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स्वामी रामतीर्थ की प्रतिमा हुई जीर्ण-शीर्ण, ऐतिहासिक धरोहर को संजोने की मांग

2005 में टिहरी बांध की झील बनने के कारण पुरानी टिहरी में बनी स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति को कोटी कॉलोनी के पास लाकर स्थापित कर दिया गया. लेकिन रखरखाव के अभाव में ये मूर्ति आज खराब हो गई है. लोगों का आरोप है कि प्रशासन ऐतिहासिक धरोहर संभालने में सहयोग नहीं कर रही है.

स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति.
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Published : Apr 7, 2019, 3:34 PM IST

टिहरी: वेदान्त स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति का रख-रखाव न होने के कारण पुरानी टिहरी की ऐतिहासिक धरोहर क्षतिग्रस्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है. महापुरूष स्वामी रामतीर्थ ने लोगों के लिए प्रेरणादायक रहा है. ऐसे में स्थानीय लोगों ने प्रशासन से इस धरोहर को संजोने की मांग उठाई है.

बता दें कि स्वामी रामतीर्थ का जन्म 22 अक्टूबर 1973 को पंजाब के गुजरांवाला जिले के बरौली गांव में हुआ था. उनके जीवन में विवेकानंद का बहुत प्रभाव पड़ा और टिहरी ही उनकी आध्यात्मिक प्रेरणास्थली बनी. 1906 में दीपावली के दिन उन्होंने मृत्यु के नाम एक सन्देश लिखकर गंगा में जलसमाधि ले ली थी. जिसके बाद पुरानी टिहरी में लोगों ने स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति स्थापना की.

जीर्ण-शीर्ण हुई स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति.

2005 में टिहरी बांध की झील बनने के कारण पुरानी टिहरी में बनी स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति को कोटी कॉलोनी के पास लाकर स्थापित कर दिया गया. लेकिन रखरखाव के अभाव में ये मूर्ति आज खराब हो गई है. लोगों का आरोप है कि प्रशासन ऐतिहासिक धरोहर संभालने में सहयोग नहीं कर रही है.

लोगों का कहना है कि जिस वेदांत स्वामी रामतीर्थ ने अपना घर छोड़कर समाज को जगाने का काम किया. आज उनकी ही मूर्ति का अपमान किया जा रहा है. साथ ही स्वामी रामतीर्थ के नाम से टिहरी विश्वविद्यालय का नाम भी रखा गया, जिससे यहां पर आने वाले लोग स्वामी रामतीर्थ के नाम से परिचित हो सके.

टिहरी: वेदान्त स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति का रख-रखाव न होने के कारण पुरानी टिहरी की ऐतिहासिक धरोहर क्षतिग्रस्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है. महापुरूष स्वामी रामतीर्थ ने लोगों के लिए प्रेरणादायक रहा है. ऐसे में स्थानीय लोगों ने प्रशासन से इस धरोहर को संजोने की मांग उठाई है.

बता दें कि स्वामी रामतीर्थ का जन्म 22 अक्टूबर 1973 को पंजाब के गुजरांवाला जिले के बरौली गांव में हुआ था. उनके जीवन में विवेकानंद का बहुत प्रभाव पड़ा और टिहरी ही उनकी आध्यात्मिक प्रेरणास्थली बनी. 1906 में दीपावली के दिन उन्होंने मृत्यु के नाम एक सन्देश लिखकर गंगा में जलसमाधि ले ली थी. जिसके बाद पुरानी टिहरी में लोगों ने स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति स्थापना की.

जीर्ण-शीर्ण हुई स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति.

2005 में टिहरी बांध की झील बनने के कारण पुरानी टिहरी में बनी स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति को कोटी कॉलोनी के पास लाकर स्थापित कर दिया गया. लेकिन रखरखाव के अभाव में ये मूर्ति आज खराब हो गई है. लोगों का आरोप है कि प्रशासन ऐतिहासिक धरोहर संभालने में सहयोग नहीं कर रही है.

लोगों का कहना है कि जिस वेदांत स्वामी रामतीर्थ ने अपना घर छोड़कर समाज को जगाने का काम किया. आज उनकी ही मूर्ति का अपमान किया जा रहा है. साथ ही स्वामी रामतीर्थ के नाम से टिहरी विश्वविद्यालय का नाम भी रखा गया, जिससे यहां पर आने वाले लोग स्वामी रामतीर्थ के नाम से परिचित हो सके.

Intro:बेदान्त स्वामी राम तीर्थ की मूर्ति का रख रखाव न होने के कारण पुराणी टिहरी के ऐतिहासिक धरोहर क्षतिग्रस्त होने की कगार पर,

ई टी वी भारत से स्थानिया लोगो ने की इस मामले को उठाकर कर शासन प्रशासन को जगाने की मांग ताकि इस धरोहर को बचाया जा सके,


