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रुद्रप्रयाग स्थापना दिवसः अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के संगम पर है स्थित, इन जिलों से मिलकर बना - रुद्रप्रयाग कहां है

16 सितंबर को रुद्रप्रयाग स्थापना दिवस मनाया जाता है. 1997 से बने रुद्रप्रयाग को आज 25 साल पूरे हो चुके हैं. चमोली, टिहरी और पौड़ी जनपद के कुछ हिस्सों को काटकर रुद्रप्रयाग जनपद की स्थापना की गई थी.

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Published : Sep 16, 2022, 2:13 PM IST

रुद्रप्रयागः आज रुद्रप्रयाग का स्थापना दिवस है. भगवान शिव के नाम पर रुद्रप्रयाग का नाम रखा गया है. रुद्रप्रयाग अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के संगम पर स्थित है. यहां से आगे अलकनंदा देवप्रयाग में जाकर भागीरथी से मिलती है तथा गंगा नदी का निर्माण करती है. रुद्रप्रयाग श्रीनगर गढ़वाल से 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों का संगम अपने आप में एक अनोखी खूबसूरती है. इन्‍हें देखकर ऐसा लगता है मानो दो बहनें आपस में एक दूसरे को गले लगा रहीं हो. ऐसा माना जाता है कि यहां संगीत उस्‍ताद नारद मुनि ने भगवान शिव की उपासना की थी और नारद जी को आशीर्वाद देने के लिए ही भगवान शिव ने रुद्र रूप में अवतार लिया था. यहां स्थित शिव और जगदम्‍बा मंदिर प्रमुख धार्मिक स्‍थानों में से हैं.

रुद्रप्रयाग का धार्मिक महत्वः स्कन्दपुराण केदारखंड में इस बात का वर्णन पाया जाता है कि द्वापर युग में महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवों कौरव की भ्रातृहत्या हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए पांडवों को भगवान शिव का आशीर्वाद चाहिए था. लेकिन शिव पांडवों से रुष्ट थे. इस कारण जब पांडव काशी पहुंचे तो उन्हें भगवान शिव काशी में नहीं मिले. तब वे शिव को खोजते खोजते हिमालय तक आ पहुंचे. परंतु फिर भी भगवान शंकर ने पांडवों को दर्शन नहीं दिए और अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे.

परंतु पांडव भी पक्के मन से आए थे. वे उनका पीछा करते-करते केदार तक जा पहुंचे और इसी स्थान से पांडवों ने स्वर्गारोहिणी के द्वारा स्वर्ग को प्रस्थान किया. वहीं, एक अन्य प्रसंग में रुद्रप्रयाग में महर्षि नारद ने भगवान शिव की एक पांव पर खड़े होकर उपासना की थी. जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने महर्षि नारद को रुद्र रूप में यहां दर्शन दिए और महर्षि नारद को भगवान शिव ने संगीत की शिक्षा दी व पुरस्कार स्वरूप वीणा भेंट की. माना जाता है इसी कारण ही इस जगह को 'रुद्रप्रयाग' कहा जाने लगा.
ये भी पढ़ेंः 47 साल के हुए उत्तराखंड के सीएम धामी, संकल्प दिवस के रूप में मनाया जा रहा जन्मदिन

रुद्रप्रयाग जिलाः रुद्रप्रयाग जनपद की स्थापना 16 सितंबर 1997 को हुई थी. चमोली, टिहरी और पौड़ी जनपद के कुछ हिस्सों को काटकर रुद्रप्रयाग जनपद की स्थापना की गई थी. रुद्रप्रयाग जिले के लिए अगस्त्यमुनि और ऊखीमठ ब्लॉक को पूर्ण रूप से एवं पोखरी एवं कर्णप्रयाग ब्लॉक का कुछ हिस्सा चमोली जिले से लिया गया है. इसके अलावा जखोली और कीर्तिनगर ब्लॉक का हिस्सा टिहरी जिले से लिया है. जबकि पौड़ी जिले से खिरसू ब्लॉक का कुछ हिस्सा लेकर रुद्रप्रयाग जिला बना है.

रुद्रप्रयाग में स्थित है केदारनाथ मंदिरः केदारनाथ मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो पांडवों द्वारा निर्मित किया गया और आदि शंकराचार्य द्वारा पुनर्जीवित किया गया है. यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक, शिव के सबसे पवित्र हिंदू तीर्थस्थानों में से एक है. माना जाता है कि पांडवों ने केदारनाथ में तपस्या करके शिव को प्रसन्न किया था. केदारनाथ मंदिर, मंदाकिनी नदी के निकट गढ़वाल हिमालय पर्वत पर है. विषम मौसम एवं बर्फबारी के कारण, मंदिर केवल अप्रैल के अंत (अक्षय त्रित्रिया) से नवंबर (कार्तिक पूर्णिमा-शरद ऋतु पूर्णिमा) तक खुला रहता है. सर्दियों के दौरान, केदारनाथ मंदिर से विग्रहों (देवताओं) को उखीमठ में लाया जाता है और इस दौरान यहां पर पूजा की जाती है.

