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एक पाठशाला ऐसी भी...दुनिया की चकाचौंध से दूर जहां बच्चे सीख रहे जीने की 'कला' - रुद्रप्रयाग न्यूज

श्यामा वन में अल्टरनेटिव एजुकेशन की ओर ध्यान आकर्षित किया जा रहा है. क्योंकि, बच्चे जिस चीज में रुचि रखते हैं, उसके जरिये आगे बढ़ सकते हैं. ऐसा नहीं है कि उन पर दबाव बनाकर शिक्षा करवाई जाए. ऐसे में संस्था द्वारा पढ़ाई के साथ संगीत और योग की शिक्षा भी दी जा रही है.

रुद्रप्रयाग
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Published : Jul 2, 2020, 10:48 PM IST

Updated : Jul 3, 2020, 1:36 PM IST

रुद्रप्रयाग: समाज में कुछ विरले लोग ही होते हैं, जो अलग कार्य करके लोगों को नई दिशा देने का काम करते हैं. ऐसा ही कुछ रुद्रप्रयाग की केदारघाटी में किया जा रहा है. यहां स्पेस फॉर नर्चरिंग क्रिएटिविटी संस्था 'श्यामा वन' पिछले 12 सालों से समाज हित में अपनी सेवाएं दे रही है, वो भी बिना किसी सरकारी मदद के.

एक पाठशाला ऐसी भी

जिस उम्र में युवा अपनी शादी के सपने संजोए रहते हैं, उस समय केदारघाटी की अर्चना बहुगुणा ने 35 बच्चों को गोद लेकर उन्हें दुनिया की आधुनिक चकाचौंध और पाश्चात्य संस्कृति से दूर करते हुए अपनी संस्कृति, थाती व माटी की सोंधी महक से रूबरू कराने का संकल्प साधे हुए है. यहां बच्चों की अठखेलियां, मस्ती, मुस्कुराहट और शालीनता देखी जा सकती है. यहां चार साल के बच्चे से लेकर चालीस साल तक के युवा रहते हैं, जो हंसी-खुशी पढ़ाई-लिखाई के साथ खेलकूद और संगीत की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.

पढ़ें- प्रवासियों को 'आत्मनिर्भर' बनाने की कोशिश, स्वरोजगार योजना की दी जानकारी

श्यामा वन में पढ़ने वाले बच्चे कितने बुद्धिमान है इसका अंदाजा इसी लगाया जा सकता है कि वे जहां एक तरफ कालीमठ की महिमा भी जानते हैं तो वहीं उन्हें मुगलकालीन इतिहास का भी बखूबी भान है.

श्यामा वन में रह रहे यह बच्चे प्रत्येक दिन मेडिटेशन भी करते हैं और एक दूसरे को शिक्षा देकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन भी कर रहे हैं. विभिन्न राज्यों से आए बच्चे इस गुरुकुल में व्यक्तित्व विकास के साथ दुनियादारी की सच्चाइयों से रूबरू हो रहे हैं.

पढ़ें- लोक गायक जीत सिंह के नाम पर होगा संस्कृति विभाग के प्रेक्षागृह का नाम

अपने निजी संसाधनों से अर्चना बहुगुणा श्यामा वन का चला रही है. सरकार की तरफ से उन्हें कोई सहायता नहीं दी जा रही है. समाज हित में धन का उपयोग कैस किया जा सकता है, यह श्यामा वन में आकर समझा और देखा जा सकता है.

स्पेस फॉर नर्चरिंग क्रिएटिविटी संस्था की संस्थापक अर्चना बहुगुणा ने बताया कि श्यामा वन में चार साल के बच्चों से लेकर 20 से 30 तक के युवा भी रहते हैं. इन्हें सामाजिक माहौल देने के साथ ही सभी प्रकार की गतिविधियों से रूबरू करवाया जाता है. श्यामा वन में रह रहे बच्चे और युवा अपनी इच्छानुसार ही पठन-पाठन और संगीत का ज्ञान लेते हैं. इसके साथ ही वे कृषि कार्य भी करते हैं. साथ ही स्कूलों में जाकर बच्चों को पढ़ाते भी हैं और आपदा जैसे दौर में लोगों की मदद को आगे भी आते हैं.

