के बाद ईटीवी भारत संवाददाता 2 किलामीटर की खड़ी चढ़ाई चलकर परिवार से मिलने सेमवाल गांव पहुंचे और इस दुख की घड़ी में उन्हें सांत्वना दी. इस दौरान कमलेश की मां प्रमिला देवी, पिता हरि प्रसाद और भाई राजेश हाथ जोड़े केवल अपने बेटे को आखिरी बार देखने की प्रार्थना कर रहे थे.
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कमलेश के परिजनों ने बताया कि उन्होंने कर्ज लेकर बेटे को दुबई भेजा था ताकि घर की माली हालत ठीक हो सके लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनका बेटा ही कभी नहीं लौटेगा. कमलेश आखिरी बार बहन की शादी में एक साल पहले घर लौटा था.कमलेश के भाई का कहना था कि भारत सरकार की एयरपोर्ट ऑथरिटी ने उनके साथ बड़ा भद्दा मजाक किया है. दुबई के सामाजिक कार्यकर्ता रोशन रतूड़ी की मदद से कमलेश का शव दिल्ली इंदिरा गांधी एयरपोर्ट के बगल में टर्मिनल गेट नंबर 6 पर कार्गो विमान से भेजा तो गया लेकिन एयरपोर्ट के अधिकारियों ने शव रिसीव करने से मना कर दिया था. वजह था केंद्र सरकार की ओर से जारी किया गया एक सर्कुलर.
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पूरा गांव कमलेश भट्ट के शव को वापस दुबई भेजने पर एयरपोर्ट ऑथिरिटी के अधिकारियों की लापरवाही पर आक्रोश जता रहे हैं. उनका कहना है कि भारत सरकार और दूतावास में आपस में कोई तालमेल ही नहीं है. अगर ये शव किसी राजनेता या बड़े अधिकारी के बेटा का होता तो क्या इस तरह से शव का मजाक बनाया जाता? मृतक कमलेश भट्ट के भाई राजेश ने बताया कि 16 अप्रैल को शाम 8 बजे आखिरी बार उससे बात हुई थी. उस समय कमलेश ने अपनी मां, पापा और बहन से बात की और 17 अप्रैल की सुबह कमलेश की मौत की खबर उन तक पहुंच गई.
परिवार के ढांढस बधाने कमलेश से कुछ दोस्त भी वहां पहुंचे थे. इसी दौरान हमने अबु धाबी में कमलेश के साथ ही काम करने वाले उसके बचपन के दोस्त विजय सिंह से बात की. उन्होंने बताया कि कमलेश ने ही उसे भी अबु धाबी में नौकरी पर बुलाया था और तब से दोनों एक ही कंपनी में नौकरी करते थे. वो बीच में घर आ गए लेकिन फिर कोरोना की वजह से कमलेश घर नहीं आ सका. हालांकि, बढ़ते विवाद के बाद गृह मंत्रालय को स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा है. भारतीयों और ओसीआई कार्ड धारकों के लिए गृह मंत्रालय की ओर से जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति की अगर विदेश में मौत हो जाती है, तो उसका शव लाने में अब दिक्कत नहीं होगी. गृह मंत्रालय ने उसकी प्रक्रियाएं स्पष्ट कर दी हैं. विदेश मंत्रालय और स्वास्थ्य विभाग से मंजूरी मिलने के बाद शव परिवार को मिल जाएगा.अब उम्मीद है कि भारत सरकार के इस कदम से बाद जल्द ही कमलेश का शव उसके परिवारजनों तक पहुंचे सके.