रुद्रप्रयाग: 16 किमी लंबे गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग पर आवाजाही शुरू हो गई है. बाबा केदार की चल विग्रह उत्सव डोली धाम पहुंच गई. हालांकि, जिन स्थानों पर 25 फीट तक ऊंचे हिमखंड काटे गए हैं, वहां पर बर्फ के ऊपर से ही गुजरना होगा. इस बार केदारनाथ धाम से बर्फ हटाने का पूरा श्रेय बाबा केदार के 130 योद्धाओं को जाता है, जिन्होंने दिन-रात एक करके पैदल मार्ग से बर्फ हटाई है. जो काफी मुश्किल काम था.
पूरा देश कोरोना महामारी के चलते अपने घरों में कैद है, वहीं वुड स्टोन कंपनी के 130 कर्मचारी करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के केंद्र केदारनाथ धाम के कपाट खोलने की तैयारी में हैं. बाबा के ये दूत केदारपूरी और पैदल मार्ग से बर्फ हटाने का काम कर रहे हैं. केदरानाथ धाम में अभी भी 25 से 40 फीट बर्फ पड़ी हुई है. जिसे काटकर सुगम रास्ता बनाया जा रहा है.
वुड स्टोन कंपनी के मजदूरों की बदौलत ही इस बार 18 किमी लंबे गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग से बर्फ हटाई गई और रास्ते को सुगम बनाया गया. जिसके बाद बाबा केदार की डोली केदारनाथ धाम पहुंच सकी.
जिस स्थान पर कपाट बंद होने के बाद कोई भी व्यक्ति नहीं रह पाता है, वहां पर वुड स्टोन कंपनी के मजदूरों ने रात-दिन बर्फ हटाने का काम किया है. इन योद्धाओं ने बर्फबारी और बारिश में भी काम किया और रास्ते को सुगम बनाया.
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कोरोना महामारी के चलते इस बार केदारनाथ धाम में श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति नहीं दी गई है. कपाट खुलने के मौके पर भी मंदिर समिति के कर्मचारी और मुख्य पुजारी व वेदपाठी ही मौजूद रहेंगे.
बता दें इस बार केदरानाथ धाम में जबरदस्त बर्फबारी हुई थी. इसके अलावा अप्रैल महीने में भी धाम में बर्फबारी देखने को मिली. इतना ही नहीं इस बार बाबा केदार डोली का स्वागत बर्फबारी से हुआ है. यात्रा मार्ग के कुछ जगहों पर बड़े-बड़े ग्लेशियर अभी भी मौजूद हैं, जिसे काटने का कार्य चल रहा है. ठंड और बारिश भी इन योद्धाओं के हौंसले को कम नहीं कर पा रही है.
वुडस्टोन कंपनी के मनोज सेमवाल ने बताया कि यह कार्य बहुत कठिन था. चुनौती थी कि एक महीने में नौ किलोमीटर बर्फ काटकर इस तरह से रास्ता बनाया जा सके कि श्रद्धालुओं के साथ ही बाबा केदार की पंचमुखी डोली भी पहुंच सके. समय कम था और मार्च के दौरान कई बार बर्फबारी और बारिश ने भी रुक-रुक कर होती रही. हाड़ कंपाने वाली सर्दी और ठिठुरन के बावजूद हमारे योद्धाओं का जज्बा बना रहा. 130 योद्धाओं ने तीन शिफ्ट में काम किया. परिणाम यह है कि अब मंदिर तक राह पूरी तरह से बन चुकी है.