रुद्रप्रयाग: जिले का सुप्रसिद्ध दुर्गा मंदिर देख-रेख के अभाव में वीरान पड़ा है. मंदिर के नव निर्माण को लेकर उत्तराखंड पर्यटन संरचना विकास निवेश कार्यक्रम के तहत एशियन विकास बैंक द्वारा वित्त पोषित की ओर से साढ़े चार करोड़ की धनराशि खर्च की गई है. लेकिन निर्माणाधीन काम की गुणवत्ता एवं मानकों पर भी सवालियां निशान लग रहे हैं. यह मंदिर जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से मात्र बीस किमी की दूरी पर बोरा गांव में स्थित है.
बता दें कि जनवरी 2016 में उत्तराखंड पर्यटन संरचना विकास निवेश कार्यक्रम के तहत एशियन विकास बैंक द्वारा वित्त पोषित में दुर्गाधार मंदिर का कार्य शुरू हुआ, जिसे जनवरी 2018 में समाप्त होना था. लेकिन ठेकेदार की ओर से विभाग से और समय मांगा गया और दिसंबर 2018 में कार्य को समाप्त होने की बात कहकर ठेकेदार चला गया, लेकिन मंदिर का कार्य आज तक भी पूरा नहीं हो पाया है.
निर्माण कार्य अभी तक अधूरा है. रैलिंग, रेन शेल्टर, गेस्ट हाऊस, शौचालय का पूरा कार्य नहीं हुआ है. गेस्ट हाऊस भवन के आगे पत्थर भी नहीं लगाए गए हैं. मंदिर के गर्भगृह से पानी टपक रहा है. आराध्य इंजीनियर्स एण्ड कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ऋषिकेश की ओर से मंदिर के नवनिर्माण में घोर अनियमिता बरती गयी है. जो सामान स्थानीय बाजार में आधे कीमत पर मिल सकता था, उस सामान को तीन गुने रकम में खरीदकर सरकारी पैसों को ठिकाने लगाने का कार्य किया गया है. दो साल पहले निर्माण एजेंसी कार्य छोड़कर भाग गया और अब तक इस दिशा में विभाग और ग्राम पंचायत की ओर से कोई कार्यवाही नहीं की गयी है.
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प्रधान संगठन के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य एवं मयकोटी के प्रधान अमित प्रदाली ने कहा कि दुर्गा मंदिर पर करोड़ों रूपए खर्च किए गए हैं और मंदिर को समिति को सौंपे हुए दो साल का समय हो चुका है. जो सामग्री गेस्ट हाऊस और मंदिर पर खर्च की गई है, उसकी जांच होनी आवश्यक है. साथ ही मंदिर में पर्यटकों का आना-जाना लगा रहे, इसके लिए जिला प्रशासन और पर्यटन विभाग के साथ ही क्षेत्रीय जनता को कोई ठोस कदम उठाना चाहिए.
जिलाधिकारी मनुज गोयल ने कहा कि दुर्गाधार मंदिर में अधूरे कार्यों को पूरा करने के निर्देश दिए जाएंगे. इसके साथ ही निर्माण कार्यो की भी जांच की जायेगी. दोषी पाये जाने पर निर्माण एजेंसी और संबंधित अभियंताओं के खिलाफ जांच के आदेश दिये जायेंगे.
दुर्गा मंदिर से जुड़ी मान्यता
दुर्गा मंदिर रुद्रप्रयाग के तल्लानागपुर पट्टी के बोरा गांव में स्थित है. यह एक मात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें मां दुर्गा के साथ शिवलिंग भी स्थापित है. लिंग के बीच में एक दरार है, जो कि दो भागों में बंटा दिखता है. मान्यता है कि प्राचीनकाल में गांव के ही एक परिवार की गाय यहां आकर एक पेड़ के नीचे प्रतिदिन दूध डालती थी, लेकिन घर पर दूध नहीं देती थी. एक दिन गाय का पीछा करने के बाद मालिक ने देखा कि गाय दूध इस स्थान पर डालती है. जब गाय मालिक ने वहां कुल्हाड़ी से प्रहार किया तो एक पत्थर में चोट लगी. जिसके बाद ग्रामीणों ने खुदाई की तो वे थक गए, मगर पत्थर का अंत नहीं मिला.
तब वहां पर एक आकाशवाणी हुई और उस स्थान पर मां का मंदिर निर्माण कराया गया. मान्यता है कि यदि किसी भी प्रकार की विपत्ति की संभावना होती है तो मां दुर्गा पहले ही गांव वालों को सचेत कर देती है. आज भी देवी गांव के किसी भी एक व्यक्ति पर आती है. मां दुर्गा को पूजने का अधिकार मयकोटी के पंडित एवं ग्राम बेंजी के बेंजवालों का है. यहां पर हर वर्ष अगस्त और सितंबर माह में भव्य देवी पूजन किया जाता है, जिसे जग्गी कहा जाता है. यह तल्लानागपुर पट्टी की एकमात्र ऐतिहासिक जग्गी होती है.