टिहरी: पुरानी टिहरी की यादें आज भी लोगों के दिलों में तरों-ताजा है. पुरानी टिहरी के क्षणों को याद करते हुए आज भी कईयों के आंखों में आंसू आ जाते हैं. पुरानी टिहरी आज भले ही झील की गहराई में समां गई हो लेकिन लोगों के दिलों में आज भी जिंदा है. हम इस बात का जिक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि पुरानी टिहरी शहर को आज 204 साल पूरे हो गए हैं.
वो पुराना टिहरी जो कभी चारधाम यात्रा का मुख्य केन्द्र हुआ करता था. इस शहर की विशेषता ये थी कि यह तीनों नदियों भागीरथी, भिलंगना और घृतगंगा के सगंम पर बसा हुआ था. शहर के तीनों तरफ से नदियां होने के कारण इस शहर का नाम त्रिहरी पड़ा और फिर टिहरी के नाम से जाना जाने लगा. टिहरी शहर का उल्लेख स्कन्दपुराण में केदारखण्ड के अध्याय 147 में भी मिलता है.
ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार 28 दिसम्बर 1814 को टिहरी की नींव रखी गई थी. टिहरी गढ़वाल के तत्कालीन राजा सुदर्शन शाह ने टिहरी को अपनी राजधानी बनाया. पंडितों व ज्योतिषियों के अनुसार टिहरी का जन्म कुंभ लग्न में हुआ और इसकी सिंह राशि थी. शहर की जन्मपत्री की गणना के आधार पर कहा गया कि शहर की उम्र अल्पायु है. टिहरी शहर 186 साल की उम्र ही जी पाएगा और हुआ भी ऐसा ही. टिहरी शहर को राष्ट्रहित के लिए जल समाधि लेनी पड़ी. आज पुरानी टिहरी शहर पर टिहरी बांध स्थित है.
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स्कंदपुराण में भी है पुरानी टिहरी का उल्लेख
17वीं शताब्दी में पंवार वंशीय गढ़वाल के राजा महीपत शाह के सेनानायक रिखोला लोदी के इस बस्ती में एक बार पहुंचने का उल्लेख मिलता है. इससे पहले इस स्थान का उल्लेख स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में भी मिलता है. जिसमें इसे गणेश प्रयाग व धनुष तीर्थ कहा गया है. सत्तेश्वर शिवलिंग सहित कुछ और सिद्ध तीर्थों का भी केदारखण्ड में उल्लेख है. तीन नदियों के संगम (भागीरथी, भिलंगना व घृतगंगा) या तीन छोर से नदी से घिरे होने के कारण इस जगह को त्रिहरी, फिर टीरी और बाद में टिहरी नाम से पुकारा जाने लगा.
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ऐतिहासिक रूप से पुरानी टिहरी तब चर्चाओं में आई, जब 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी की सहायता से गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह ने गोरखों के हाथों गंवा बैठी अपनी रियासत को वापस हासिल किया. लेकिन, शातिर अंग्रेजों ने रियासत का विभाजन कर उनके पूर्वजों की राजधानी श्रीनगर गढ़वाल और अलकनंदा नदी पार का समस्त क्षेत्र हर्जाने के रूप में हड़प लिया. गोरखाओं के साथ हुए भीषण युद्ध में सुदर्शन शाह के पिता प्रद्युम्न शाह गोरखों के साथ युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे.
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12 सालों से निर्वासित जीवन जीने के बाद सुदर्शन शाह शेष बची अपनी रियासत के लिए राजधानी की तलाश में निकले और टिहरी पहुंचे. किंवदंतियों के अनुसार टिहरी के काल भैरव ने उनकी शाही सवारी रोक दी और यहीं पर राजधानी बनाने को कहा. 28 दिसम्बर 1815 को सुदर्शन शाह ने यहां पर विधिवत गढ़वाल रियासत की राजधानी स्थापित की. तब यहां पर धुनारों के मात्र 8-10 कच्चे मकान ही थे.