Body:स्वामी रामतीर्थ का जन्म पंजाब के गुजरांवाला जिले के बरौली गांव मे परिवार में 22 अक्टूबर 1973 को दीपावली के दिन हुआ बचपन में ही माता का स्वर्गवास होने के कारण इनका पालन-पोषण इनकी बुआ ने किया उसके बाद भगत धन्ना राम ने उनकी शिक्षा का भार अपने ऊपर लिया आर्थिक कठिनाइयों का सामना करते हुए एंट्रेंस की परीक्षा पंजाब प्रांत में प्रथम श्रेणी में आकर उत्तीर्ण की पिता की इच्छा के विरूद्ध कॉलेज में भर्ती हुए उसके बाद स्कूल की फीस पुस्तक आदि का खर्चा अपनी छात्रवृत्ति ट्यूशन व सादगी पूर्ण जीवन शैली अपना कर पूरा किया b.a. में वह प्रथम आए फिर m.a. की परीक्षा भी अच्छे अंको से पास की उनके अच्छे अंकों के कारण कॉलेज के प्रिंसिपल उन्हें आईसीएस बनाना चाहते थे किंतु उन्होंने पूर्ण जीवन जीने के साथ साथ मानव सेवा का मार्ग चुना कॉलेज में गणित के पेपर से बने 1857 में लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में नेताओं के बड़े-बड़े भाषण सुनकर होने लगा कि केवल के भाषण से कुछ नहीं हो सकता उनके आदर्श विवेकानंद धीरे-धीरे कृष्ण भक्ति का ऐसा गहरा प्रभाव छाने लगा कि वे उत्तराखंड के जंगलों की ओर निकल पड़े ओर नौकरी छोड़ दी 1901 में मथुरा धर्म सम्मेलन कि उन्होंने अध्यक्षता की

,पुरानी टिहरी में राजा कीर्ति शह ने उनके लिए गंगा किनारे एक कुटिया बनवाई थी राजा के कहने पर वह जापान में हुए धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए चले गए वहां उन्होंने भाषणों का व्यापक प्रभाव पड़ा अमेरिका जाकर भी धार्मिक व्याख्यान दिए मिश्र में जाकर इस्लाम धर्म की अच्छी व्याख्या की धर्म तथा आध्यात्मिक चेतना अपने देश में ही नहीं विदेश में जगाने वाले स्वामी रामतीर्थ बड़े ही कुशाग्र बुद्धि के थे विद्यार्थी जीवन की घटना है

एक बार अध्यापक ने विद्यार्थियों से छोटी लकीर को बड़ी लकीर में बदलने को कहा स्वामी रामतीर्थ ने छोटी लकी को मिटाए बिना उसके समीप भी बड़ी लकीर खींच दी एक बार फिर किसी अमेरिकन महिला ने स्वामी से पूछा था कि गोपियों के बीच के बीच खेले जाने वाले कृष्णा जी कैसे सुद्ध हो सकते हैं इस पर स्वामी जी ने उत्तर दिया व्यक्ति के चरित्र का संबंध तो उसके विचारों से होता है विचारों की पवित्रता हमें विचलित नहीं होने देती जैसे इस समय मैं भी तो महिलाओं से घिरा हुआ हूं क्या मैं भी अब तो हो गया उनका ऐसा सटीक उत्तर सुनकर अमेरिकन महिला हो खुश हो गई
स्वामी रामतीर्थ आध्यात्मिक संत होने के साथ-साथ विलक्षण प्रतिभा के धनी थे वह जापानियों की कनिष्ठा और परिश्रम शीलता से प्रभावित थे भारतीय जन जीवन में भी इसकी महत्ता को शामिल करना चाहते थे ऐसा संत लोक से व्यक्तित्व 17 अक्टूबर 190 6 को पुरानी टिहरी के भागीरथी नदी में जल समाधि लेकर ईश्वर में विलय हो गया


Conclusion:वेदांत स्वामी रामतीर्थ मात्र 33 वर्ष की उम्र में उनका स्वास्थ्य और और 1906 दीपावली के दिन गंगा स्नान करते समय उन्होंने पुरानी टिहरी के पास भागीरथी नदी के किनारे महासमाधि ली इन का जन्म और देह त्याग दोनों ही दीपावली के दिन हुआ था इस महान ज्ञानी संत को ईश्वर में धरती से अपने पास बुला दिया उन्होंने बहुत नाम कमा लिया उनकी इच्छा थी कि सच्ची खुशी मोह माया से दूर होकर इश्वर और आत्मा से साक्षात्कार करने में है

टेहरी राजा कीर्ति शह ओर यह कि प्रजा इनसे प्रभावित होकर वेदांत स्वामी रामतीर्थ की याद में पुरानी टिहरी शहर में स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति की स्थापना की गई जिसको गोल कोठी के नाम से जाना जाने लग गया और 2005 में टिहरी बांध की झील बनने के कारण पुरानी टिहरी में बनी स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति को कोटी कॉलोनी के पास लाकर स्थापित कर दिया गया लेकिन 2005 से लेकर अब तक ना तो जिला प्रशासन न पर्यटन विभाग न टिहरी बांध प्रशासन के द्वारा इस मूर्ति के रखरखाव का ध्यान रखा गया जिस कारण आज इस मूर्ति स्थिति खराब हो गई है चारों तरफ से जालियां टूट गई है मूर्तियों के सीमेंट गिरने लगे हैं इस धरोहर को संभालने के लिए किसी भी तरह के लोगों ने ध्यान नहीं दिया जिसको लेकर स्थानीय लोगों में नाराजगी है और लोगों का कहना है कि जिस वेदांत स्वामी रामतीर्थ ने अपना घर बार छोड़कर समाज को जगाने का काम किया और टिहरी को अपना कर्म और मृत्यु दोनों चुनी,उस स्वामी राम तीर्थ की मूर्ति का अपमान किया जा रहा है ,

स्वामी रामतीर्थ के नाम से टिहरी विश्वविद्यालय का नाम भी रखा गया ताकि यहां पर आने वाले लोग स्वामी रामतीर्थ के नाम को जान सके

बाइट प्रबीन सिंह रावत पुरानी टिहरी निवासी
पीटीसी अरविंद नौटियाल

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