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बुग्यालों से गांव की ओर लौट रहे हैं भेड़ पालक, खत्म होने की कगार पर ये परंपरा - रुद्रप्रयाग भेड़ पालकों की समस्या

केदारघाटी के सीमांत गांवों के भेड़ पालक अब सर्दियां और दीपावली शुरू होते ही अपने गांवों की ओर रुख करने लगे हैं. पहले भेड़ पालकों का घर लौटने पर भव्य स्वागत किया जाता था, लेकिन यह परंपरा खत्म होने की कगार पर है. जबकि, नई पीढ़ी इस व्यवसाय से भी दूर होती जा रही है.

sheep farming
भेड़ पालक
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Published : Oct 27, 2020, 10:37 PM IST

Updated : Oct 27, 2020, 10:47 PM IST

रुद्रप्रयागः छह महीने सुरम्य मखमली बुग्यालों में प्रवास करने वाले भेड़ पालकों ने गावों की ओर रूख करना शुरू कर दिया है. दीपावली तक सभी भेड़ पालकों के अपने गांव वापस लौटने की परंपरा है. पहले भेड़ पालकों के गांव से बुग्यालों की ओर रवाना होने और छह महीने बुग्यालों में प्रवास के बाद गांव लौटने पर भव्य स्वागत किया जाता था, लेकिन भेड़ पालन व्यवसाय धीरे-धीरे कम होने के साथ ही यह परंपरा भी खत्म हो चुकी है.

rudraprayag news
भेड़ पालक.

बता दें कि केदारघाटी के सीमांत गांवों के भेड़ पालक आमतौर पर अप्रैल महीने के दूसरे हप्ते से अपने गांवों से बुग्यालों के लिए रवाना हो जाते हैं. धीरे-धीरे अत्यधिक ऊंचाई वाले बुग्यालों में प्रवास करने लगते हैं. भेड़ पालको का जीवन आज भी किसी तपस्या से कम नहीं है, क्योंकि भेड़ पालक आज भी बुग्यालों में बिना संचार, विद्युत व्यवस्था के दिन व्यतीत करते हैं, जबकि अत्यधिक ऊंचाई वाले इलाकों में ईंधन व पेयजल का भी संकट बना रहता है, क्योंकि ऊंचाई वाले बुग्यालों में सिर्फ मखमली घास ही होते हैं. जबकि, पेड़ पौधों के न होने से ईंधन का अभाव बना रहता है. भेड़ पालकों का दाई व लाई त्योहार मुख्य रूप से मनाया जाता है.

shepherds
घास के मैदान में भेड़.

ये भी पढ़ेंः गंगोत्री नेशनल पार्क में बड़ी तादाद में दिख रहे भरल, वन महकमे ने जताई खुशी

प्रदेश सरकार की ओर से भेड़ पालकों को प्रोत्साहन न देने और ऊंचाई वाले इलाकों में ज्यादा कठिनाई होने के कारण भेड़ पालन व्यवसाय में लगातार गिरावट आना भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है. जबकि, युवा पीढ़ी भी इस व्यवसाय से मुंह मोड़ रही है. वहीं, छह महीने बुग्यालों में प्रवास करने के बाद इन दिनों भेड़ पालकों ने गांव की ओर रूख करना शुरू कर दिया है. कुछ भेड़ पालक अभी भी करीब सात हजार फीट की ऊंचाई पर प्रवास कर रहे हैं, जो दीपावली तक गांव लौट सकते हैं.

shepherds
बुग्याल से उतरने लगे भेड़.

जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा ने बताया कि पहले भेड़ पालकों के गांव लौटने पर ग्रामीणों में भारी उत्साह बना रहता था, लेकिन संचार युग के कारण भेड़ पालकों के गांव आगमन का उत्साह सोशल मीडिया में कैद हो गया है. कनिष्ठ प्रमुख शैलेंद्र कोटवाल ने बताया कि पहले भेड़ पालन व्यवसाय यहां के जनमानस का मुख्य व्यवसाय था, लेकिन भेड़ पालन व्यवसाय में गिरावट आना चिंता का विषय है.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में भालुओं के लिए बनाये जाएंगे रेस्क्यू सेंटर, होगी गणना

वहीं, प्रधान संगठन ब्लॉक अध्यक्ष सुभाष रावत, भेड़ पालन व्यवसाय एसोसिएशन के अध्यक्ष महादेव धिरवाण ने बताया कि भेड़ पालन व्यवसाय की परंपरा हमारा पौराणिक व्यवसाय है. धीरे-धीरे युवाओं को भी भेड़ पालन व्यवसाय से जोड़ने के सामूहिक प्रयास किए जाएंगे. मद्महेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन का कहना है कि पूर्व में भेड़ पालकों के गांव से विदा होने और गांव लौटने पर जिस प्रकार ग्रामीणों में उत्साह बना रहता था, ग्रामीणों की ओर से भेड़ पालकों का भव्य स्वागत करने की परंपरा थी, उस परंपरा को जीवित रखने के लिए भरसक प्रयास करने होंगे.

