रुद्रप्रयागः मद्महेश्वर घाटी के रांसी गांव में विराजमान भगवती राकेश्वरी मंदिर में विगत दो माह से चल रहे पौराणिक जागरों का समापन दुर्योधन वध, युधिष्ठिर के राजतिलक और भगवती राकेश्वरी को बह्मकमल अर्पित करने के साथ हो गया है. पौराणिक जागरों के समापन अवसर पर मद्महेश्वर घाटी के दर्जनों गांवों के सैकड़ों श्रद्धालुओं ने प्रतिभाग कर भगवती राकेश्वरी की पूजा-अर्चना की. साथ ही विश्व कल्याण की कामना की.
दशकों से चली आ रही परंपरा के अनुसार भगवती राकेश्वरी मंदिर में सावन मास की संक्रांति से लेकर आश्विन की माह की दो गते तक पौराणिक जागरों के माध्यम से 33 कोटि देवी-देवताओं की महिमा का गुणगान किया जाता है. इसी परंपरा के तहत इस साल भी सावन मास की सक्रांति से पौराणिक जागर शुरू किए गए थे, जिसका समापन भगवती राकेश्वरी को बह्मकमल अर्पित करने के साथ हुआ.
दो माह तक चलने वाले पौराणिक जागरों में पृथ्वी की उत्पत्ति, कृष्ण जन्म, कृष्ण लीला, कंस वध, शिव पार्वती उत्पत्ति, शिव पार्वती विवाह आदि लीलाओं व महिमा का गुणगान किया जाता है. जागरों के अंत में कौरव-पाण्डवों की उत्पत्ति, महाभारत युद्ध, दुर्योधन वध, युधिष्ठिर का राज्यभिषेक का गुणगान भी किया जाता है. पांडवों के स्वर्ग गमन की महिमा के साथ ही पौराणिक जागरों का समापन किया जाता है.
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पौराणिक जागरों के गायन में रोजाना हरिद्वार से लेकर चौखंबा तक सभी देवी-देवताओं की स्तुति की जाती है. जागरों का समापन भगवती राकेश्वरी को बह्मकमल अर्पित करने के साथ होता है और इस बार श्रद्धालु तीन दिनों का अनुष्ठान रखकर नंगे पांव करीब 14 हजार फीट की ऊंचाई से परंपरानुसार बह्मकमल लेकर आए. जिसे भगवती राकेश्वरी को अर्पित कर पौराणिक जागरों का समापन हुआ. पौराणिक जागर सावन माह में शुरु होते हैं और आश्विन की दो गते को समापन होता है. राकेश्वरी मंदिर में पौराणिक जागर के समापन का समय बड़ा मार्मिक होता है. पौराणिक जागरों के गायन से क्षेत्र का वातावरण दो माह तक भक्तिमय बना रहा.