टिहरी के इतिहास पर एक नजर
- 17वीं शताब्दी- (1629-1646 के मध्य) पंवार वंश के राजा महीपत शाह के सेनापति रिखोला लोदी का धुनारों के गांव टिहरी में आगमन और धुनारों को खेती के लिए कुछ जमीन देना.
- साल 1803- नेपाल की गोरखा सेना का गढ़वाल पर आक्रमण. पंवार वंश से गोरखों ने छीना श्रीनगर गढ़वाल. खुड़बुड़ (देहरादून) के युद्ध में राजा प्रद्युम्न शाह को वीरगति. प्रद्युम्न शाह के नाबालिग पुत्र सुदर्शन शाह ने रियासत से पलायन किया.
- जून 1815- ईस्ट इंडिया कंपनी से युद्ध में गोरखा सेना की निर्णायक पराजय, सुदर्शन शाह ने ईस्ट इंडिया कंपनी से सहायता मांगी थी.
- जुलाई 1815- सुदर्शन शाह अपनी पूर्वजों की राजधानी श्रीनगर गढ़वाल पहुंचे और अंग्रेजों से वहां रियासत संचालन की इच्छा जताई.
- नवम्बर 1815- ईस्ट इंडिया कंपनी ने दून क्षेत्र व श्रीनगर गढ़वाल सहित अलकनंदा के पूरब वाला क्षेत्र अपने शासन में मिलाया और पश्चिम वाला क्षेत्र सुदर्शन शाह को शासन करने हेतु वापस सौंपा गया.
- 29 दिसम्बर 1815- नई राजधानी की तलाश में सुदर्शन शाह टिहरी पहुंचे. किंवदंतियों के अनुसार काल भैरव ने उनका घोड़ा रोक दिया था. उनकी कुलदेवी राजराजेश्वरी ने सपने में आकर सुदर्शन शाह को इसी स्थान पर राजधानी बसाने को कहा था.
- 30 दिसम्बर 1815- टिहरी में गढ़वाल रियासत की राजधानी स्थापित करना. इस तरह पंवार वंशीय शासकों की राजधानी का सफर 9वीं शताब्दी में चांदपुर गढ़ से प्रारम्भ होकर देवलगढ़ और श्रीनगर गढ़वाल से होते हुए टिहरी तक पहुंचा.
- जनवरी 1816- टिहरी में राजकोष से 700 रुपये खर्च कर एक साथ 30 मकानों का निर्माण शुरू किया गया. कुछ तम्बू भी लगाए गए.
- 6 फरवरी 1820- प्रसिद्ध ब्रिटिश पर्यटक मूर-क्राफ्ट अपने दल के साथ टिहरी पहुंचा.
- 4 मार्च 1820- सुदर्शन शाह को ईस्ट इंडिया कंपनी के गर्वनर जनरल ने गढ़वाल रियासत के राजा के रूप में मान्यता दी.
- 1828- सुदर्शन शाह द्वारा सभासार ग्रंथ की रचना की गयी.
- 1858- भागीरथी नदी पर पहली बार लकड़ी का पुल बनाया गया.
- 1859- अंग्रेज ठेकेदार विल्सन ने चार हजार रुपये वार्षिक पर रियासत में जंगल कटान का ठेका लिया.
- 4 मई 1859- सुदर्शन शाह की मृत्यु. भवानी शाह गद्दी पर बैठे.
- 1846 से पहले- प्रसिद्ध कुमाऊंनी कवि गुमानी पंत टिहरी पहुंचे और उन्होंने टिहरी पर उपलब्ध पहली कविता- सुरगंग तटी की रचना की.
- 1859 (सुदर्शन शाह की मृत्यु के बाद)- राजकोष की लूट. कुछ राज कर्मचारी व खवास (उपपत्नी) लूट में शामिल.
- 1861- टिहरी से लगी पट्टी अठूर में नई भू-व्यवस्था लागू की गई.
- 1864- भागीरथी घाटी के जंगलों का बड़े पैमाने पर कटान शुरू. विल्सन को दस हजार रुपये वार्षिक पर जंगल कटान का ठेका दिया गया.
- 1867- अठूर के किसान नेता बदरी सिंह असवाल को टिहरी में कैद किया गया.