रुद्रप्रयागः आज रुद्रप्रयाग का स्थापना दिवस है. भगवान शिव के नाम पर रुद्रप्रयाग का नाम रखा गया है. रुद्रप्रयाग अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के संगम पर स्थित है. यहां से आगे अलकनंदा देवप्रयाग में जाकर भागीरथी से मिलती है तथा गंगा नदी का निर्माण करती है. रुद्रप्रयाग श्रीनगर गढ़वाल से 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों का संगम अपने आप में एक अनोखी खूबसूरती है. इन्‍हें देखकर ऐसा लगता है मानो दो बहनें आपस में एक दूसरे को गले लगा रहीं हो. ऐसा माना जाता है कि यहां संगीत उस्‍ताद नारद मुनि ने भगवान शिव की उपासना की थी और नारद जी को आशीर्वाद देने के लिए ही भगवान शिव ने रुद्र रूप में अवतार लिया था. यहां स्थित शिव और जगदम्‍बा मंदिर प्रमुख धार्मिक स्‍थानों में से हैं.

रुद्रप्रयाग का धार्मिक महत्वः स्कन्दपुराण केदारखंड में इस बात का वर्णन पाया जाता है कि द्वापर युग में महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवों कौरव की भ्रातृहत्या हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए पांडवों को भगवान शिव का आशीर्वाद चाहिए था. लेकिन शिव पांडवों से रुष्ट थे. इस कारण जब पांडव काशी पहुंचे तो उन्हें भगवान शिव काशी में नहीं मिले. तब वे शिव को खोजते खोजते हिमालय तक आ पहुंचे. परंतु फिर भी भगवान शंकर ने पांडवों को दर्शन नहीं दिए और अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे.

परंतु पांडव भी पक्के मन से आए थे. वे उनका पीछा करते-करते केदार तक जा पहुंचे और इसी स्थान से पांडवों ने स्वर्गारोहिणी के द्वारा स्वर्ग को प्रस्थान किया. वहीं, एक अन्य प्रसंग में रुद्रप्रयाग में महर्षि नारद ने भगवान शिव की एक पांव पर खड़े होकर उपासना की थी. जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने महर्षि नारद को रुद्र रूप में यहां दर्शन दिए और महर्षि नारद को भगवान शिव ने संगीत की शिक्षा दी व पुरस्कार स्वरूप वीणा भेंट की. माना जाता है इसी कारण ही इस जगह को 'रुद्रप्रयाग' कहा जाने लगा.
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रुद्रप्रयाग जिलाः रुद्रप्रयाग जनपद की स्थापना 16 सितंबर 1997 को हुई थी. चमोली, टिहरी और पौड़ी जनपद के कुछ हिस्सों को काटकर रुद्रप्रयाग जनपद की स्थापना की गई थी. रुद्रप्रयाग जिले के लिए अगस्त्यमुनि और ऊखीमठ ब्लॉक को पूर्ण रूप से एवं पोखरी एवं कर्णप्रयाग ब्लॉक का कुछ हिस्सा चमोली जिले से लिया गया है. इसके अलावा जखोली और कीर्तिनगर ब्लॉक का हिस्सा टिहरी जिले से लिया है. जबकि पौड़ी जिले से खिरसू ब्लॉक का कुछ हिस्सा लेकर रुद्रप्रयाग जिला बना है.

रुद्रप्रयाग में स्थित है केदारनाथ मंदिरः केदारनाथ मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो पांडवों द्वारा निर्मित किया गया और आदि शंकराचार्य द्वारा पुनर्जीवित किया गया है. यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक, शिव के सबसे पवित्र हिंदू तीर्थस्थानों में से एक है. माना जाता है कि पांडवों ने केदारनाथ में तपस्या करके शिव को प्रसन्न किया था. केदारनाथ मंदिर, मंदाकिनी नदी के निकट गढ़वाल हिमालय पर्वत पर है. विषम मौसम एवं बर्फबारी के कारण, मंदिर केवल अप्रैल के अंत (अक्षय त्रित्रिया) से नवंबर (कार्तिक पूर्णिमा-शरद ऋतु पूर्णिमा) तक खुला रहता है. सर्दियों के दौरान, केदारनाथ मंदिर से विग्रहों (देवताओं) को उखीमठ में लाया जाता है और इस दौरान यहां पर पूजा की जाती है.

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