रुद्रप्रयागः छह महीने सुरम्य मखमली बुग्यालों में प्रवास करने वाले भेड़ पालकों ने गावों की ओर रूख करना शुरू कर दिया है. दीपावली तक सभी भेड़ पालकों के अपने गांव वापस लौटने की परंपरा है. पहले भेड़ पालकों के गांव से बुग्यालों की ओर रवाना होने और छह महीने बुग्यालों में प्रवास के बाद गांव लौटने पर भव्य स्वागत किया जाता था, लेकिन भेड़ पालन व्यवसाय धीरे-धीरे कम होने के साथ ही यह परंपरा भी खत्म हो चुकी है.

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भेड़ पालक.

बता दें कि केदारघाटी के सीमांत गांवों के भेड़ पालक आमतौर पर अप्रैल महीने के दूसरे हप्ते से अपने गांवों से बुग्यालों के लिए रवाना हो जाते हैं. धीरे-धीरे अत्यधिक ऊंचाई वाले बुग्यालों में प्रवास करने लगते हैं. भेड़ पालको का जीवन आज भी किसी तपस्या से कम नहीं है, क्योंकि भेड़ पालक आज भी बुग्यालों में बिना संचार, विद्युत व्यवस्था के दिन व्यतीत करते हैं, जबकि अत्यधिक ऊंचाई वाले इलाकों में ईंधन व पेयजल का भी संकट बना रहता है, क्योंकि ऊंचाई वाले बुग्यालों में सिर्फ मखमली घास ही होते हैं. जबकि, पेड़ पौधों के न होने से ईंधन का अभाव बना रहता है. भेड़ पालकों का दाई व लाई त्योहार मुख्य रूप से मनाया जाता है.

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घास के मैदान में भेड़.

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प्रदेश सरकार की ओर से भेड़ पालकों को प्रोत्साहन न देने और ऊंचाई वाले इलाकों में ज्यादा कठिनाई होने के कारण भेड़ पालन व्यवसाय में लगातार गिरावट आना भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है. जबकि, युवा पीढ़ी भी इस व्यवसाय से मुंह मोड़ रही है. वहीं, छह महीने बुग्यालों में प्रवास करने के बाद इन दिनों भेड़ पालकों ने गांव की ओर रूख करना शुरू कर दिया है. कुछ भेड़ पालक अभी भी करीब सात हजार फीट की ऊंचाई पर प्रवास कर रहे हैं, जो दीपावली तक गांव लौट सकते हैं.

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बुग्याल से उतरने लगे भेड़.

जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा ने बताया कि पहले भेड़ पालकों के गांव लौटने पर ग्रामीणों में भारी उत्साह बना रहता था, लेकिन संचार युग के कारण भेड़ पालकों के गांव आगमन का उत्साह सोशल मीडिया में कैद हो गया है. कनिष्ठ प्रमुख शैलेंद्र कोटवाल ने बताया कि पहले भेड़ पालन व्यवसाय यहां के जनमानस का मुख्य व्यवसाय था, लेकिन भेड़ पालन व्यवसाय में गिरावट आना चिंता का विषय है.

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वहीं, प्रधान संगठन ब्लॉक अध्यक्ष सुभाष रावत, भेड़ पालन व्यवसाय एसोसिएशन के अध्यक्ष महादेव धिरवाण ने बताया कि भेड़ पालन व्यवसाय की परंपरा हमारा पौराणिक व्यवसाय है. धीरे-धीरे युवाओं को भी भेड़ पालन व्यवसाय से जोड़ने के सामूहिक प्रयास किए जाएंगे. मद्महेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन का कहना है कि पूर्व में भेड़ पालकों के गांव से विदा होने और गांव लौटने पर जिस प्रकार ग्रामीणों में उत्साह बना रहता था, ग्रामीणों की ओर से भेड़ पालकों का भव्य स्वागत करने की परंपरा थी, उस परंपरा को जीवित रखने के लिए भरसक प्रयास करने होंगे.

Last Updated : Oct 27, 2020, 10:47 PM IST
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