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Shardiya Navratri 2023: सिद्धपीठ माता कुंजापुरी, यहां गिरे माता सती के कुंज, जानें इस दिव्य मंदिर की महिमा - उत्तराखंड में शक्ति पीठ का इतिहास

Uttarakhand Tehri Shaktipeeth Mata Kunjapuri temple शारदीय नवरात्रि 2023 में ईटीवी भारत ने अभीतक उत्तराखंड की तीन शक्तिपीठों मनसा देवी, चंडी देवी और सुरकंडा देव देवी के बारे में बताया है. आज हम आपको चौथे शाक्तिपीठ मां कुंजापुरी के बारे में बताने जा रहे हैं. इस शक्तिपीठ का भी पौराणिक इतिहास माता सती से जुड़ा हुआ है. माता कुंजापुरी को लेकर कई मान्यताएं हैं, जिनके बारे में आज हम आपको बताएंगे. Shaktipeeth in Uttarakhand

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 18, 2023, 6:31 AM IST

टिहरी: देवभूमि उत्तराखंड को वैसे तो भगवान शिव का वास स्थान कहा जाता है, लेकिन यहां माता सती से जुड़े कई शक्ति पीठ भी हैं. इनमें एक सिद्धपीठ मां कुंजापुरी का मंदिर है, जो टिहरी जिले में नरेंद्र नगर के पास ऋषिकेश-गंगोत्री हाईवे पर पड़ता है. इस मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक फैली हुई है. वैसे तो साल भर यहां भक्त माता के दर्शन करने के लिए आते हैं, लेकिन नवरात्रि में यहां नौ दिन तक मेले का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु सिद्धपीठ मां कुंजापुरी में मत्था टेकने आते हैं.

माता सती से जुड़ा है इस मंदिर का पौराणिक इतिहास: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब माता सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार में यज्ञ का आयोजन किया, तो उसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया. इससे माता सती काफी क्रोधित हो गईं. उन्होंने हवन कुंड में ही अपने प्राणों की आहुति दे दी.
पढ़ें- उत्तराखंड की चारधाम यात्रा में श्रद्धालुओं ने रचा इतिहास, पहली बार आंकड़ा पहुंचा 50 लाख के पार, टूटे सभी रिकॉर्ड

भगवान शिव को जैसे ही पता चला कि माता सती ने हवन कुंड में ही अपने प्राणों की आहुति दे दी है, तो वे बहुत दु:खी हो गए थे. हरिद्वार पहुंचकर माता सती के शरीर को त्रिशूल पर लेकर हिमालय की ओर निकल पड़े थे. भगवान शिव का ये रूप देखकर देवतागण काफी भयभीत हो गए थे. उन्होंने भगवान विष्णु से महादेव को शांत करने के लिए प्रार्थना की.

पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 51 हिस्सों में विभाजित किया था. ताकि किसी तरह भोले शंकर शांत हो सकें. इस तरह माता सती के शरीर का जो हिस्सा जहां गिरा वहीं पर आज सिद्धपीठ स्थापित हैं.
पढ़ें- ऐसा रहस्यमय मंदिर! जहां माता की मूर्ति दिन में तीन बार बदलती है अपना रूप, जाने मान्यता

कुंजापुरी में गिरे थे कुंज: मान्यता के अनुसार नरेंद्रनगर के पास एक पहाड़ी पर माता सती के बाल यानी कुंज गिरे थे. इस कारण इस स्थान का नाम कुंजापुरी पड़ा. जहां आज एक भव्य मंदिर है. कहा जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से माता कुंजापुरी के दर पर आता है, माता उसकी हर मुराद पूरी करती हैं. ये मंदिर साल भर खुला रहता है.

कैसे पहुंचें माता कुंजापुरी मंदिर?: माता कुंजापुरी का प्रसिद्ध मंदिर ऋषिकेश-गंगोत्री हाईवे पर टिहरी जिले में नरेंद्रनगर के पास ऋषिकेश से करीब 22 किमी दूर है. माता कुंजापुरी मंदिर जाने के लिए आपको ऋषिकेश से करीब 22 किमी दूर हिंडोलाखाल पहुंचना होगा.

टिहरी: देवभूमि उत्तराखंड को वैसे तो भगवान शिव का वास स्थान कहा जाता है, लेकिन यहां माता सती से जुड़े कई शक्ति पीठ भी हैं. इनमें एक सिद्धपीठ मां कुंजापुरी का मंदिर है, जो टिहरी जिले में नरेंद्र नगर के पास ऋषिकेश-गंगोत्री हाईवे पर पड़ता है. इस मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक फैली हुई है. वैसे तो साल भर यहां भक्त माता के दर्शन करने के लिए आते हैं, लेकिन नवरात्रि में यहां नौ दिन तक मेले का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु सिद्धपीठ मां कुंजापुरी में मत्था टेकने आते हैं.

माता सती से जुड़ा है इस मंदिर का पौराणिक इतिहास: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब माता सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार में यज्ञ का आयोजन किया, तो उसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया. इससे माता सती काफी क्रोधित हो गईं. उन्होंने हवन कुंड में ही अपने प्राणों की आहुति दे दी.
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भगवान शिव को जैसे ही पता चला कि माता सती ने हवन कुंड में ही अपने प्राणों की आहुति दे दी है, तो वे बहुत दु:खी हो गए थे. हरिद्वार पहुंचकर माता सती के शरीर को त्रिशूल पर लेकर हिमालय की ओर निकल पड़े थे. भगवान शिव का ये रूप देखकर देवतागण काफी भयभीत हो गए थे. उन्होंने भगवान विष्णु से महादेव को शांत करने के लिए प्रार्थना की.

पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 51 हिस्सों में विभाजित किया था. ताकि किसी तरह भोले शंकर शांत हो सकें. इस तरह माता सती के शरीर का जो हिस्सा जहां गिरा वहीं पर आज सिद्धपीठ स्थापित हैं.
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कुंजापुरी में गिरे थे कुंज: मान्यता के अनुसार नरेंद्रनगर के पास एक पहाड़ी पर माता सती के बाल यानी कुंज गिरे थे. इस कारण इस स्थान का नाम कुंजापुरी पड़ा. जहां आज एक भव्य मंदिर है. कहा जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से माता कुंजापुरी के दर पर आता है, माता उसकी हर मुराद पूरी करती हैं. ये मंदिर साल भर खुला रहता है.

कैसे पहुंचें माता कुंजापुरी मंदिर?: माता कुंजापुरी का प्रसिद्ध मंदिर ऋषिकेश-गंगोत्री हाईवे पर टिहरी जिले में नरेंद्रनगर के पास ऋषिकेश से करीब 22 किमी दूर है. माता कुंजापुरी मंदिर जाने के लिए आपको ऋषिकेश से करीब 22 किमी दूर हिंडोलाखाल पहुंचना होगा.

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