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रुद्रप्रयाग: 56 साल से जमीन को लेकर भटक रहे ग्रामीण, नहीं बन पा रहे जरूरी कागजात - rehabilitation schemes in rudraprayag

फांपज ग्राम पंचायत सलामी तोक के ग्रामीण 56 सालों से जमीन को लेकर भटक रहे हैं. साल 1964 में करेला तोक के पांच परिवारों का विस्थापन किया गया था, लेकिन शासन-प्रशासन की उपेक्षा के चलते अभी तक ग्रामीणों को जमीन नहीं मिल पाई है.

Rudraprayag Hindi News
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Published : Mar 17, 2020, 4:18 PM IST

रुद्रप्रयाग: ऊखीमठ में ग्राम पंचायत फांपज के सलामी तोक के ग्रामीण 56 सालों से जमीन को लेकर भटक रहे हैं. साल 1964 में कुंड-चोपता मोटरमार्ग निर्माण के दौरान ग्राम पंचायत भटवाड़ी के करेला तोक के पांच परिवारों को सलामी तोक में विस्थापित किया गया था. तब से ग्रामीणों के नाम पर जमीन दर्ज नहीं हो पाई है. जिस कारण ग्रामीण अनेक प्रकार की सरकारी योजनाओं का लाभ पाने से वंचित हैं और सालों से जमीन को लेकर भटक रहे हैं. अब ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन से आर-पार की लड़ाई का मन बना लिया है. ग्रामीण अब 23 मार्च से सलामी तोक में आंदोलन शुरू करेंगे.

दरअसल, वर्ष 1962-64 में कुंड-चोपता मोटरमार्ग निर्माण के दौरान ग्राम पंचायत भटवाड़ी के करेला तोक के ग्रामीणों के घर एवं खेत मोटरमार्ग कटिंग में आ गए थे, जिसके बाद करेला तोक के पांच परिवारों को तहसील प्रशासन ने ग्राम पंचायत फापंज के सलामी तोक में विस्थापित कर दिया. विस्थापित परिवारों को करेला तोक की जमीन के बदले पचास नाली जमीन सलामी तोक में दी गई लेकिन तब से लेकर अब तक यह जमीन ग्रामीणों के नाम दर्ज नहीं हो पाई है. जबकि आज तोक में नौ परिवार हो गये हैंं.

ग्रामीणों का कहना है कि तहसील प्रशासन उनकी जमीन को वन विभाग की बता रहा है, जबकि वन विभाग का कहना है कि यह जमीन वन विभाग की नहीं है. ऐसे में ग्रामीण सालों से असंजस की स्थिति में हैं.

पढ़ें- त्रिवेंद्र सरकार@3 साल: ठगा महसूस कर रही कोटद्वार की जनता, बोली- 2022 में दिखेंगे परिणाम

ग्रामीणों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनके किसी भी प्रकार के कागज नहीं बन पा रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित होने वाली सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है. साल 2013 की आपदा के समय ग्रामीणों को आवासीय भवनों का तो मुआवजा मिला, लेकिन भूमि का किसी भी प्रकार का मुआवजा नहीं मिला. इसके अलावा 2013 में क्षतिग्रस्त पेयजल योजना का आज तक ट्रीटमेंट नहीं हो पाया है.

सरकार और शासन-प्रशासन की बेरूखी से ग्रामीण परेशान हैं. ग्रामीणों का कहना है कि सरकार से आर-पार की लड़ाई लड़ी जायेगी. विगत 56 वर्षों से ग्रामीणों को छला जा रहा है. मुख्यमंत्री से लेकर तमाम अन्य मंत्रियों और जिलाधिकारी को अवगत कराया जा चुका है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है. जिसके बाद अब ग्रामीणों ने 23 मार्च से आंदोलन का मन बना लिया है.

इस संबंध में जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल का कहना है उस समय सलामी तोक में सेंचुरी एरिया नहीं था और जमीन की कार्रवाई पूरी नहीं हो पाई थी. वर्तमान में वह एरिया सेंचुरी एरिया में है. शासन से कार्रवाई होनी है. वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र मिलना है. इसके लिए उन्होंने डीएफओ को कार्रवाई करने के लिए कहा है.

रुद्रप्रयाग: ऊखीमठ में ग्राम पंचायत फांपज के सलामी तोक के ग्रामीण 56 सालों से जमीन को लेकर भटक रहे हैं. साल 1964 में कुंड-चोपता मोटरमार्ग निर्माण के दौरान ग्राम पंचायत भटवाड़ी के करेला तोक के पांच परिवारों को सलामी तोक में विस्थापित किया गया था. तब से ग्रामीणों के नाम पर जमीन दर्ज नहीं हो पाई है. जिस कारण ग्रामीण अनेक प्रकार की सरकारी योजनाओं का लाभ पाने से वंचित हैं और सालों से जमीन को लेकर भटक रहे हैं. अब ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन से आर-पार की लड़ाई का मन बना लिया है. ग्रामीण अब 23 मार्च से सलामी तोक में आंदोलन शुरू करेंगे.

दरअसल, वर्ष 1962-64 में कुंड-चोपता मोटरमार्ग निर्माण के दौरान ग्राम पंचायत भटवाड़ी के करेला तोक के ग्रामीणों के घर एवं खेत मोटरमार्ग कटिंग में आ गए थे, जिसके बाद करेला तोक के पांच परिवारों को तहसील प्रशासन ने ग्राम पंचायत फापंज के सलामी तोक में विस्थापित कर दिया. विस्थापित परिवारों को करेला तोक की जमीन के बदले पचास नाली जमीन सलामी तोक में दी गई लेकिन तब से लेकर अब तक यह जमीन ग्रामीणों के नाम दर्ज नहीं हो पाई है. जबकि आज तोक में नौ परिवार हो गये हैंं.

ग्रामीणों का कहना है कि तहसील प्रशासन उनकी जमीन को वन विभाग की बता रहा है, जबकि वन विभाग का कहना है कि यह जमीन वन विभाग की नहीं है. ऐसे में ग्रामीण सालों से असंजस की स्थिति में हैं.

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ग्रामीणों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनके किसी भी प्रकार के कागज नहीं बन पा रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित होने वाली सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है. साल 2013 की आपदा के समय ग्रामीणों को आवासीय भवनों का तो मुआवजा मिला, लेकिन भूमि का किसी भी प्रकार का मुआवजा नहीं मिला. इसके अलावा 2013 में क्षतिग्रस्त पेयजल योजना का आज तक ट्रीटमेंट नहीं हो पाया है.

सरकार और शासन-प्रशासन की बेरूखी से ग्रामीण परेशान हैं. ग्रामीणों का कहना है कि सरकार से आर-पार की लड़ाई लड़ी जायेगी. विगत 56 वर्षों से ग्रामीणों को छला जा रहा है. मुख्यमंत्री से लेकर तमाम अन्य मंत्रियों और जिलाधिकारी को अवगत कराया जा चुका है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है. जिसके बाद अब ग्रामीणों ने 23 मार्च से आंदोलन का मन बना लिया है.

इस संबंध में जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल का कहना है उस समय सलामी तोक में सेंचुरी एरिया नहीं था और जमीन की कार्रवाई पूरी नहीं हो पाई थी. वर्तमान में वह एरिया सेंचुरी एरिया में है. शासन से कार्रवाई होनी है. वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र मिलना है. इसके लिए उन्होंने डीएफओ को कार्रवाई करने के लिए कहा है.

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