- सितम्बर 1868- टिहरी जेल में बदरी सिंह असवाल की मौत. टिहरी व अठूर पट्टी में हलचल बढ़ी.
- 1871- भवानी शाह की मृत्यु. राजकोष की फिर लूट हुई. इस बीच प्रताप शाह गद्दी पर बैठे.
- 1876- टिहरी में पहला नि:शुल्क दवाखाना खुला.
- 1877- भिलंगना नदी पर कंडल झूला पुल का निर्माण. टिहरी से प्रतापनगर पैदल मार्ग का निर्माण.
- 1881- रानीबाग में पुराने निरीक्षण भवन का निर्माण.
- फरवरी 1887- प्रताप शाह की मृत्यु. कीर्तिनगर शाह के वयस्क होने तक राजामाता गुलेरिया ने शासन संभाला.
- 1892- टिहरी में बदरीनाथ, केदारनाथ मन्दिरों का निर्माण राजमाता गुलेरिया ने करवाया.
- 17 मार्च 1892- कीर्ति शाह ने शासन संभाला.
- 20 जून 1897- टिहरी में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की हीरक जयंती के उपलक्ष्य में घंटाघर का निर्माण शुरू.
- 1902- स्वामी रामतीर्थ का टिहरी आगमन.
- 1906- स्वामी रामतीर्थ टिहरी में भिलंगना नदी में जल समाधि.
- 25 अप्रैल 1913- कीर्ति शाह की मृत्यु. नरेन्द्र शाह गद्दी पर बैठे.
- 1917- रियासत के वजीर पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी ने नरेन्द्र हिन्दू लॉ ग्रंथ की रचना की.
- 1920- टिहरी में कृषि बैंक की स्थापना. पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी ने गढ़वाल का इतिहास ग्रंथ लिखा.
- 1923- रियासत की प्रथम पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना.
- 1924- बाढ़ से भागीरथी पर बना लकड़ी का पुल बहा.
- 1938- टिहरी में रियासत का हाईकोर्ट बना. गंगा प्रसाद प्रथम जीफ जज नियुक्त किए गये.
- 1940- प्रताप कालेज इण्टरमीडिएट तक उच्चीकृत.
- 1940- ऋषिकेश-टिहरी सड़क निर्माण का कार्य पूरा. टिहरी तक गड़ियां चलनी शुरू.
- 1942- टिहरी में प्रथम कन्या पाठशाला की स्थापना.
- 1944- टिहरी जेल में श्रीदेव सुमन का बलिदान.
- 5 अक्टूबर 1946- राजा मानवेन्द्र शाह का राजतिलक.
- 1945-48- प्रजा मंडल के नेतृत्व में टिहरी जनक्रांति का केन्द्र बना.
- 14 जनवरी 1948- राजतंत्र का तख्ता पलट. माननेंन्द्र शाह को भागीरथी पुल पर रोककर वापस भेजा गया. जनता द्वारा चुनी गई सरकार का गठन.
- अगस्त 1949- टिहरी रियासत का संयुक्त प्रांत में विलय.
- 1953- टिहरी नगरपालिका के प्रथम चुनाव. डॉ. महावीर प्रसाद गैरोला अध्यक्ष चुने गए.
- 1955- आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती का टिहरी आगमन.
- 20 मार्च 1963- राजमाता कॉलेज की स्थापना. तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन टिहरी पहुंचे.
- 1963- टिहरी में बांध निर्माण की घोषणा.
- अक्टूबर 1968- स्वामी रामतीर्थ स्मारक का निर्माण. उद्घाटन तत्कालीन राज्यपाल डॉ. वी गोपाला रेड्डी द्वारा किया गया.
- 1969- टिहरी में प्रथम डिग्री कॉलेज खुला.
- 1978- टिहरी बांध विरोधी संघर्ष समिति का गठन. वीरेन्द्र दत्त सकलानी अध्यक्ष बने.
- 29 जुलाई, 2005- टिहरी शहर में पानी घुसा, करीब सौ परिवारों को अंतिम रूप से शहर छोड़ना पड़ा.