पढ़ें- हल जोतने से चर्चा में आई प्रिया से मिलने पहुंचे हरीश रावत, निभाया अपना वादा

स्पेस फॉर नर्चरिंग क्रिएटिविटी संस्थान में बच्चों के लिए सृजन निकेतन कार्यक्रम का संचालन भी किया जा रहा है. जिसके तहत बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण के हर पहलू पर कार्य किया जाता है. यहां बच्चों को विषयगत अध्ययन की प्रयोगात्मक शिक्षा के अलावा योग, संगीत, कृषि, क्राफ्ट सहित कई प्रत्यक्ष अनुभवों के माध्यम से भी पढ़ाया जाता है. इस कोर्स के तहत युवाओं के सवालों पर बातचीत करना व उन्हें किसी हुनर में दक्ष किया जाता है. कोर्स से निकले दर्जन भर युवा समाज में स्थानीय स्तर से लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में सेवा कार्य कर रहे हैं.

स्पेस फॉर नर्चरिंग क्रिएटिविटी संस्थान क्षेत्र में आजीविका संवर्द्धन के नए उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है, जिससे पलायन जैसी विकट समस्या का निराकरण हो सके. केदारनाथ पूजा प्रसाद के लिए जूट बैग तैयार कर प्लास्टिक उन्मूलन व महिलाओं की आजीविका बढ़ाने का लक्ष्य लेकर संस्थान ने बड़ा उदाहरण घाटी को दिया. इसके अलावा क्षेत्र की महिलाओं को जेम, जूस, प्रसाद बनाना व व्यावसायिक खेती का प्रशिक्षण देकर जागरूक किया जा रहा है. इस कोरोना के संकट में भी एसएनसी केंद्र पर ही युवा साथियों ने कई तरह की सब्जियां उगाकर बाजार को उपलब्ध करवाई. यह संस्थान सामाजिक आंदोलनों, जागरुकता कार्यक्रमों व गोष्ठियों के माध्यम से भी विभिन्न पहलुओं पर संवाद कर रहा है, जिससे समाज में सकारात्मकता व जागरुकता बढ़े.

रुद्रप्रयाग: समाज में कुछ विरले लोग ही होते हैं, जो अलग कार्य करके लोगों को नई दिशा देने का काम करते हैं. ऐसा ही कुछ रुद्रप्रयाग की केदारघाटी में किया जा रहा है. यहां स्पेस फॉर नर्चरिंग क्रिएटिविटी संस्था 'श्यामा वन' पिछले 12 सालों से समाज हित में अपनी सेवाएं दे रही है, वो भी बिना किसी सरकारी मदद के.

एक पाठशाला ऐसी भी

जिस उम्र में युवा अपनी शादी के सपने संजोए रहते हैं, उस समय केदारघाटी की अर्चना बहुगुणा ने 35 बच्चों को गोद लेकर उन्हें दुनिया की आधुनिक चकाचौंध और पाश्चात्य संस्कृति से दूर करते हुए अपनी संस्कृति, थाती व माटी की सोंधी महक से रूबरू कराने का संकल्प साधे हुए है. यहां बच्चों की अठखेलियां, मस्ती, मुस्कुराहट और शालीनता देखी जा सकती है. यहां चार साल के बच्चे से लेकर चालीस साल तक के युवा रहते हैं, जो हंसी-खुशी पढ़ाई-लिखाई के साथ खेलकूद और संगीत की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.

पढ़ें- प्रवासियों को 'आत्मनिर्भर' बनाने की कोशिश, स्वरोजगार योजना की दी जानकारी

श्यामा वन में पढ़ने वाले बच्चे कितने बुद्धिमान है इसका अंदाजा इसी लगाया जा सकता है कि वे जहां एक तरफ कालीमठ की महिमा भी जानते हैं तो वहीं उन्हें मुगलकालीन इतिहास का भी बखूबी भान है.

श्यामा वन में रह रहे यह बच्चे प्रत्येक दिन मेडिटेशन भी करते हैं और एक दूसरे को शिक्षा देकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन भी कर रहे हैं. विभिन्न राज्यों से आए बच्चे इस गुरुकुल में व्यक्तित्व विकास के साथ दुनियादारी की सच्चाइयों से रूबरू हो रहे हैं.

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अपने निजी संसाधनों से अर्चना बहुगुणा श्यामा वन का चला रही है. सरकार की तरफ से उन्हें कोई सहायता नहीं दी जा रही है. समाज हित में धन का उपयोग कैस किया जा सकता है, यह श्यामा वन में आकर समझा और देखा जा सकता है.

स्पेस फॉर नर्चरिंग क्रिएटिविटी संस्था की संस्थापक अर्चना बहुगुणा ने बताया कि श्यामा वन में चार साल के बच्चों से लेकर 20 से 30 तक के युवा भी रहते हैं. इन्हें सामाजिक माहौल देने के साथ ही सभी प्रकार की गतिविधियों से रूबरू करवाया जाता है. श्यामा वन में रह रहे बच्चे और युवा अपनी इच्छानुसार ही पठन-पाठन और संगीत का ज्ञान लेते हैं. इसके साथ ही वे कृषि कार्य भी करते हैं. साथ ही स्कूलों में जाकर बच्चों को पढ़ाते भी हैं और आपदा जैसे दौर में लोगों की मदद को आगे भी आते हैं.

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स्पेस फॉर नर्चरिंग क्रिएटिविटी संस्थान में बच्चों के लिए सृजन निकेतन कार्यक्रम का संचालन भी किया जा रहा है. जिसके तहत बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण के हर पहलू पर कार्य किया जाता है. यहां बच्चों को विषयगत अध्ययन की प्रयोगात्मक शिक्षा के अलावा योग, संगीत, कृषि, क्राफ्ट सहित कई प्रत्यक्ष अनुभवों के माध्यम से भी पढ़ाया जाता है. इस कोर्स के तहत युवाओं के सवालों पर बातचीत करना व उन्हें किसी हुनर में दक्ष किया जाता है. कोर्स से निकले दर्जन भर युवा समाज में स्थानीय स्तर से लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में सेवा कार्य कर रहे हैं.

स्पेस फॉर नर्चरिंग क्रिएटिविटी संस्थान क्षेत्र में आजीविका संवर्द्धन के नए उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है, जिससे पलायन जैसी विकट समस्या का निराकरण हो सके. केदारनाथ पूजा प्रसाद के लिए जूट बैग तैयार कर प्लास्टिक उन्मूलन व महिलाओं की आजीविका बढ़ाने का लक्ष्य लेकर संस्थान ने बड़ा उदाहरण घाटी को दिया. इसके अलावा क्षेत्र की महिलाओं को जेम, जूस, प्रसाद बनाना व व्यावसायिक खेती का प्रशिक्षण देकर जागरूक किया जा रहा है. इस कोरोना के संकट में भी एसएनसी केंद्र पर ही युवा साथियों ने कई तरह की सब्जियां उगाकर बाजार को उपलब्ध करवाई. यह संस्थान सामाजिक आंदोलनों, जागरुकता कार्यक्रमों व गोष्ठियों के माध्यम से भी विभिन्न पहलुओं पर संवाद कर रहा है, जिससे समाज में सकारात्मकता व जागरुकता बढ़े.

Last Updated : Jul 3, 2020, 1:36 PM IST
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